गोरखपुर. दशकों तक पूर्वांचल की सियासत के एक प्रमुख स्तंभ और लगातार 6 बार विधायक रहे पंडित हरिशंकर तिवारी का मंगलवार शाम गोरखपुर के धर्मशाला बाजार स्थित आवास पर निधन हो गया. वह करीब 90 वर्ष के थे.
परिजनों के अनुसार तिवारी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और आज शाम करीब साढे 7 बजे उन्होने अंतिम सांस ली. उनके निधन की सूचना मिलते ही गोरखपुर में बड़ी तादाद में लोग उनके आवास की ओर उमड़ पड़े.
गोरखपुर जिले के दक्षिणी छोर पर चिल्लूपार विधानसभा सीट से लगातार छह बार विधायक रहे हरिशंकर तिवारी की पहचान ब्राह्मणों के नेता के तौर पर रही. 70 के दशक में राजनीति में धनबल और बाहुबल के जनक के तौर पर स्थापित हरिशंकर तिवारी की तूती बोलती थी, एक समय था जब गोरखपुर शहर के बीचोबीच .तिवारी का हाता. से ही प्रदेश की सियासत तय होती थी.
कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा सरकार चाहे किसी की भी रही हो हरिशंकर तिवारी सबमें मंत्री रहे. 1985 में हरिशंकर चिल्लूपार से पहली बार विधायक बनेय इसके बाद यह सीट तिवारी के नाम से जानी जाने लगी. वह 1989, 91, 93, 96 और 2002 में यहीं से जीते। इसके बाद यहां से 2002 तक जीते थे.
2007 में हुए चुनाव में पंडित हरिशंकर तिवारी को कभी उन्हीं के चेले रहे राजेश त्रिपाठी ने परास्त किया. 2012 में भी राजेश त्रिपाठी विधायक बने और यहीं से पंडित हरिशंकर तिवारी का अपना राजनीतिक कैरियर को विराम कह दिया. इसके बाद उन्होंने चिल्लू पार से अपने पुत्र विनय शंकर तिवारी को चुनाव लड़ाया जो 2017 में विधायक बने, लेकिन यह विरासत भी 2022 के चुनाव में पराजय के साथ समाप्त हो गई.
तिवारी के बड़े पुत्र भीम शंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी खलीलाबाद से एक बार सांसद भी रहे. सरकार किसी की भी रही हो पंडित हरिशंकर तिवारी के हाथे से पूरे पूर्वांचल की राजनीति का निर्धारण हुआ करता था. वीरेंद्र प्रताप शाही से हुए जातीय संघर्ष में इन्हें एक बाहुबली के रूप में पूरे भारत में चर्चित किया. पिछले काफी समय से इन्होंने जरायम की दुनिया से तौबा कर रिया था और गौ सेवा में ही रमे रहते थे.
लगभग एक दशक से इनकी भी तबीयत खराब रहती थी और यह राजनीति से सन्यास लेकर स्वास्थ्य लाभ ही कर रहे थे, लेकिन 90 की उम्र में आज की तारीख में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन से पूर्वांचल की राजनीति को एक बड़े शून्य का सामना करना पड़ सकता है.
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