डॉ. वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में एक बार फिर भाजपा का कमल खिल गया है. बृजमोहन अग्रवाल के चुनावी प्रबंधन के आगे कांग्रेस की तमाम कोशिशें फिर से धराशाई हो गई है. सुनील सोनी ने रिकार्ड मतों से जीतने का रिकॉर्ड बनाया, तो आकाश ने करारी हार का. सुनील सोनी जितने वोटों से जीते हैं उतने वोट तो आकाश को मिले भी नहीं मिले. सुनील सोनी को 89220 और आकाश शर्मा को 43053 वोट प्राप्त हुए हैं.
सुनील सोनी की जीत के पीछे बृजमोहन अग्रवाल का चेहरा
रायपुर के दो बार महापौर और एक बार सांसद रहे सुनील सोनी भाजपा के पुराने चेहरों में से एक हैं. लेकिन इस चेहरे की चमक हमेशा बृजमोहन अग्रवाल के चेहरे के साथ ही रही. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में और खासकर भाजपा में दोनों को एक दूसरे का पर्याय ही कहा जाता है. उपचुनाव में जब भाजपा प्रत्याशियों की तलाश कर रही थी, तब बृजमोहन अग्रवाल की तरफ से कोई नाम राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष दिया गया था, तो वो सुनील सोनी का ही था. कहा जाता है कि राष्ट्रीय नेतृत्व से बृजमोहन अग्रवाल ने कह दिया था कि आप सुनील सोनी को टिकट दीजिए, रिकार्ड जीत मैं दूँगा. आज परिणाम बृजमोहन अग्रवाल के कहे अनुसार ही है. वैसे भी क्षेत्र की जनता से बृजमोहन अग्रवाल ने यह भी कह दिया था कि चेहरा सुनील सोनी जरूर है, लेकिन विधायक की तरह मैं ही आपके साथ रहूंगा.
दरअसल सुनील सोनी को जो रिकार्ड जीत मिली है उसके पीछे कई कारण हैं. इनमें सबसे पहला है सोनी के साथ 8 बार के पूर्व विधायक और सांसद बृजमोहन अग्रवाल का साथ होना. चुनाव का सारा प्रबंधन और संचालन बृजमोहन अग्रवाल की ओर से किया जाना है. राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार होना है. साय सरकार और प्रदेश संगठन की ओर से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को चुनावी समर में उतारना. सरकार की ओर से मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल को चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी देना और प्रदेश संगठन की ओर से वरिष्ठ नेता शिवरतन शर्मा को संयोजक बनाना है. इसके साथ ही भाजपा की अलग-अलग कई टीमें बूथ स्तर पर काम करती है. इन सभी का फायदा सुनील सोनी को सीधे तौर पर हुआ.
भाजपा ने चुनाव प्रबंधन के बीच सामाजिक समीकरण को भी अंतिम समय में साध लिया. ब्राम्हण और मुस्लिम समीकरण को लेकर भाजपा की चिंता तब बढ़ गई थी, जब कांग्रेस ने ब्राम्हण समाज की मांग पर ब्राम्हण प्रत्याशी दे दिया था. ऐसे में भाजपा को यह डर था कि ब्राम्हण और मुस्लिम समीकरण कहीं कांग्रेस के पक्ष में काम कर गया तो बड़ा नुकसान हो जाएगा. लिहाजा इन दोनों ही समाज को साधने में पार्टी के सभी बड़े नेताओं को लगा दिया. संगठन ने मतदान के पहले ब्राम्हण समाज का सम्मेलन कराया. समाज के पदाधिकारियों के साथ रणनीतिक बैठक की. मुस्लिम समाज के नेताओं को साधने में नेता सफल हो गए. इसका असर ये हुआ है कि दोनों ही समाज की बहुलता क्षेत्र में होने के बाद भी मतदान 50 प्रतिशत तक ही हुए. इसका फायदा भाजपा को हुआ और यह परिणाम में अब दिख भी रहा है.
प्रत्याशी चयन में कांग्रेस चूक कर गई ?
यही नहीं भाजपा अपने नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने में तो सफल रही है, लेकिन कांग्रेस ऐसा कर पाने में चूक गई. कांग्रेस अगर नाराज नेताओं को मना पाती, तो आकाश को उन दिग्गज नेताओं के वार्डों से चुनाव नहीं हारना पड़ता जहां से वे लंबे समय से पार्षद हैं. आकाश शर्मा को शायद वैसा समर्थन नहीं मिल पाया जैसा उसने उम्मीद किया था. आकाश की हार की समीक्षा जब पार्टी के नेता करेंगे, तो वजह सामने आएगी. लेकिन प्रारंभिक तौर पर जो कारण दिखाई पड़ते हैं उसमें आकाश का व्यक्तिगत तौर पर मतदाताओं के बीच पहुँच न होना. आकाश को उसके अपने ही ब्राम्हण समाज से पूरा समर्थन नहीं मिलना. मुस्लिम समीकरण को साध नहीं पाना. पार्टी के अंदर की गुटबाजी और भीतरघात होने की आशंका. चुनाव प्रबंधन का कमजोर होना. सत्ता पक्ष के खिलाफ वातावरण बना पाने में सफल न होना. दक्षिण क्षेत्र की जनता पर असर डालने वाला कोई प्रभावी चुनावी मुद्दा नहीं होना. निष्क्रिय बनाम सक्रिय के नारे का गूंजना, लेकिन जनता को प्रभावित न कर पाना.
हार के बाद अब इस बात पर चर्चा और तेज हो गई है कि क्या कांग्रेस प्रत्याशी चयन करने में कोई चूक कर गई ? हालांकि यह चर्चा तब से ही हो रही है, जब से आकाश शर्मा कांग्रेस से पुराने और चर्चित दावेदारों को पछाड़कर प्रत्याशी बनने में कामयाब हो गए थे. कांग्रेस के तमाम दावेदारों में से सबसे मजबूत दावेदार पूर्व महापौर और वर्तमान नगर निगम सभापति प्रमोद दुबे, महापौर एजाज ढेबर, वरिष्ठ पार्षद ज्ञानेश शर्मा के साथ कांग्रेस नेता कन्हैया अग्रवाल थे. लेकिन पार्टी ने इन नेताओं की जगह युवा कांग्रेस के अध्यक्ष आकाश शर्मा पर भरोसा जताया था, लेकिन आकाश पार्टी के भरोसे को जीत में तब्दील कर पाने में कामयाब नहीं रहे. 2008 से लेकर 2024 तक के चुनावों में सबसे कम अंतर से अभी तक सिर्फ कन्हैया अग्रवाल ही हारे हैं. 2008 में इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी योगेश तिवारी करीब 25 हजार, 2013 में डॉ. किरणमयी नायक करीब 35 हजार, 2018 में कन्हैया अग्रवाल करीब 17 हजार, 2023 में रामसुंदर दास महंत करीब 67 हजार और अब 2024 उपचुनाव में आकाश शर्मा 46 हजार से अधिक मतों से चुनाव हारे हैं.
खैर जीत और हार के बीच समीक्षाओं का दौर तो पार्टी में चलेगा ही, लेकिन राजनीतिक गलियारों से बाहर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. पत्रकारों से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों और चौराहों पर लोग यही बात करने लगे हैं कि दक्षिण में खिलता तो कमल है और जीतते बृजमोहन ही हैं.
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