पटना। बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी 17 से 31 अगस्त तक राज्य में ‘वोट अधिकार यात्रा’ निकालने जा रहे हैं। इस यात्रा को महागठबंधन के लिए चुनावी माहौल बनाने का अहम कदम माना जा रहा है। हालांकि, इस पूरे कार्यक्रम में कांग्रेस के फायरब्रांड नेता और राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले कन्हैया कुमार की गैरमौजूदगी ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।

विशेष टास्क सौंपा गया

कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, कन्हैया को इस यात्रा से अलग रखते हुए उन्हें अन्य राज्यों में पार्टी का विशेष टास्क सौंपा गया है। यह पहली बार नहीं है जब कन्हैया को महागठबंधन के बड़े मंच से दूर रखा गया हो। हाल ही में पटना में हुए विधानसभा मार्च के दौरान भी उन्हें तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के साथ मार्च रथ पर जगह नहीं मिली थी। राजनीतिक चर्चाओं में यह मुद्दा जोर पकड़ रहा है कि कांग्रेस यह कदम तेजस्वी यादव की नाराज़गी को देखते हुए उठा रही है।

कई सवाल खड़े कर रहा है

राहुल गांधी के करीबी होने के बावजूद, बिहार में कन्हैया की भूमिका हाल के वर्षों में सीमित होती नजर आई है। भारत जोड़ो यात्रा के समय कन्हैया राहुल के साथ देशभर में सक्रिय रहे थे और बिहार में कांग्रेस के पुनर्जीवन प्रयासों में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। बावजूद इसके, अब उन्हें राज्य की चुनावी रणनीति से अलग रखना कई सवाल खड़े कर रहा है। सूत्रों का मानना है कि आरजेडी और तेजस्वी की असहमति कन्हैया के लिए सबसे बड़ी अड़चन है।

कन्हैया को मिला देशव्यापी आंदोलन का जिम्मा

बिहार से दूर रहने के बावजूद कन्हैया को कांग्रेस ने SIR (Special Investigation Report) मुद्दे पर देशव्यापी आंदोलन का नेतृत्व सौंपा है। इस अभियान की शुरुआत 14 अगस्त की रात सभी जिला मुख्यालयों में मशाल जुलूस से होगी। इसके बाद 22 अगस्त से 7 सितंबर तक सभी राज्य राजधानियों में ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ रैलियां आयोजित की जाएंगी। अंतिम चरण में 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक देशभर में हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा। इन सभी कार्यक्रमों में कन्हैया अलग-अलग राज्यों में कार्यकर्ताओं को संगठित करेंगे।

बिहार की राजनीति में नए समीकरण

कन्हैया की बिहार यात्रा से दूरी ने कांग्रेस और महागठबंधन की आंतरिक राजनीति को फिर सुर्खियों में ला दिया है। जहां राहुल गांधी और तेजस्वी यादव साथ में चुनावी माहौल बनाएंगे, वहीं कन्हैया का रोल राज्य से बाहर सीमित कर दिया गया है। कांग्रेस के भीतर कुछ नेता इसे एक रणनीतिक कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे कन्हैया के राजनीतिक प्रभाव को सीमित करने की कोशिश बताते हैं। नतीजा जो भी हो, इस फैसले ने चुनावी माहौल में नई गरमी जरूर पैदा कर दी है।

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