रायपुर- पुलिस कर्मियों के आंदोलन की मजबूत होती नींव के बीच रायपुर एसएसपी अमरेश मिश्रा की एक अपील सामने आई है. इस अपील में पुलिस कर्मियों को उनका फर्ज याद दिलाने की कोशिश की गई है. यह बताया गया है कि पुलिस की सेवा दरअसल खुद को अनुशासित रखने का बोध कराती है. इस पत्र में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि सेवा शर्तों के आधार पर पुलिस कर्मी न तो आंदोलन कर सकते हैं और न ही किसी आंदोलन का हिस्सा बन सकते हैं.

दरअसल बीते एक पखवाड़े से छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में पुलिस कर्मी और उनके परिजन विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. पुलिसकर्मियों और परिजनों के आंदोलन पर सरकार ने सख्ती बरतने के निर्देश दिए हैं. पुलिस मुख्यालय में हुई उच्च स्तरीय बैठक में डीजीपी ए एन उपाध्याय ने भी सभी जिलों के एसपी को निर्देश देते हुए दो टूक कहा है कि आंदोलन में शामिल होने वाले लोगों पर कड़ी कार्ऱवाई की जाए.

आंदोलन की रणनीति बना रहे पुलिस कर्मियों को जारी एसएसपी अमरेश मिश्रा की अपील-

क्या सही है आपका कदम, विचार करें

इन दिनों हम एक अलग सी हवा को महसूस कर रहे हैं अपने विभाग में, जिसकी आधारशिला ही अनुशासन पर राखी गई है. हमारे साथी कर्मचारी अपने बुनियादी मसलों को लेकर चिंता दिखा रहे हैं. इसके लिये परिजनों को मोहरा बनाया जाकर आंदोलन की भूमिका तय की जा रही है. एक तरह से वे इसमे परोक्ष रूप से शामिल हो रहे हैं.आपको पता है कि आप पुलिस की सेवा के खास हिस्से हैं जो हमें खुद अनुशासित रहते हुए, दूसरों को अनुशासन सिखाने का बोध कराती है. विभागीय सेवा शर्तें क्या हैं, इससे भी आप अवगत होंगे ही.

इधर, हाल के कुछ दिनों से बगावती सुर सुनने को मिल रहे है. परिजनों को सामने कर विभाग और सरकार के खिलाफ आंदोलन की पटकथा लिखी जा रही हैं. इसके वर्तमान और भविष्य को जानना भी जरूरी हो जाता है. आपकी जानकारी के लिये यह तथ्य उपयोगी होगा कि पुलिस कर्मी किसी भी तरह के प्रदर्शन या आंदोलन नही कर सकते, शामिल नही हो सकते और ना अपने पक्ष में किसी को अभिप्रेरित कर सकते. पुलिस द्रोह अधिनियम 1922( छग में संशोधित अधिनियम 1981 की धारा 4) के तहत ऐसा करना संबंधित के लिये दण्डनीय है. इसमें सेवा समाप्ति तो है ही, अभियोजन का पक्ष सुने बिना जमानत का प्रावधान भी नहीं. ध्यान रहे, आपके साथ परिवार की अहम जिम्मेदारियां भी हैं. इसलिये अच्छे और गलत कदम के प्रभाव सभी को प्रभावित करेंगे.

आपको समझना होगा कि छत्तीसगढ़ में नक्सल और मैदानी क्षेत्र में भिन्न भिन्न समस्या है. हमारे जवान, कर्मचारी आत्मबल से कर्तव्य निर्वहन कर रहे है. इसलिये आप खुद चिंतन कीजिये. आवास, अवकाश, वेतन, भत्ते, स्वास्थ्य जैसी सुविधा बेशक आवश्यक है. इस दिशा में पुलिस कल्याण बोर्ड के प्रयास से स्थिति बीते वर्षों के मुकाबले सुधरी है. ऐसे प्रयास अभी थमे भी नही है.अर्थात, आपके समग्र हितों के बारे में अनेकों स्थायी और दीर्घकालिक प्रस्तावों पर राज्य सरकार और पुलिस विभाग के अधिकारी गंभीरतापूर्वक विचार कर रहे हैं. विश्वास और धैर्य रखिये, आने वाले समय में दृश्य बेहतर होगा. विनम्र आग्रह, बुरे वक्त में परछाई भी आदमी का साथ छोड़ देती है. दूसरों के उकसावे में आकर हम ऐसा कुछ तो नही करने जा रहे, जिसके लिए पूरी जिंदगी सिर्फ पछताना पड़े। विचार अवश्य करें.