गौरव जैन, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही : हमारे राष्ट्रगान “जन-गण-मन” के रचयिता गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को आज हम याद कर रहे हैं. आज ही के दिन यानी 7 अगस्त को उनका निधन हुआ था. आज उनकी 82वीं पुण्यतिथि है. करीब 104 साल पहले सन 1918 में वे अपनी पत्नी के साथ गौरेला के सेनिटोरियम आए थे. गुरुदेव ट्रेन में कोलकत्ता से बिलासपुर होते हुए पेन्ड्रारोड स्टेशन पहुंचे थे.
एक समय था जब टीबी एक लाइलाज बिमारी हुआ करती थी. उस समय इस बिमारी का कोई भी इलाज नहीं था. जो इलाज था भी तो वह बहुत खर्चीला इलाज हुआ करता था. इसी टीबी बीमारी से गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की पत्नी मृणालिनी देवी (बीनू) ग्रसित थीं. इनका इलाज कराने के लिए गुरुदेव गौरेला आए थे.
इसलिए सेनिटोरियम जाते थे मरीज
टीबी के इलाज के लिए ब्रिटिश सरकार ने तीन जगह पर सेनिटोरियम बनवाया था, क्योंकि यहां का वातावरण टीबी मरीज के लिए अनुकूल था. चारों तरफ हरे भरे पेड़, स्वच्छ हवा और औषधीय गुणों से परिपूर्ण वृक्ष और पौधे उपलब्ध थे. जिनमें टीबी के जीवाणुओं को खत्म करने की क्षमता थी.
नहीं रहीं बीनू
सेनिटोरियम प्रांगण में बड़े-बड़े साल, सागौन, बरगद के वृक्ष आज भी हैं. इन वृक्षों के नीचे बैठकर गुरुदेव ने बहुत सारी कविताएं और कहानियां लिखीं थी. यहां 6 महीने तक मृणालिनी देवी का इलाज चला. लेकिन गौरेला के सेनिटोरियम में ही गुरुदेव की पत्नी का देहांत हो गया. इसी सेनिटोरियम के प्रांगण में गुरुदेव की पत्नी को दफनाया गया था. यहां उनकी समाधि भी बनाई गई थी.
पत्नी वियोग में ‘फांकी’ का जन्म
पत्नी वियोग में ही गुरुदेव ने बिलासपुर स्टेशन में “फांकी” नाम की एक कविता लिखी. उनकी ये कविता आज भी बिलासपुर रेलवे स्टेशन के गेट की दीवार पर अंकित है. पिछले महीने गौरेला दौरे पर आए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रविन्द्रनाथ टैगोर और गौरेला सेनिटोरियम का भी जिक्र किया था. यहां सेनिटोरियम में बन रहे शासकीय कार्यालय को रविन्द्रनाथ टैगोर के नाम से करने और एक संग्रहालय की मांग की गई है.
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