Rajasthan News: दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में गिनी जाने वाली अरावली आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। दिल्ली से गुजरात तक फैली यह पर्वतमाला पर्यावरणीय संतुलन की रीढ़ मानी जाती है, लेकिन अवैध खनन और नीतिगत ढील ने इसे गंभीर संकट में डाल दिया है। हालात यह हैं कि बीते कुछ दशकों में अरावली का बड़ा हिस्सा या तो क्षतिग्रस्त हो चुका है या पूरी तरह गायब हो गया है।
अरावली का करीब दो-तिहाई भाग राजस्थान से होकर गुजरता है। अलवर, एनसीआर, सीकर और नीमकाथाना जैसे इलाकों में अवैध खनन का जाल खुलेआम फैला हुआ है। कागजों में बंद खदानों में भी मशीनें जमी हैं और स्थानीय लोग बताते हैं कि रात के अंधेरे में खनन का काम लगातार जारी है। भानगढ़ के आसपास ऐसी कई खदानें मिलीं, जिनके ठीक पीछे अरावली की पहाड़ियां हैं और सामने अवैध माइनिंग के साफ निशान।

सरिस्का टाइगर रिजर्व से सटे टहला क्षेत्र में हालात और भी चिंताजनक हैं। यहां खनन माफियाओं का ऐसा दबदबा है कि लोग रास्ता बताने तक से डरते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि माफिया के खिलाफ बोलने वालों पर हमले होते हैं, यहां तक कि पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारी भी निशाने पर रहते हैं। कई जगहों पर खदानों में काम चलता मिला, लेकिन कैमरा देखते ही लोगों ने रोकने और पीछा करने की कोशिश की।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में अरावली का करीब 35 फीसदी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट में पेश केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) की रिपोर्ट बताती है कि 2018 तक राजस्थान में ही अरावली का 25 फीसदी क्षेत्र प्रभावित या नष्ट हो चुका था। अब पर्यावरण मंत्रालय की ओर से दी गई नई परिभाषा ने चिंता और बढ़ा दी है।
मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में जो नया ड्राफ्ट पेश किया है, उसके मुताबिक केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची पहाड़ियों को ही संरक्षित अरावली माना जाएगा। इसका असर यह होगा कि अरावली की अधिकांश पहाड़ियां कानूनी संरक्षण से बाहर हो जाएंगी।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान के 15 जिलों में अरावली की 12,081 पहाड़ियां 20 मीटर से ज्यादा ऊंची हैं। इनमें से सिर्फ 1,048 पहाड़ियां ही 100 मीटर से अधिक ऊंचाई की हैं, यानी महज 8.7 फीसदी। बाकी हजारों पहाड़ियां अब अरावली की परिभाषा से बाहर हो जाएंगी, जिससे उन पर खनन का रास्ता खुल जाएगा।
पर्यावरणविद एल.के. शर्मा का कहना है कि पहाड़ियों की ऊंचाई जमीन से मापना वैज्ञानिक रूप से गलत है। उनका साफ कहना है कि इससे 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों पर खनन को खुली छूट मिल जाएगी और अरावली का तेजी से विनाश होगा। सामाजिक कार्यकर्ता और ‘पीपल फॉर अरावली’ की संस्थापक सदस्य नीलम आहलूवालिया ने इस फैसले के खिलाफ जन आंदोलन की चेतावनी दी है।
अरावली सिर्फ पहाड़ों की श्रृंखला नहीं है, यह राजस्थान और आसपास के राज्यों के लिए जीवनरेखा है। यह पर्वतमाला भूजल रिचार्ज में अहम भूमिका निभाती है। रिपोर्ट के अनुसार, अरावली हर साल प्रति हेक्टेयर करीब 20 लाख लीटर भूजल रिचार्ज में मदद करती है। यही पर्वतमाला मानसून को राजस्थान की ओर मोड़ती है, वरना बारिश पाकिस्तान की ओर निकल जाती।
करीब 692 किलोमीटर लंबी अरावली राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के लिए प्राकृतिक ढाल का काम करती है। यह रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल और प्रदूषक कणों को भी रोकती है। अगर अरावली खत्म हुई, तो इसका असर सिर्फ पर्यावरण पर नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा।
पढ़ें ये खबरें
- मोतिहारी: रक्सौल बॉर्डर पर नार्को-आतंक नेटवर्क का भंडाफोड़, सेना का भगोड़ा जवान गिरफ्तार, पाकिस्तान से लिंक का भी खुलासा
- हाईवे पर दर्दनाक हादसाः ट्रक के पीछे तेज रफ्तार बाइक घुसी फिर कार भी टकराई, कार चालक की मौत, 6 घायल
- Delhi AQI Update: दिल्ली की हवा की स्थिति बेहद गंभीर श्रेणी में, AQI लेवल 455 के पार, रेड जोन में ये 39 इलाके
- करणी सैनिकों पर लाठीचार्ज का मामला: 21 सूत्रीय मांगों को लेकर हरदा में जन क्रांति न्याय आंदोलन, 3 जिलों से बुलाया गया फोर्स, 1500 जवान रहेंगे तैनात
- New World Record in Test: 4 पारियों में 4 शतक, टेस्ट में बन गया नया वर्ल्ड रिकॉर्ड, इन 2 ओपनर्स के कमाल से दुनिया हैरान

