नीली और पीली धारीदार पोलो टी-शर्ट पहने, हाथ में एक लैटर पैड पकड़े, पेन से कुछ लिखता हुआ मैं स्वयं हूँ। 12 मई 2018 की यह तस्वीर राजनांदगांव जिले के ग्राम सुरगी की है, वक्त शायद साढ़े सात या आठ बजे, सुबह का रहा होगा।

वैसे तो भूपेश जी को काफी समय से जानता था, लेकिन 2017 में मा. मुख्यमंत्री जी के वर्तमान में राजनैतिक सलाहकार विनोद वर्मा जी के निर्देश पर नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने की इस यात्रा का सहभागी बनने का मौका मिला।

यह तस्वीर मेरे लिए एक जीता-जागता संस्थान है जो अपने आप में गांधी जी के ग्राम स्वराज से लेकर नेहरू जी के सुदृढ ग्रामीण अर्थव्यवस्था की परिकल्पना के साथ-साथ राहुल जी के अंत्योदय और न्याय को अपने आप में समेटे हुए है।

12 मई 2018 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह जी दंतेवाड़ा से “विकास यात्रा” प्रारंभ कर विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान कस बिगुल फूंक रहे थे। यह वो वक्त था जब दिल्ली के स्टूडियो में AC की कूलिंग बढ़ाकर, वन ब्लैक कॉफी प्लीज के बाद कहते थे कि छत्तीसगढ़ में तो चौथी बार अब भाजपा सरकार बनने जा रही है।

कांग्रेस के पास नेता न होने का दावा करके, कई प्रोपोगेंडा मशीनरियां लगभग रमन सिंह जी को चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला चुकी थीं।

एकाएक निर्णय लिया गया और खबर मिली कि सुबह 6 बजे तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेश दाऊ भिलाई-3 स्थित अपने घर से कहीं के लिए निकले हैं, कहाँ के लिए? किसी को नहीं पता।

हम कार्यकर्ताओं के लिए यकीन कर पाना थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि दाऊ जी की दिनचर्या में उनका उठना 8-9 के बीच तय होता है।

लेकिन हम भी निकल पड़े, गाड़ियां राजनांदगांव की तरफ बढ़ रही थीं। पत्रकार साथियों को लग रहा था कि हम कार्यकर्ताओं को पता है कि हम कहाँ जा रहे हैं, हमें लग रहा था कि शायद पत्रकारों को पता हो।

लेकिन वो भूपेश बघेल हैं, कहाँ जा रहे हैं ये उनको स्वयं को भी वहां पहुंचने के बाद पता चलता है।

अचानक गाड़ियों के पहिये थमे और दाऊ जी उतरे। सुबह लगभग सात बजे का वक्त था तालाब में लोग स्नान कर रहे थे। पेड़ के नीचे दाऊ जी ने बिछौना बिछाया और बैठ गए।

यह गांव ‘सुरगी’ था, वो गांव जो उस समय के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने गोद ले रखा था। प्रभारी पी एल पुनिया जी सहित अन्य लोगों के साथ दाऊ जी बैठे थे, लोग आ रहे थे, समस्याएं बता रहे थे।

शायद मैं वही समस्याएं इस तस्वीर में लिख रहा हूँ।

लोग माने नहीं, अपने घरों में दाऊ जी को ले गए। किसी के घर में पानी नहीं था तो किसी के नल में लाल पानी आ रहा था। फिर बच्चे अपने स्कूल में ले गए जहां खाना रोज एक जैसा बन रहा था और पीने का पानी नहीं था।

फिर गांव के एक बुजुर्ग सार्वजनिक शौचालय में ले गए जहां पानी की टंकी न थी।

कुल मिलाकर 1 घंटे में एक नेता ने तत्कालीन मुख्यमंत्री की विधानसभा में जाकर उसके गोद लिए हुए गांव को प्रदेश की जनता के सामने दिखाकर दोपहर 12 बजे होने वाली “विकास यात्रा” को प्रभावहीन कर दिया था। लगभग सभी चैनलों पर लाइव था।

यह है भूपेश बघेल की “हैड ऑन” लेने वाली राजनीति, यह है वो “फ्रंट फुट” पर खेलने वाली रणनीति जिसका जिक्र राहुल जी बार-बार करते हैं।

भूपेश बघेल वहीं नहीं रुके थे, सुरगी के बाद वो वहां से चंद किलोमीटर दूर भोथीपार की ओर बढ़े जो रमन सिंह के बेटे और तत्कालीन राजनांदगांव सांसद अभिषेक सिंह का गोद लिया हुआ गांव था, वहां पहुंचे और वहां की अनगिनत समस्याओं को सुना, वे इस दौरान खेतों में काम कर रहे मजदूरों के पास भी बैठे, बातें सुनीं, साथ खाना खाया और पानी पिया।

अब तक मैंने भूपेश बघेल को सिर्फ संगठन खड़ा करते, पदयात्रा करते, कार्यकर्ताओं में जोश भरते देखा था। लेकिन ये वो दिन था जब मुझे एक नेता सामने खड़ा होकर रमन सिंह की आंख में आंख डालकर, उनके घर में घुसकर भाजपा की गवर्नेंस को चुनौती देते देखा था।

यहीं से “जनघोषणा पत्र” को एक नई धार मिली, जिसमें राहुल जी की सोच के अनुरूप किसान को संबल भी था, गांवों को समृद्धि भी थी, कृषि को प्रोत्साहन भी था और छत्तीसगढ़ को “नवा छत्तीसगढ़” बनाने का सपना भी था।

उसके बाद का अब तक…सब वर्तमान है।

आज भूपेश दाऊ का जन्मदिन है, देश-परदेश और प्रदेश भर से आज बधाईयां मिल रही हैं। वो सब भी बधाई

दे रहे हैं जो कहते थे कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में नेता टॉर्च लेकर ढूंढना पड़ेगा, शायद आज कुशल नेतृत्व की चमक के चलते उनको टॉर्च जलाने की तकलीफ नहीं करनी पड़ रही होगी।

दाऊ जी को मेरी तरफ से भी ढेर सारी बधाई

आप अंत्योदय के संस्थान हैं, हर अंतिम व्यक्ति तक सम्पन्नता पहुंचाने का आपका संकल्प हमें बहुत कुछ सिखाता है, आपसे बहुत कुछ सीखना बाकी है।

जीवेत शरद शतम!

लेखक – आयुष पाण्डेय