Rajasthan News: देश की कोचिंग राजधानी कहे जाने वाले कोटा से एक और दर्दनाक खबर सामने आई है। NEET परीक्षा से ठीक कुछ घंटे पहले, पार्श्वनाथ बिहार इलाके में रह रही एक नाबालिग छात्रा ने आत्महत्या कर ली। छात्रा अपने परिवार के साथ कोटा में रहकर मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी। रविवार को उसका NEET का पेपर था, लेकिन शनिवार रात उसने अपने कमरे में चुन्नी से फंदा लगाकर जान दे दी।

घटना की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची और छात्रा को एमबीएस अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। शव को मोर्चरी में रखवाया गया है और पोस्टमार्टम रविवार सुबह किया जाएगा। मृत छात्रा मूल रूप से मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले की रहने वाली थी।

कोटा की भयावह तस्वीर, 2025 में अब तक 15 छात्रों की आत्महत्या

यह घटना इस साल कोटा में हुई आत्महत्याओं की एक लंबी श्रृंखला का हिस्सा बन गई है। साल 2025 की शुरुआत से अब तक 15 छात्र-छात्राएं आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें से अधिकांश मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे।

2025 में आए आत्महत्या के मामले

  • 03 मई: NEET परीक्षा से एक दिन पहले नाबालिग छात्रा ने कोटा में फांसी लगाई
  • 28 अप्रैल: बिहार के कटिहार से आया छात्र तमीम इकबाल कोचिंग के 15 दिन बाद ही आत्महत्या
  • 24 अप्रैल: दिल्ली निवासी छात्र रोशन शर्मा का शव रेलवे ट्रैक के पास मिला
  • 22 अप्रैल: बिहार निवासी एक और छात्र ने हॉस्टल में फांसी लगाई
  • 05 अप्रैल: राजस्थान की 11वीं की छात्रा ने पढ़ाई के तनाव में जान दी
  • 31 मार्च: यूपी के उज्ज्वल मिश्रा ने ट्रेन के सामने कूदकर जान दी
  • 25 मार्च: बिहार निवासी छात्र हर्षराज शंकर ने हॉस्टल में आत्महत्या
  • 06 मार्च: राजस्थान के सुनील बैरवा ने हॉस्टल में फांसी लगाई
  • 11 फरवरी: राजस्थान के अंकुश मीणा की आत्महत्या
  • 22 जनवरी: असम के छात्र पराग और गुजरात की छात्रा अशफा शेख ने अलग-अलग घटनाओं में फांसी लगाई
  • 18 जनवरी: राजस्थान के मनन जैन ने आत्महत्या की
  • 16 जनवरी: उड़ीसा के अभिजीत गिरी ने हॉस्टल में आत्महत्या की
  • 09 जनवरी: मध्य प्रदेश के अभिषेक लोधा ने हॉस्टल में जान दी
  • 08 जनवरी: हरियाणा के नीरज ने फांसी लगाई

कोटा: कोचिंग हब या मानसिक दबाव का केंद्र?

कोटा हर साल लाखों छात्रों का भविष्य संवारता है, लेकिन इसकी एक स्याह सच्चाई भी है अत्यधिक मानसिक दबाव। 14–18 वर्ष की आयु के छात्र घरों से दूर, अकेलेपन, परीक्षा का डर, परिवार की उम्मीदों और प्रतिस्पर्धा के बोझ से जूझते हैं। इनमें से कई छात्र मानसिक रूप से टूट जाते हैं, और कुछ इस हद तक कि वे जीवन ही छोड़ देते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य, परामर्श, और भावनात्मक समर्थन भी उतना ही ज़रूरी है। कोचिंग संस्थानों, परिवारों और समाज को यह समझना होगा कि हर छात्र सिर्फ अंक नहीं, एक संवेदनशील जीवन है।

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