Rajasthan News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से न केवल निर्णय लेने की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि महिलाओं से जुड़े मामलों पर इसका सकारात्मक प्रभाव भी पड़ेगा। कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट का नौ महीने पुराना फैसला पलटते हुए एक महिला न्यायिक अधिकारी की सेवा बहाल करने का आदेश दिया।

यह महिला अधिकारी अनुसूचित जनजाति से हैं और उन्होंने 2017 में राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा पास की थी। फरवरी 2019 में दो साल की प्रोबेशन पर उनकी नियुक्ति हुई थी, लेकिन मई 2020 में बिना किसी ट्रांसफर आदेश के उन्हें यह कहते हुए सेवा से हटा दिया गया कि वे स्थायी नियुक्ति के योग्य नहीं हैं। उस समय वह एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति से भी जूझ रही थीं।
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि महिला को मामूली अनियमितता पर मृत्युदंड जैसा कठोर दंड दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की न्यायिक प्रणाली में भागीदारी को व्यापक दृष्टिकोण से देखने की ज़रूरत है, जिसमें उनके प्रवेश, निरंतरता और वरिष्ठ पदों तक पहुंच शामिल है।
पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि विविधता से भरपूर और समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली न्यायपालिका, सामाजिक और व्यक्तिगत मुद्दों को अधिक संवेदनशीलता और प्रभावी ढंग से समझ सकती है।
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