सड़क दुर्घटना से पीड़ितों और बीमा कंपनियों के बीच आए दिन बन रही विवाद की स्थिति को देखते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रायल ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया है। जिसे लेकर भी विवाद की स्थिति बनने लगी है। एक तरफ जहां सरकार ये दावा कर रही है कि इस गजट के बाद फर्जी एक्सीडेंटल क्लेम में कमी आएगी। वहीं दूसरी ओर ये बात भी सामने आ रही है कि इससे कहीं न कहीं बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। अगर सरकार की मंशा फर्जी क्लेम रोकने की है तो ये बात भी सच है कि इससे वाजिफ हकदार कहीं न कहीं परेशान हो रहे हैं। पढ़िए हमारी खास रिपोर्ट….
सड़क दुर्घटना को लेकर आए नए कानून के बाद से अचानक थानों में हुई FIR में कमी आई है। यही नहीं इस नए कानून के बाद बीमा कंपनियों के क्लेम सेटेलमेंट की राशि में भी अच्छी खासी कमी देखने को मिली है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या नए कानून के बाद वाकई है फर्जी एक्सीडेंटल क्लेम पर रोक लगी है या फिर इस कानून से वाकई में पीड़ित लोगों की परेशानी बढ़ गई है। दरअसल, जयप्रकाश वर्सेश नेशलन इंशोरेंस कंपनी के बीच लगी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइड लाइन तय की थी। जिसे अप्रैल 2022 में जारी गजट में उतारा गया है, जिसके बाद से ही लोगों की परेशानी बढ़ी है।
ये है नियम
- सड़क दुर्घटना के वक्त पुलिस स्वयं घटनास्थल पर जाकर मौके का निरीक्षण करेगी। पुलिस पीड़ित के बयान लेकर 24 घंटे में दुर्घटना से संबंधित पीड़ित के सारे दस्तावेज, एफआईआर की कॉपी DAR यानी डायरेक्ट एक्सीडेंट रिपोर्ट पेश करेगी।
- न्यायलय में जब DAR आएगी तो न्यायलय द्वारा बीमा कंपनी के नोडल अधिकारी को सूचना दी जाएगी, उसके बाद पुलिस 60 दिन में पुरा मामला पेश करेगी।
- जब कभी एक्सीडेंट का केस कोर्ट में जाएगा तो बीमा देने वाली कंपनी अपना निरीक्षण अधिकारी या अपना वकील नियुक्त करेगी और इस मामले की छानबीन कर आएगी, उसके बाद क्लेम की राशि तय की जाएगी। लेकिन यदि पीड़ित इस राशि से सहमत नहीं हुआ तो वह फिर अपना वकील कर सकता है।
- नियम में एक अहम प्रावधान जो किया गया वो है दावेदार यानी पीड़ित व्यक्ति अपने स्थानीय पते पर दर्ज ही खाता नंबर देगा। उसी में उसके क्लेम की राशि डाली जाएगी।
- क्लेम स्टेलमेंट की राशि देने में भी अलग-अलग प्रावधान है, कंपनी सेटल मेंट की राशि कुछ नगद और कुछ FD के रुप में दे सकती है।
एक्सीडेंट के बाद कौन करवाएगा इलाज?
दरअसल, केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जो नया गजट नोटिफिकेशन लाया गया है, उसमें यह मुद्दा गरमाया हुआ है कि आखिर इलाज करवाएगा कौन?, क्योंकि पहले होता यही था कि जब कभी भी, जहां भी एक्सीडेंट होता था। वहां का स्थानीय वकील मामले में इन्वाल होकर पीड़ित का इलाज करवाता था, उसके आने-जाने का खर्चा उठाता था। यही नहीं किसी किसी केस में तो वकील पीड़ित के परिजनों का भी एक तरह खर्चा उठाता था, जैसे उनके आने-जाने का खर्चा, गांव में एक्सीडेंट हुआ है तो शहर में पीड़ित के परिजनों के रुकने की व्यवस्था, उनके खाने का खर्चा आदि जैसे मदद भी वकील के माध्यम से ही की जाती थी, लेकिन नया लॉ आने के बाद अब कोई भी वकील इस तरह के केस में हाथ डालने से पीछे हट रहा है। या यू कहे कि वकील केस ले ही नहीं रहा। एक बात यहां पर हम क्लीयर कर दें कि, वकील को लिगली या कानूनन ऐसा कोई अधिकारी नहीं है कि वो ऐसा करे, लेकिन ये सब आपसी सहमति के तौर पर होता आया है।
इस नए गजट के बाद एक खास बात जो देखने में आ रही है वो है अचानक से एक्सीडेंट्स के केस में एफआईआर में कमी आना, इसका मतलब क्या निकाला जाए कि क्या वाकई एक्सीडेंट्स के केस में कमी आई है या फिर मामलों में हो रही फर्जी एफआईआर नहीं हो पा रही, जैसा की इस गजट लाने के पीछे सरकार क मंशा भी थी, क्योंकि कुछ जगहों पर ये बात देखी भी जा रही थी कि कुछ लोग फर्जी तरीके से बीमा कंपनी से क्लेम निकालने के लिए फर्जी एक्सीडेंट का सहारा ले रहे थे। कुछ एक केस में वकील पीड़ित का इलाज कराने के बाद उसे क्लेम की राशि का बहुत कम पैसा दे रहे थे, जिसकी कई लोगों ने शिकायत भी की थी। कहा जा रहा है कि उसके बाद ही इस दिशा में सरकार ने ये कदम उठाया है।
‘नया गजट सीधे तौर पर बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश’
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि नया गजट सीधे तौर पर बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश है, क्योंकि ये बात देखने में आई है कि नए नियम को आए एक महीना ही हुआ है और इसी एक महीने में ही बीमा कंपनियों के एक्सीडेंट क्लेम सेटलमेंट में अच्छी खासी कमी आई है। 1 जनवरी से 31 मार्च तक में बीमा कंपनियों के क्लेम सेटलमेंट का आंकड़ा 2093 था, लेकिन नए कानून लागू होने के बाद यानी 1 अप्रैल से 13 मई तक महज 200 केस आए हैं।
नए गजट आने के बाद बढ़ी मरीजों की परेशानी
इस गजट के आने के बाद मरीजों की परेशानी बढ़ गई है मरीजों के परिजनों का कहना है कि, पहले वकील या किसी संस्था के माध्यम से इलाज कराने के लिए उन्हें सुविधा मिल जाती थी, लेकिन अब इस नए नियम के बाद में वकील मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं, जिसके चलते उनको सरकारी अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। जहां उन्हें पर्याप्त इलाज नहीं मिल पा रहा है।
हमारा मकसद केवल सवाल उठाना नहीं है हम समाधान की भी बात करते हैं। जब कानून में खामियां हो तो उसे दूरूस्त करना लाजमी है, लेकिन समाधान का मतलब नई समस्या नहीं होना चाहिए। दरअसल इस नए गजट में हो यही रहा है, क्योंकि सरकार की मंशा के अनुरूप फर्जी केसों में भले ही कमी आई हो, लेकिन आम लोगों की समस्या भी बढ़ गई है। अब जो लोग अस्पताल तक पहुंचने में सक्षम नहीं है वो क्या करे, क्योंकि पहले तो वकील उनकी हर तरह की मदद कर दिया करते थे, एक और अहम बात वो ये कि, हमेशा से संदेह के घेरे में रहने वाली पुलिस क्या अपना काम बखूबी करेगी, क्योंकि इस नए नियम में पुलिस की भूमिका बढ़ा दी गई है या यू कहे कि पूरी जिम्मेदारी ही पुलिस पर लाद दी गई है। एक तरह से पुलिस एक्सीडेंटल केस में बीमा एजेंट का काम भी करेगी। पुलिस को ही सारी रिपोर्ट पेश करनी है। जैसे घटना का सत्यापन, क्लेम सेटलमेंट से संबंधित दस्तावेज पुलिस को ही देना है। उसके बाद ही पीड़ित को न्याय मिल पाएगा। लिहाजा एक और सवाल उठता है कि, पहले से ही कम संशाधनों से जुझती पुलिस के लिए क्या ये एक और नई चुनौती नहीं है? क्या पुलिस एक वकील की तरह हर केस में टाइम दे पाएगी?
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