Rajasthan News: संभाग के सबसे बड़े महाराणा भूपाल चिकित्सालय में खर्च बचाने के लिए शुरू किया गया नया प्रयोग मरीजों के लिए मुसीबत बन गया है। पिछले एक महीने से एक्स-रे फिल्मों की जगह मोबाइल पर तस्वीरें या ग्लोसी पेपर पर प्रिंट दिए जा रहे हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता खराब होने से डॉक्टरों को मरीजों की स्थिति का सही आकलन करने में दिक्कत हो रही है। अस्पताल प्रबंधन इसे लागत बचाने का प्रयोग बता रहा है, लेकिन मरीजों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वालों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

इमरजेंसी और ओपीडी में सबसे ज्यादा दिक्कत

आरएनटी मेडिकल कॉलेज के अधीन संचालित अस्पतालों में 11 एक्स-रे मशीनें हैं, जो इमरजेंसी, ओपीडी, ट्रॉमा, एसएसबी और एमआरआई ब्लॉक में लगी हैं। इनमें से इमरजेंसी और ओपीडी में मोबाइल कैप्चर और ग्लोसी पेपर प्रिंट का उपयोग हो रहा है। ग्लोसी पेपर पर प्रिंट 30-35 एक्स-रे के बाद हल्का पड़ रहा है, और मोबाइल पर ली गई तस्वीरें साफ नजर नहीं आतीं। पिछले दो दिनों से प्रिंटर खराब होने के कारण स्थिति और बिगड़ गई है। केवल उन मरीजों को ही एक्स-रे फिल्म दी जा रही है, जिनके पास एंड्रॉयड मोबाइल नहीं है।

मरीजों की बढ़ती संख्या, बढ़ी परेशानी

सर्दी, खांसी, वायरल और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के कारण अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ रही है। रोजाना 4500-5000 मरीज ओपीडी में आ रहे हैं, जिनमें 1500 ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। प्रतिदिन 1000-1200 एक्स-रे हो रहे हैं, जिनमें से 350 इमरजेंसी में हैं। खराब गुणवत्ता वाले ग्लोसी पेपर और मोबाइल तस्वीरों के कारण ग्रामीण मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है।

क्या कहते हैं आंकड़े

  • ओपीडी मरीज: 4500-5000 रोजाना
  • ग्रामीण मरीज: 1500
  • रोजाना एक्स-रे: 1000-1200
  • इमरजेंसी में एक्स-रे: 350
  • एक्स-रे फिल्म की लागत: 60 रुपये प्रति फिल्म
  • ग्लोसी पेपर की लागत: 100 रुपये प्रति रीम
  • मोबाइल कैप्चर की लागत: शून्य

मरीजों की शिकायत, प्रबंधन का दावा

मरीजों का कहना है कि खराब गुणवत्ता के कारण डॉक्टर उनकी स्थिति का सही आकलन नहीं कर पा रहे, जिससे इलाज में देरी हो रही है। वहीं, अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि यह लागत बचाने का अस्थायी प्रयोग है। हालांकि, मरीजों का कहना है कि इस प्रयोग ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

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