रायपुर. कांग्रेस ने अनुभवी नेता राजेंद्र तिवारी को खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड की कमान सौंपी है. संगठन में लगातार कई साल रहने के बाद राजेंद्र तिवारी को अब मौका मिला है कि सत्ता के साथ गलबहियां कर सकें. माना जा रहा है कि बड़े नेताओं से करीबी, अपनी वाकपटुता और संगठन में लंबे अनुभव के एवज में इस पद से उन्हें नवाज़ा गया है.
कांग्रेस में उनकी गिनती विद्वान नेताओं में होती है. जो पढ़ते भी हैं और अच्छा बोलते भी हैं. तिवारी बेहद शौकीन आदमी हैं. वे खाने-खिलाने और चाय पीने के साथ घुमने के शौकीन हैं. 50 से ज़्यादा देशों की यात्राएं उन्होंने की है.
तिवारी का मध्यप्रदेश के ज़माने में बड़ा जलवा था. 90 के दशक में कांग्रेस की राजनीति में उनकी तूती बोलती थी. वे वीसी शुक्ल के सबसे करीबी नेताओं में शुमार किए जाते थे. जब दिग्विजय सिंह पार्टी के अध्यक्ष थे तो राजेंद्र तिवारी उनके प्रभारी महामंत्री थे. राजेंद्र तिवारी वीसी शुक्ला के करीबी माने जाते रहे हैं. लेकिन उनकी दिग्विजय सिंह से भी करीबी थी. उनके करीबी बताते हैं कि राजेंद्र तिवारी की सबसे बड़ी खूबी रही है कि उन्होंने उन्होंने कट्टर प्रतिद्वंदियों को भी साधे रखा.
हालांकि राजेंद्र तिवारी जिस बोर्ड की जवाबदेही मिली है, वो मलाईदार नहीं माना जाता. लेकिन जिस दौर में तिवारी को ये जिम्मेदारी मिली है. उस समय इसकी प्रासंगिकता काफी ज़्यादा है. राजेंद्र तिवारी ने गांधी को खूब पढ़ा है. उन्हें मालूम है कि गांधी, खादी और ग्रामोद्योग की अहमियत आज के संदर्भ में क्या है. माना जा रहा है कि राजेंद्र तिवारी के लिए खुद को फिर से साबित करने का ये बेहतरीन मौका है.
उनके पदभार ग्रहण करने के बाद राजेंद्र तिवारी से हमने बात की.
रूपेश गुप्ता- राजेंद्र तिवारी जी आपको खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड की कमान दी गई है. आपको एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इस मायने में दी गई है कि लॉकडाउन के पीरियड में कोरोना के दौर में हमने देखा कि बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन हुआ और चर्चा इस बात की है कि अब उनको उन्हीं के क्षेत्र में काम दिया जाए तो प्रासंगिकता बढ़ जाती है कि ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया जाए नई स्कीम्स लाई जाए क्या प्लानिंग है आपकी.
राजेन्द्र तिवारी- प्रदेश के मुखिया और हम सब के नेता भूपेश बघेल ने जिस स्वप्न को संजोया हुआ है कि छत्तीसगढ़ की सर्वांगीण विकास हो, खासतौर से ग्रामीण अंचलों में ऐसा विकास हो जो लोगों को न केवल रोजगार दिलाये बल्कि आर्थिक रूप से संपन्न भी बनाए. इसलिए नरवा, गरवा, घुरवा, बारी-जो उनकी महत्वकांक्षी योजना है-उससे खादी और ग्रामोद्योग को जोड़ने का प्रयास हुआ है.
पहली बात तो ये है छत्तीसगढ़ में असीम संभावना है और इस संभावनाओं को संभव करके दिखाने का बीड़ा उठाया है भूपेश बघेल ने. उन्होंने सत्ता संभालते ही सबसे पहले सर्वाधिक उपेक्षित क्षेत्र गांव का विकास उसकी तरफ ध्यान दिया और उसके पीछे बुनियादी बात है कि गांव का सर्वांगीण विकास हो सके. अभी गौठान के बगल में एक एकड़ की जमीन भी दी जाएगी. जिसमें छोटे कुटीर उद्योग बनाए जाएंगे. इससे दो लाभ होंगे. पहला लोगों को रोजगार मिलेंगे. दूसरा गांव में संपन्नता आएगी. जिसकी झलक रायपुर की बाजारों में देखने को मिलेगी. मेरा उद्देश्य ही यही है कि गांव के उद्योग धंधों को बढ़ावा मिले.
इस बोर्ड को भारतीय जनता पार्टी ने उपेक्षित करके रखा था. केवल इसलिए क्योंकि ये गांधी के विचारों से जुड़ी हुई संस्था थी. गांधी ने ग्राम स्वराज का सपना देखा था. उस सपने को साकार करने की दिशा में कांग्रेस की सरकार ने सार्थक कदम बढ़ाए. पूरी दुनिया में गांधी के विचारों को लोग आज प्रासंगिक मानने लग गए है. मेरी योजना तो यह है कि मैं खादी से प्रारंभ करूं. इसमें उन्हीं लोगों को जोड़ा जाएगा जो शुद्ध रूप से सेवा की भावना से काम करने की इच्छा रखते हैं. भूपेश बघेल की इच्छा के अनुरूप और हम सब महात्मा गांधी के विचारों से ओतप्रोत है. चुनौती यह है कि इसको जितना अवसर मिलना चाहिए था उतना नहीं दिया गया. सब लोगों को अपने मनोवृति को बदलना पड़ेगा बोर्ड के अंदर काम करने वाले कर्मचारियों को भी और इससे जुड़े हुए लोगों को भी और शुद्ध सात्विक और सेवा की भावना से काम करना होगा इस चुनौती को एक चुनौती के रूप में इस बात को स्वीकार करता हूं और फिर भी नहीं सुधरे तो फिर उनके लिए ठीक नहीं होगा. 15 साल भाजपा के शासन काल में इस बोर्ड को इसलिए ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी गई क्योंकि इसके लिए गांधी का नाम जुड़ा हुआ था.
मेरा प्रयास ये होगा कि छत्तीसगढ़ की खादी, कोसा, सिल्क ये विदेशों में बिके. अभी तक यह परेशानी हो रही थी जो लोग यहां बैठे हुए थे इन्होंने कभी इसकी मार्केटिंग की दिशा में विचार ही नहीं किया. हमको छोटे बुनकरो को मदद देनी है. अगर उत्पादन हुआ और उत्पादन बिका नहीं तो फिर उत्पादन का मतलब क्या है ? मैं यह चाहूंगा कि छोटे बुनकरो से लेकर छोटे स्तर पर जो उद्योग धंधे खुलेंगे, गांव के स्तर पर उसमें उत्पादन हो और उन उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिकने की व्यवस्था हो.
रूपेश गुप्ता- कांग्रेस की सरकार ने लगातार कोशिश की है कि खादी को स्थापित किया जाए. ग्राम उद्योग को बढ़ावा दिया जाए लेकिन व्यवहारिक तौर पर नजर नहीं आता है. आमतौर पर तीन बड़ी वजह है. उनको फाइनेंस की समस्या होती है. टेक्नोलॉजी नहीं मिल पाती. जो नई टैक्नॉलॉजी होती है वो हमेशा बड़े प्लेयर्स और बड़े कंपनियों के पास जाती है. तीसरा यह लोग वक्त के हिसाब से इनकी जो परंपरागत काम है उसे मॉडर्नाइजेशन नहीं किया जाता है तो इन तीनों प्रॉब्लम को किस तरह से मद्देनज़र करेंगे.
राजेंद्र तिवारी- आपने बिल्कुल ठीक कहा पूरा प्रोत्साहन मिलना चाहिए. प्रोत्साहन केंद्र की सरकार भी दे रही है. यह स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है. स्थिति ये है कि यदि गांव में कोई छोटा उद्योग अगर लगाता है तो अगर महिला है तो उसको अपनी जेब का मात्र 5% देना है पुरुष है तो 10% देना है. बाकी की पूरी राशि उसको बैंक से मिल जाती है. सब्सिडी के रूप में मिल जाती है. सवाल इस बात का है कि इस बात को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. जो अभी तक भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में दुर्भाग्य से नहीं हुआ है मेरा प्रयास होगा कि लोगों को आर्थिक मदद मिले. छोटे कुटीर उद्योग प्रारंभ करें. मार्केटिंग ओर प्रोडक्शन दोनों साइड में हमे देखना पड़ेगा. ग्रामोद्योग में मिनी राइस मिल से लेकर के उद्योग धंधों की असीम संभावनाएं हैं और उन सारी संभावनाओं को हम धीरे-धीरे करके संभव बनाने का प्रयास करेंगे
रूपेश गुप्ता- राहुल गांधी बार-बार वह क्रोनी केपटेलिज्म की बात करते है. सिर्फ वही बात नहीं करते. बल्कि दुनिया के तमाम देशों में इस बात की चिंता जाहिर की जा रही कि संसाधन कुछ हाथों में सिमटते जा रहे और ऐसे गांधी की प्रासंगिकता और बढ़ती जा रही है. आप क्या सोचते हैं ?
राजेंद्र तिवारी- आज जिस तरह का वातावरण पूरी दुनिया परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं, पूरी दुनिया को छोड़ दीजिए अभी आप भारतवर्ष में देख रहे हैं. पूंजी कुछ लोगों के हाथ में सिमट कर रह गई है. 4 फीसदी लोगों के हाथ में पूरे भारत के 96 प्रतिशत पैसे हैं. 96 प्रतिशत लोग एक तरफ और 4 प्रतिशत लोग एक तरफ. मेरा प्रयास होगा कि गांव के धंधे छोटे छोटे स्तर पर लोग स्वरोजगार की तरफ आगे बढ़े और बड़े पैमाने पर बढ़े. पूरे बस्तर में जिस तरह की कलाकृति घर में बैठकर बनाते हैं वह अद्भुत है. उसे मार्केटिंग की आवश्यकता है.हमारे यहां कोसा विदेशों में बिकता है और भी ज्यादा बिकने की आवश्यकता है. खादी का उद्देश्य क्या था. लोग घर- घर खादी बनाएं और उसे बेचे. तो हर घर में रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और गांधी का सपना था ग्राम स्वराज का. तो भूपेश बघेल जी गांधी के रास्ते पर चलने का काम कर रहे है. लॉकडाउन व कोरोना के के बाद जो स्थिति बनी है. 7 लाख लोग जो बाहर से आए उनके रोजगार देने की आवश्यकता है. रोजगार की दिशा में सबसे सार्थक कदम छतीसगढ़ ने बढ़ाया है.
रुपेश गुप्ता- बहुत-बहुत धन्यवाद।
राजनीतिक करियर-
राजेंद्र तिवारी ने अपनी राजनीतिक यात्रा करीब-करीब आपातकाल में की थी. वीसी शुक्ल के करीबी राजेंद्र तिवारी 1975 में यूथ कांगएस के जिलाध्यक्ष बने. इसके बाद वे जिला कांग्रेस के महामंत्री बने. राजेंद्र तिवारी के लिए 90 का दशक उपलब्धियों और सफलताओं का दशक था. 91 में वे प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री बने. इस दौरान चार साल वे प्रभारी महामंत्री रहे. जिस दौर में कांग्रेस और सत्ता में उनकी तूती बोलती थी. कहा जाता है कि वे वीसी और दिग्विजय सिंह के बीच समन्वय स्थापित करते थे.
1993 में उन्हें कांग्रेस से रायपुर ग्रामीण की टिकट मिली. लेकिन वे तरुण चटर्जी से चुनाव हार गए.इसके बाद वे कभी चुनावी राजनीति में नहीं आए. 94-95 में उन्हें राज्य उद्योग निगम का अध्यक्ष बनाया गया. कई दफे उनका नाम विधानसभा और लोकसभा में टिकट के दावेदार के तौर पर आया. लेकिन उन्होंने न खुलकर टिकट की मांग न ही उन्हें टिकट दी गई.
जब छत्तीसगढ़ बना तो वे मीडिया विभाग के प्रभारी थे. वे लगातार इस विभाग के अध्यक्ष बने रहे. हालांकि जब वीसी शुक्ल ने पार्टी छोड़ी तो राजेंद्र तिवारी ने उनका साथ छोड़ दिया.
साल 2011 में नंद कुमार पटेल के अध्यक्ष बनने के बाद उनसे ये जिम्मेदारी ले ली गई और शैलेष नितिन त्रिवेदी को उनकी जगह बैठाया गया. लेकिन वे लगातार संगठन में उपाध्यक्ष या महामंत्री बने रहे. भूपेश के अध्यक्ष बनने के बाद वे संगठन में फैसला लेने वाली समन्वय समिति के सदस्य के तौर पर रहे.
नकारात्मक पहलू-
राजेंद्र तिवारी को सत्ता की ताकत को काफी पहले पा चुके हैं. शीर्ष पर काम करने के बाद नीचे काम करना मुश्किल होता है. ये मुश्किल अक्सर राजेंद्र तिवारी के साथ दिखती है. इससे ऊबरते हुए काम करना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी. लंबी राजनीति के बाद भी राजेंद्र तिवारी की पहचान संगठन की रही. उन्होंने खुद को जनाधार वाला नेता के रुप में स्थापित करने की कोशिश नहीं की. लिहाज़ा वे अपनी पहुंच और काबिलियत को भुना नहीं पाए हैं.