नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए मोदी सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन को फेल बताया. वीडियो कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों से बोले कि नरेंद्र मोदी ने कहा था 21 दिन में कोरोना की लड़ाई जीती जाएगी. लेकिन चार लॉकडाउन हो चुके हैं. इसमें तकरीबन 60 दिन हो गए. हिन्दुस्तान पहला देश है, जो बीमारी के बढ़ते वक्त लॉकडाउन को बंद कर रहा है. चाहे वो जापान हो, या वो कोरियो हो, चाहे वो जर्मनी हो, फ्रांस हो, सबके सब देशों ने लॉकडाउन तब बंद किया, जब कोरोना वायरस की बीमारी घटनी शुरू हो गई थी.
ये बिलकुल स्पष्ट है कि हिन्दुस्तान का लॉकडाउन फेल हुआ है.जो लक्ष्य नरेन्द्र मोदीका था, वो लक्ष्य पूरा नहीं हुआ.अब हम बहुत इज्जत और आदर से सरकार से और प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहते हैं कि अब आपका प्लान बी क्या है? बीमारी 21 दिन में गायब नहीं हुई, बीमारी बढ़ रही है. आपकी स्ट्रेटजी क्या है? लॉकडाउन को आप किस प्रकार से देखते हैं?आप लॉकडाउन से किस प्रकार से बाहर निकलेंगे,जो हमारे मजदूर भाईबहन हैं, उनकी आप कैसे मदद करेंगे? जो हमारे छोटे और स्मॉल एंड मीडियम बिजनेसेज हैं, क्या उनकी आप मदद करना चाहते हो, या नहीं करना चाहते हो? क्या प्लान है? तो ये सवाल हम सरकार से पूछना चाहते हैं.
मैं कोई राजनीतिक प्वाइंट स्कोर नहीं करना चाह रहा हूँ. मुझे थोड़ी चिंता है, क्योंकि जो होना चाहिए था, वो नहीं हुआ है. देश को मालूम होना चाहिए, सच्चाई को स्वीकार किया जाना चाहिए कि जैसा की हमें बताया गया था कि 21 दिन में बीमारी को हराया जाएगा,60 दिन हो चुके हैं, बीमारी बढ़ती जा रही है. अस्पतालों में मेरी बात होती है, कहते हैं कि बीमारी बढ़ती जा रही है, तो ये एक सवाल हैं
लॉकडाउन का लक्ष्य था संक्रमण को रोकना. क्या आपकी राय में चार बार लॉकडाउन करने से संक्रमण रोकने का लक्ष्य प्राप्त हुआ सरकार को,गांधी ने कहा कि ये तो मैंने ओपनिंग स्टेटमैंट में ही कह दिया था कि लॉकडाउन का जो लक्ष्य है, वो प्राप्त नहीं हुआ. प्रधानमंत्री ने कहा था कि 21 दिन के लॉकडाउन में कोरोना को हरा देगा. कोरोना तो बढ़ता ही जा रहा है. तो ठीक है, जो पहली स्ट्रैटजी थी, वो फेल हो गई, उसको एक्सेप्ट कर लेना चाहिए. मगर अब बताइए, अगली स्ट्रैटजी क्या है? अब बताइए, आगे बढ़ते हुए, हिन्दुस्तान की सरकार क्या सोच रही है? लॉकडाउन को किस प्रकार से हटाएगी, जो हमारे गरीब लोग हैं, उनकी किस प्रकार से मदद करेगी? जो हमारे स्मॉल एंड मीडियम बिजनेसेज हैं, उनकी किस प्रकार से रक्षा होगी? जो माइग्रेंट्स हैं, उनके लिए क्या किया जाएगा? ये सब चीजें अब देश को बताना है. मुझे लगता कि अगर आपने प्रधानमंत्री से भी पूछा कि भाई, आपने 21 दिन का बोला था,60 दिन हो गए. वही एक्सेप्ट करेंगे कि जो उनका पहला प्लान था, वो फेल हुआ.
मगर हम सिर्फ ये कह रहे हैं, ठीक है, हम मानते हैं कि फेल हो गया; एक्सेप्ट करते हैं उस बात को, मगर अब आगे बताइए कि क्या करना है? अब प्रधानमंत्री ने एक लोगों की अपनी पोजीशन एडॉप्ट कर ली है. पहले 2-3 बार उन्होंने फ्रंट फुट पर खेला. अब प्रधानमंत्री दिखाई नहीं दे रहे हैं, मगर प्रधानमंत्री को देश को बताना पड़ेगा कि आगे क्या करना है. प्रधानमंत्री को अग्रेसिवली फ्रंट फुट पर फिर से आना पड़ेगा. वो बैकफुट पर चले गए हैं, मैं अपोजीशन का हूँ, मैं कह रहा हूँ उनको कि वो फ्रंट फुट पर फिर से आएं.
एक अन्य प्रश्न पर कि सरकार की जो इस पूरे मसले को लेकर हैंडलिंग रही है, how would you rate it, it fits on a scale of ten, क्या आप कितना मार्क्स देंगे औऱ क्या आप एक बड़ी कामयाबी और एक बड़ा फेलयर या नाकामयाबी क्या रही है, गांधी ने कहा कि am not a Professor that I am going to rate the Prime Minister’s performance on a scale of 1-10, I am sorry, that would be inappropriate for me to do. मैं कहूंगा कि कोरोना की लड़ाई खत्म नहीं हुई है. कोरोना की लड़ाई शुरु हुई है और हमें आगे क्लियरली अपने एक्शन्स समझाने होंगे. सरकार को क्लियरली एक्शन्स बताने पड़ेंगे. इकॉनमी को कैसे रिवाइव करेंगे,स्मॉल एंड मीडियम बिजनेसेज, माइग्रेंट्स, जो गरीब जनता है, कैसे उनकी मदद होगी और जो ओपनिंग अब हो रही है, इसको किस प्रकार से मैनेज किया जाएगा कि हमारे जो वलनरेबल लोग हैं, जो बुजुर्ग लोग हैं, हार्ट पेशेंट्स हैं, डायबिटिक्स हैं, लंग पेशेंट्स हैं, किडनी पेशेंट्स हैं, उनकी रक्षा नेशनल लेवल पर किस प्रकार से की जाएगी? ये सवाल है, पर मेरा रैंकिंग देना, एप्रोप्रिएट (appropriate) नहीं है.
एकअन्य प्रश्न पर कि क्या कोई कामयाबी आपको लगता है कि इस पूरे ढाईतीन महीने में कोई कामयाबी रही है, कुछ हैंडलिंग में या काबिले तारीफ रहा हो सरकार की तरफ से, गांधी ने कहा कि न मैं क्रिटिसाइज करूँगा, न मैं पास्ट की बोलना चाहता हूँ. जो हो गया, वो हो गया, मैं आज की बात कर रहा हूँ. मुझे इंट्रेस्ट आज में है और कल में है, कल क्या होने वाला है और मुझे थोड़ा चिंता हो रही है कि कोरोना वायरस बढ़ता ही जा रहा है. स्टेट लेवल पर हम लड़ रहे हैं, मगर जो सपोर्ट मिलना चाहिए वो सपोर्ट सरकार दे नहीं रही है और मैं सरकार से रिक्वेस्ट कर रहा हूँ कि सिर्फ कांग्रेस के स्टेट्स को नहीं, बीजेपी के स्टेट्स को, कांग्रेस के स्टेट्स को, सबको वो फाईनेंसियली (financially) सपोर्ट करें.हमारा रोल अपोजीशन का है, हम सुझाव देते हैं. हम इन चीजों के बारे में सोचते हैं, हमारी पार्टी में डिस्कशन होता है. हमारे एक्सपर्ट्स बातचीत करते हैं और वो लाकर हम आपके सामने रखते हैं हमारा कौन सा सजेशन सरकार ले, वो हमारे ऊपर नहीं है, वो उनके ऊपर है.
वो उनका डिसीजन है और जरुर उन्होंने हमारे 2-3 सजेशन जो जोन की बात थी, वो सजेशन एक्सेप्ट किया तो वो अच्छी बात थी, मगर जो हमारी क्रिटिकल सजेशन हैं, मुख्य “अर्थव्यवस्था को बचाना है, पैसा एकदम दो.” वो सजेशन उन्होंने नहीं लिया. उससे थोड़ा हमें दुःख हुआ है, पर वो उनका प्रोरियोगेटिव (prerogative) है, लेना चाहते हैं, नहीं लेना चाहते हैं. एक बात मैं आपको कह देता हूं कि अगर हिन्दुस्तान की सरकार ने पैसा नहीं दिया गरीबों को, न्याय योजना जैसी योजना नहीं दी, स्मॉल एंड मीडियम बिजनेसेज को सपोर्ट नहीं किया तो बहुत जबरदस्त आर्थिक नुकसान होने वाला है, ये तो मैं आपको लिखकर दे दूंगा.
एक अन्य प्रश्न पर कि मैं आपसे ये पूछना चाहता था कि पिछली जो प्रेस कांफ्रेंस थी फाइनेंस मिनिस्टर की, उसको आपने अगर सुना हो तो ठीक, नहीं सुना हो तो मैं बता रहा हूँ, आप गए थे माइग्रेंट लेबरर्स से मिलने, उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ड्रामेबाजी करते हैं, अगर वो सीरियस होते तो उनका कुछ बोझ उठा लेते, उनके कुछ सामान, उनके कुछ बैग उठा लेते, उनकी मदद करते, तो अगली बार आप टैक्सी ड्राइवर से मिल रहे है, तमाम लोगों से मिल रहे हैं तो फाइनेंस मिनिस्टर की सलाह आप ध्यान में रखिए, अगली बार आप जब घर से बाहर निकलें,गांधी ने कहा कि मेरा लक्ष्य इसमें एक ही है. मैं गरीबों से बातचीत करता हूँ, मजदूरों से बातचीत करता हूँ, उनके दिल में क्या है, उसको समझने की कोशिश करता हूँ और मैं सच बोलूं तो उनकी जानकारी से उनके ज्ञान से मुझे काफी फायदा मिलता है. अब जहाँ तक मदद की बात है, मैं मदद करता रहता हूँ और मेरा तो एतराज नहीं है, अगर वो मुझे परमिशन दें, मैं जरुर बैग उठाकर ले जाऊँ.
मगर वो मुझे परमिशन नहीं देंगे, अगर दे दें तो मैं चला जाऊँगा.एक का नहीं 10-15 का उठाकर ले जाऊँगा. मगर मेरा लक्ष्य, मेन लक्ष्य जो उनके दिल में है, वो हिन्दुस्तान की जनता तक पहुंचाने का है. मैंने जो छोटी सी फिल्म बनाई, ये मैंने इसलिए बनाई कि हमारे जो बाकी नागरिक हैं, इनकी पीड़ा को समझें. इनके दुःख, इनके दर्द को सुनें. काफी बड़ा इम्पैक्ट होता है, अगर व्यक्ति इस बात को सुनें. क्योंकि ये लोग हमारी शक्ति हैं, ये लोग हमारा भविष्य हैं और अगर हम इनकी मदद नहीं करेंगे, तो हम किसकी मदद करेंगे. वो फाइनेंस मिनिस्टर की व्यू है कि अगर मैं उनसे बात करता हूँ तो ये ड्रामा है, ठीक है, ये उनकी व्यू है और मैं उनको धन्यवाद करता हूँ और उनसे कहता हूं कि अगर वो चाहती हैं, तो मैं यहाँ से उत्तर प्रदेश चला जाऊँगा, मुझे वहाँ अलाऊ कर दें, मैं पैदल यहां से चला जाऊँगा औऱ जितने लोगों की मदद मैं रास्ते में कर सकूंगा मैं कर दूंगा.
एक अन्य प्रश्न पर कि महाराष्ट्र को लेकर वहाँ पर जो विपक्ष है, उसने ये लगातार मांग कर रहे हैं कि वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाया जाए और वहाँ के जो हॉस्पिटल्स हैं, उनको सेना के हवाले कर दिया जाए, लगभग वैसी ही स्थिति गुजरात में भी है, गुजरात में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. वहां कोरोना को लेकर बहुत स्ट्रगल चल रहा है, लेकिन एक चीज समझ में नहीं आती कि वहाँ (गुजरात ) पर विपक्ष क्यों इतना नजर आता है, हालांकि कांग्रेस ने वहाँ की हैल्थ सर्विसेज को लेकर सवाल उठाए हैं. लेकिन क्या इस तरह की मांग वहाँ नहीं होनी चाहिए, वहाँ पर सेना उतारने की बात कही गई,
इस तरह की चीजें, लगातार आप राजनीति न करने की बात कर रहे है, लेकिन राजनीति तो हो रही है, क्या कहेंगे, गांधी ने कहा कि गुजरात में हमारे लोग विपक्ष की लड़ाई बहुत अच्छी लड़ रहे हैं, वो आपको जब चुनाव होगा, वहाँ पर पता लग जाएगा.मगर एक स्पिरिट से मैं कहना चाहता हूँ, देखिए अगर महाराष्ट्र में सरकार है, तो बीजेपी का काम उसको अपोज करने का है. कोई गलती नहीं है, अगर बीजेपी सवाल उठाना चाहती है, कंस्ट्रैक्टिवली सवाल उठाना चाहती है, उनको उठाना चाहिए, उससे फायदा होता है. उससे हमारी सरकार उनकी बात सुनकर सीख सकती है, उनके सुझाव एक्सेप्ट कर सकती है. इसमें कोई प्रॉब्लम नहीं है, मगर डेमोक्रेटिक स्ट्रक्चर को उखाड़कर बिना कोई कारण प्रेसीडेंट रुल लगाना, उसमें और कंस्ट्रक्टिव अपजीशन में बहुत फर्क है.
अगर बीजेपी छत्तीसगढ़ में,राजस्थान में,पंजाब में हमें कोई सजेशन देना चाहती है, तो हम उसको सुनेंगे. अगर वो वैलिड सजेशन है, तो शायद हम उसको एक्सेप्ट भी कर लें, तो मैं उसके खिलाफ नहीं हूँ. मगर वहाँ से लेकर आप राजनीति करने के लिए प्रेसीडेंट्स रूल की माँग करने लगे वो बिल्कुल अलग बात है, ऐसा नहीं होना चाहिए, ये ग़लत है! गांधी ने कहा कि इस प्रेस कांफ्रेंस का मेन थ्रस्ट था कि जो लक्ष्य लॉकडाउन का था, वो पूरा नहीं हूआ,60 दिन हो गए. बीमारी बढ़ती जा रही है.हमें क्लियरिटी चाहि, सरकार की क्या पोजीशन है, सरकार आने वाले दिनों में क्या करेगी, गरीबों को किस प्रकार से सपोर्ट करेगी, जो हमारे स्मॉल-मीडियम बिजनेसेज हैं, जो हमारे माइग्रेंट लेबर है, उनकी कैसे रक्षा करेगी और ओवरऑल आगे, इनका क्या प्लान है?
गांधी ने कहा कि सरकार का काम गवर्नेन्स का होता है, हमारा काम अपोजीशन का है. हमारा काम सरकार पर (जनहित में) प्रेशर डालने का है.अगर सरकार की दृष्टि कहीं नहीं जा रही है, कोई थ्रेट(threat) है, जो सरकार को नहीं दिख रहा है या जिसको सरकार इग्नोर कर रही है, उसको हाईलाइट करना हमारा काम है.फरवरी में जो मैं कर रहा था, अभी भी मैं वही कर रहा हूँ. मैंने अपनी पोजीशन नहीं बदली. मैंने फरवरी में कहा था कि बहुत डेंजरस सिचुएशन बनने जा रही है और आज भी मैं कह रहा हूँ,और फरवरी में जो कहा था, उससे स्ट्रॉन्गली मैं आज कह रहा हूँ कि अगर फाइनेन्सियल सपोर्ट नहीं दी, अगर स्मॉल एंड मीडियम बिजनेसेज को प्रोटैक्ट नहीं किया तो जो नुकसान होने वाला है, वो अभी तक तो दिखा ही नहीं है. ये तो पहला चैप्टर अभी शुरु भी नहीं हुआ है, तो जो मैं वार्निंग फरवरी में दे रहा था, वही वार्निंग मैं आज फिर से दे रहा हूँ. मैं सरकार से कह रहा हूँ, आदर से कह रहा हूँ, रेस्पेक्ट(respect) से कह रहा हूँ कि प्लीज आप इकोनोमिक एक्शन लीजिए.आप एकदम कैश इंजेक्शन दीजिए. आप एकदम स्मॉल एंड मीडियम बिजनेसेज की रक्षा कीजिए, नहीं तो बहुत जबरदस्त आर्थिक नुकसान होने वाला है.
मेरा काम देश की जो निगाह है, जो प्रोस्पैक्टिव है, उसको शेयर करने का है और मैं देश को और नरेन्द्र मोदी को कह रहा हूँ कि जो आपने पैकेज में किया है, उससे कुछ नहीं होने वाला है. एक प्रॉब्लम है, मैं आपको बताता हूँ.थोड़ी सी मेरी बातचीत, जो डिसीजन मेकर्स हैं, इंडायरेक्टली होती रहती है. उनका व्यू है कि अगर हमने ‘बहुत सारा पैसा’ गरीब लोगों को दे दिया, मजदूरों को दे दिया, तो बाहर देशों में गलत इम्प्रेशन चला जाएगा. हमारी रेटिंग खराब हो जाएगी. मैं फिर से दोहरा रहा हूँ कि हिन्दुस्तान की शक्ति बाहर से नहीं बनती है. हिन्दुस्तान की शक्ति हिन्दुस्तान के अंदर से बनती है.
हिन्दुस्तान की इमेज बाहर से नहीं बनती है, हिन्दुस्तान की इमेज हिन्दुस्तान के अंदर से बनती है, जब हिन्दुस्तान मजबूत होता है. जब हिन्दुस्तान में शक्ति होती है, तो बाकी दुनिया देखती है और तभी हमारी इमेज बनती है. इसलिए मैं फिर से ये कह रहा हूँ, हिन्दुस्तान की शक्ति की रक्षा करने की जरुरत है. शक्ति की रक्षा कैसे करनी है, डायरेक्ट कैश, एकदम 50 प्रतिशत लोगों को, सबसे गरीब मजदूरों को महीने का 7,500 रुपए दीजिए. ये हमारी शक्ति है, ये हमारी स्ट्रैंथ है, ये हमारा सोल है, आत्मा है, इसकी रक्षा करनी है. विदेश क्या सोच रहा है, उसके बारे में अभी नहीं सोचना, वो बाद में देखेंगे.