
Rajasthan News: शाहपुरा. जहाजपुर कस्बे से करीब 10 किमी दूर स्थित घाटारानी माता रानी के मंदिर में नवरात्र पर घट स्थापना के साथ ही गर्भगृह के पट बंद कर दिए जाते हैं. सात दिन मंदिर का गर्भगृह बंद रहता है.
श्रद्धालु गर्भगृह के बाहर ही पूजा करते हैं. अष्टमी पर मंगला आरती के बाद गर्भगृह के पट खुलते हैं. उसके बाद श्रद्धालु गर्भगृह में जाकर दर्शन करते हैं. पुजारी शक्तिसिंह ने बताया कि नवरात्र में पट बंद रखने की परंपरा मंदिर निर्माण के समय से चली आ रही है. अष्टमी को सुबह पट खोले जाते हैं.

तब माता के लिए पचानपुरा के राजपूत परिवार के यहां से भोग आता है. मातारानी को भोग लगाकर गर्भगृह भक्तों के लिए खोला जाता है. मंदिर का निर्माण तंवर राजपूत वंशजों ने विक्रम संवत 1985 में कराया था.
निराहार रहती हैं मातारानी
मान्यता है कि नवरात्र में मातारानी स्वयं निराहार रहकर आराधना में लीन रहती है, इसीलिए पट बंद रखते हैं. अष्टमी तक बाहर से पूजा करते हैं. गर्भग्रह में प्रवेश नहीं रहता है. मातारानी की 6 बार आरती के समय सिर्फ कर्पूर और धूप से पूजा होती है.
माता रानी ने धरा बालिका रूप
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार घटारानी के पहाड़ों पर माता रानी बालिका रूप में प्रकट हुई और पहाड़ के नीचे निकल रही नदी किनारे गायों का दूध पीती थीं. एक दिन ग्वाले ने माता को देखा और पीछा किया तो पहाड़ पर चढ़कर माता पानी भूमि में समाहित होने वाली थीं. तब से ही माता की पूजा दो स्थानों पर पहाड़ व नदी किनारे बने मंदिर में होती है.
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