जयपुर। प्रदेश में भीषण गर्मी और बढ़ते तापमान के बावजूद 10 महीने पहले जारी कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने लोगों की जान बचाने के लिए कोई उपाय नहीं किए. इस पर हाई कोर्ट ने गुरुवार को स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दर्ज करने के आदेश दिए.

कोर्ट ने अधिकारियों के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि पिछले साल जारी कोर्ट के निर्देशों को ताक पर रख दिया गया. इससे कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं. अधिकारी खुद को कानून से ऊपर समझते हैं, लेकिन कोर्ट चुप नहीं बैठ सकता. इंसानों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता और न ही जान बचाने के लिए फंड की कमी का बहाना स्वीकार किया जा सकता है.

कोर्ट ने मुख्य सचिव को कोर्ट के आदेशों की पालना के लिए समन्वय समिति बनाने और हीटस्ट्रोक की रोकथाम के लिए कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए. केंद्रीय गृह मंत्रालय, मुख्य सचिव, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और केंद्र व राज्य सरकार के 10 अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है. साथ ही सभी कलेक्टरों को हीटस्ट्रोक से लोगों की जान बचाने के लिए जारी निर्देशों के संबंध में 24 अप्रैल तक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है.

गुरुवार को न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड ने हीटवेव और जलवायु परिवर्तन का स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दर्ज करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि राज्य के कई जिलों में तापमान 50.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है और स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है.

हीटस्ट्रोक से मौतें एक गंभीर चुनौती

कोर्ट ने हीटस्ट्रोक से होने वाली मौतों को एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बताया. इसने कहा कि अधिकारियों को अपने कर्तव्यों से विमुख होने की अनुमति नहीं दी जा सकती. न्यायालय ने इस निष्क्रियता को गंभीर लापरवाही मानते हुए कहा कि यदि आदेशों का पालन नहीं किया गया तो सख्त कार्रवाई की जाएगी. न्यायालय ने कहा कि न्यायालय के आदेश के 10 महीने बाद तक न तो कोई कार्ययोजना बनाई गई और न ही कोई प्रयास किया गया.

न्यायालय ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल आर.डी. रस्तोगी, अतिरिक्त महाधिवक्ता भुवनेश शर्मा, जी.एस. गिल, कपिल प्रकाश माथुर, संदीप तनेजा और विजयन शाह के साथ-साथ अधिवक्ता सुशील डागा, कुणाल जैमन और त्रिभुवन नारायण सिंह से इस मामले में न्यायालय के साथ सहयोग करने को कहा.