Rajasthan News: राजस्थान में बीते कुछ सालों से बच्चों के लापता होने की घटनाएं बढ़ी है। बड़ी संख्या में बच्चों के गायब होने के चलते राज्य के कानून व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। यही वजह है कि अब यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है।

बता दें कि इस मामले की सुनवाई में राज्‍य के पुलिस महानिदेशक उमेश मिश्रा और पांच एसपी को राजस्‍थान उच्‍च न्‍यायालय में पेश होना पड़ा। न्यायाधीश पंकज भंडारी और भुवन गोयल की खंडपीठ के समक्ष अधिकारी पेश हुए।

हाईकोर्ट ने कहा कि आश्रय गृहों या अनाथालयों में रहने वाले बच्चों की जानकारी पुलिस के पास होनी चाहिए। इससे खोए हुए बच्चों की तलाश का काम तेजी से किया जा सके।

कोर्ट ने आगे कहा कि अन्य राज्यों के साथ भी समन्वय की अनिवार्य है ताकि लापता बच्चों की जानकारी जल्दी पहुंच सके। अदालत ने पुलिस अधिकारियों से उन बच्चों की पहचान करने की व्यवस्था के बारे में भी सवाल किया जो भीख मांगने लगते हैं या फिर मर जाते हैं।

अदालत सवाल किया है कि उनके लिए डीएनए टेस्ट की कोई व्यवस्था है? अतिरिक्त महाधिवक्ता घनश्याम सिंह राठौड़ ने जानकारी दी कि राज्य में लापता बच्चों की बरामदगी दर 99 प्रतिशत है जबकि अन्य राज्यों में यह 30 से 40 प्रतिशत ही है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को तय की गई है।

बता दें कि अदालत मुकेश और अन्य द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इसमें पांच जिलों के एसपी अजमेर, भिवाड़ी, अलवर, दौसा और धौलपुर से थे।

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