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Rajasthan Politics: राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों के उपचुनावों में कांग्रेस की बड़ी हार के बाद पार्टी के भीतर हलचल तेज हो गई है। हार के कारणों का पोस्टमार्टम शुरू हो गया है, और कई महत्वपूर्ण खामियों की पहचान की जा रही है।
टिकट वितरण में हुई बड़ी चूक
कांग्रेस नेताओं का मानना है कि हार का मुख्य कारण टिकट वितरण प्रक्रिया में सांसदों पर अति निर्भरता और स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी रहा। टिकट वितरण के लिए जयपुर में हुई बैठक को केवल औपचारिकता बताया जा रहा है। प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने लोकसभा चुनाव में सांसदों की भूमिका को देखते हुए टिकट वितरण का जिम्मा उन्हीं पर छोड़ दिया, लेकिन यह निर्णय पार्टी के लिए भारी पड़ा।
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परिवारवाद और स्थानीय नाराजगी बनी हार का कारक
सांसदों की सिफारिश पर कई नए चेहरों और परिवारवाद को बढ़ावा दिया गया, जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ा। झुंझुनू में सांसद बृजेन्द्र ओला के बेटे अमित ओला, देवली उनियारा में हरीश मीणा की सिफारिश पर KC मीणा, और दौसा में मुरारीलाल मीणा की सिफारिश पर DC बैरवा को टिकट दिया गया। रामगढ़ सीट पर सहानुभूति कार्ड खेलते हुए ज़ुबैर खान के बेटे आर्यन खान को टिकट दिया गया।
हालांकि, कांग्रेस केवल दौसा की सीट पर मामूली अंतर से जीत पाई, जबकि बाकी छह सीटों पर पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
स्थानीय नेतृत्व की अनदेखी और थिंक टैंक की निष्क्रियता
स्थानीय कार्यकर्ताओं और नाराज नेताओं को मनाने में पार्टी पूरी तरह नाकाम रही। खींवसर सीट पर कांग्रेस ने भाजपा के हनुमान बेनीवाल को हराने के लिए सवाई सिंह की पत्नी डॉ. रतन को टिकट दिया, लेकिन इस रणनीति ने भी काम नहीं किया। सलूम्बर और चौरासी जैसी सीटों पर कांग्रेस को पहले से ही कोई उम्मीद नहीं थी।
कांग्रेस को निष्क्रिय नेताओं से पीछा छुड़ाने की जरूरत
पांच महीने पहले लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस की इस हार ने कार्यकर्ताओं को निराश कर दिया है। अगर पार्टी को निकाय और पंचायत चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करना है तो फुल-टाइम प्रभारी की नियुक्ति और निष्क्रिय नेताओं से छुटकारा पाना जरूरी होगा।
बता दें कि कांग्रेस अब हार के कारणों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रही है, जिसे आलाकमान को भेजा जाएगा। पार्टी नेताओं का मानना है कि आगामी चुनावों में जीत के लिए संगठन में बड़े बदलाव और जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है।
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