नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने देश में संस्थागत ढांचे पर सत्तापक्ष की तरफ से पूरी तरह कब्जा कर लेने का आरोप लगाया है. अमेरिका के शिक्षण संस्थान हार्वर्ड केनेडी स्कूल के छात्रों के साथ ऑनलाइन संवाद करते हुए राहुल गांधी ने देश के इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क को खतरे में बताता हुए कहा कि निष्पक्ष राजनीतिक मुकाबला सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार संस्थाएं अपेक्षित सहयोग नहीं दे रही हैं.

अमेरिका के पूर्व राजनयिक व हार्वर्ड केनेडी स्कूल के अंबेसडर निकोलस बर्न्स के साथ बातचीत में राहुल गांधी ने कांग्रेस की चुनावी असफलता और भविष्य की रणनीति के बारे में पूछे जाने पर कहा कि हम आज ऐसी अलग स्थिति में हैं जहां वो संस्थाएं हमारी रक्षा नहीं कर पा रही हैं, जिन्हें हमारी रक्षा करनी है. जिन संस्थाओं को निष्पक्ष राजनीतिक मुकाबले के लिए सहयोग देना है वो अब ऐसा नहीं कर रही हैं.

राहुल गांधी ने किसान आंदोलन पर कहा कि जब हमारी सरकार थी, तब लगातार फीडबैक लेते थे. चाहे बिजनेस हो किसान हो. मौजूदा सरकार ने फीडबैक लेना बंद कर दिया है. अब जब लोगों को मारा जाता है. हमने सरकार से किसानों से बात करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी. कृषि में सुधार करना आवश्यक है, लेकिन आप कृषि प्रणाली की नींव पर हमला नहीं कर सकते और आप निश्चित रूप से उनके साथ बातचीत किए बिना कोई ऐसा परिवर्तन नहीं कर सकते.

कांग्रेस के लिए यह अवसर

उन्होंने दावा किया कि सत्तापक्ष से लोगों का मोहभंग हो रहा है और यह कांग्रेस के लिए एक अवसर भी है. कोरोना संकट और लॉकडाउन के असर पर कहा कि मैंने लॉकडाउन की शुरुआत में कहा था कि शक्ति का विकेंद्रीकरण किया जाए, लेकिन कुछ महीने बाद केंद्र सरकार की समझ में आया, तब तक नुकसान हो चुका था. लॉकडाउन अचानक से लगा दिया गाय था. हर राज्य की जरुरत अलग-अलग है. सरकार को समझने में दो महीने लगे.

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प्रधानमंत्री बनें तो करेंगे यह काम

यह पूछे जाने पर कि प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलने पर उनकी आर्थिक नीति क्या होगी तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि वह नौकरियों के सृजन पर जोर देंगे. वहीं अर्थव्यवस्था को गति देने के उपाय से जुड़े सवाल पर कहा कि अब सिर्फ एक ही विकल्प है कि लोगों के हाथों में पैसे दिए जाएं. इसके लिए हमारे पास न्याय का विचार है. वहीं चीन के बढ़ते वर्चस्व की चुनौती के बारे में उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका जैसे देश लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ ही समृद्धि और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के विकास से बीजिंग की चुनौती से निपट सकते हैं.

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