Bangladesh Violence: बांग्लादेश का राष्ट्रगान (Bangladesh National Anthem) लिखने वाले रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के घर को कट्टरपंथी मुस्लिम (Radical Muslims) दंगाइयों ने तोड़ दिया है। रबीन्द्रनाथ टैगोर का ये वही घर है, जहां पर उन्होंने कई विश्व प्रसिद्ध रचनाएं को अपनी लेखनी से कागज पर उतारा है। साहित्य के नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) से सम्मानित रबीन्द्रनाथ टैगोर की एक रचना ‘आमार सोनार बांग्ला’ ही बांग्लादेश में राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार की गई है, लेकिन दंगाइयों ने अब उन्हीं रबीन्द्रनाथ टैगोर के घर को तोड़ डाला है जिन्होंने उनके देश का राष्ट्रगान लिखा था।
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मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बांग्लादेश के सिराजगंज जिले में नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर पर कट्टरपंथी मुस्लिमों की भीड़ ने हमला कर दिया। इसके बाद अंदर घुसकर तोड़फोड़ की। अधिकारियों ने घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है।
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क्यों दंगाइयों ने तोड़ा रबीन्द्रनाथ का घर
जानकारी के मुताबिक 8 जून 2025 को एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ सिराजगंज के कचहरीबाड़ी में स्थित रबीन्द्रनाथ टैगोर म्यूजियम में घुमने आया था। इस जगह को रबींद्र कचहरीबाड़ी भी कहा जाता है। यहां शख्स की बाइक पार्किंग फीस को लेकर इस जगह की देखरेख कर रहे लोगों के साथ बहस हो गई। बाद इस शख्स को बंद कर दिया गया और इसके साथ मारपीट की गई। इस घटना से आक्रोशित स्थानीय लोगों ने मंगलवार को मानव श्रृंखला बनाकर विरोध प्रदर्शन किया। बाद में भीड़ ने कचहरीबाड़ी के सभागार पर हमला कर दिया और यहां तोड़फोड़ की और संस्था के निदेशक की पिटाई कर दी।
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हमले की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच समिति गठित
इस घटना के बाद पुरातत्व विभाग ने हमले की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है। कचहरीबाड़ी के संरक्षक मोहम्मद हबीबुर रहमान ने पत्रकारों को बताया कि प्राधिकरण ने “अपरिहार्य परिस्थितियों” के कारण कचहरीबाड़ी में आगंतुकों के प्रवेश को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है। इस वक्त कचहरीबाड़ी की पूरी स्थिति विभाग की निगरानी में है और समिति को अगले पांच कार्य दिवसों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।
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कचहरीबाड़ी में ही पनपा था रबीन्द्र संगीत और साहित्य
बता दें कि राजशाही डिवीजन के शहजादपुर में स्थित कचहरीबाड़ी टैगोर परिवार का पैतृक घर है। टैगोर परिवार के पास बांग्लादेश में स्थित कचहरीबाड़ी में जमींदारी थी और रबीन्द्रनाथ ने 1890 के दशक में यहां रहते हुए अपने पिता की जमींदारी का प्रबंधन किया और साथ ही साथ साहित्यिक रचनाएं की थी। टैगोर ने यहां अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बिताया था।
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रबीन्द्रनाथ ने 1890 के दशक में यहां रहते हुए अपने पिता की जमींदारी का प्रबंधन किया था। इस दौरान उन्होंने ग्रामीण जीवन, प्रकृति और सामाजिक मुद्दों से गहरी प्रेरणा ली, जिसका प्रभाव उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। टैगोर ने कचहरीबाड़ी में प्रकृति की सुंदरता विशेष रूप से पद्मा नदी से प्रेरित होकर कई कविताएं लिखीं। यहां पर वे लगातार संगीत साधना करते थे, जो आगे चलकर रबीन्द्र संगीत का हिस्सा बने।
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