आशुतोष तिवारी, जगदलपुर. 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व का मुख्य आकर्षण का केंद्र रथ परिक्रमा का समापन बाहर रैनी रस्म के साथ हुआ। यह रस्म रथ परिक्रमा की आखिरी और सबसे अहम हिस्सा मानी जाती है। इस मौके पर बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने गृह मंत्री अमित शाह के बस्तर दौरे का स्वागत किया और बस्तर को बड़ी सौगात मिलने की उम्मीद जताई।
परंपरा के अनुसार विजय रथ को आदिवासी चोरी कर जंगलों में छिपा देते हैं और फिर राज परिवार को जाकर ग्रामीणों को मनाना होता है। इस बार भी बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव राजमहल से बग्घी पर सवार होकर कुम्हड़ाकोट के जंगल पहुंचे। यहां उन्होंने माड़िया जनजाति के ग्रामीणों के साथ जमीन पर बैठकर नए फसल से बनी खीर खाई और नवाखाई की परंपरा निभाई। इसके बाद ग्रामीणों को मनाकर 8 चक्कों वाले विशालकाय विजय रथ को शाही अंदाज में राजमहल के करीब दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण तक लाया गया। इस मौके पर हजारों की संख्या में आदिवासी समाज, बस्तरवासी और दूसरे राज्यों से आए पर्यटक मौजूद रहे।


जानिए किसे कहते हैं बाहर रैनी रस्म
करीब 600 साल पुरानी यह परंपरा आज भी उतनी ही निष्ठा से निभाई जाती है। मान्यता के अनुसार विजयदशमी की रात माड़िया और गोंड आदिवासी विजय रथ को छिपा देते हैं और अगले दिन राजा को बुलाकर उनके साथ नवाखाई करने के बाद रथ वापस लौटाया जाता है। इसी प्रक्रिया को बाहर रैनी रस्म कहा जाता है।

पूरे बस्तर में मनाया गया नवाखाई का पर्व
बस्तर राज परिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव ने कहा कि विजयदशमी के अगले दिन बाहर रैनी रस्म के दौरान पूरे बस्तर में नवाखाई पर्व मनाया जाता है। नए धान और देसी गाय के दूध से बनी खीर मां दंतेश्वरी को अर्पित करने के बाद ग्रामीणों और राजपरिवार द्वारा प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है। इसके बाद रथ को राजमहल लाने के दौरान देवी-देवताओं की डोलियां आगे चलती हैं, पीछे राजकुमार और अंत में मां दंतेश्वरी का छत्र विराजमान रथ आता है। इसी के साथ बस्तर दशहरे की रथ परिक्रमा की रस्म समाप्त होती है।
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