आज बड़ी विपरीत परिस्थितियों एवं प्राकृतिक विश्व आपदा की अनिश्चितता की स्थिति में हम श्री राम का प्रागट्य उत्सव मना रहे हैं। हमारे पुराणों के अनुसार जब-जब इस देश में धर्म का, मानवीय मूल्यों का ह्रास होता है, चिंतन में अपवित्रता आ जाती है। सामाजिक मूल्य बौने हो जाते हैं। पूरा जनमानस अपने आप को असुरक्षित अनुभव करने लगता है। तब वह दिव्य भगवदीय सत्ता कभी राम के रूप में तो कभी कृष्ण के रूप में अवतरित होकर धर्म की स्थापना करके सामाजिक संतुलन बनाते हैं।
“जब जब होय धरम की हानी।”
“परित्राणाय साधु नाम विनाशाय च दुष्कृताम।।”
आज हमारी सोच बिखर रही है। सामाजिक एवं पारिवारिक संबंध संकीर्ण होते जा रहे हैं, सिमटते सचले जा रहे हैं। हममें संवेदना का अभाव हो रहा है। हमारा व्यवहार शुष्क नीरस एवं क्रूर हो रहा है। परिस्थितियां चाहे जो भी हो जैसी भी हो एकमात्र समाधान भारत का आध्यात्म है। और वो ही ‘राम ‘है श्री कृष्ण की लीला है और राम का चरित्र है।
हमारे देश के शील संयम सौहाद्र का नाम ही श्री राम है। श्री राम का संपूर्ण जीवन दर्शन आचरण की संहिता है। आज भी चिलचिलाती हुई धूप में एक मजदूर पसीने से लथपथ जब किसी दूसरे मजदूर से मिलता है तो कहता है राम-राम भाई। तात्पर्य इस देश के अभिवादन में श्री राम हैं, जब कोई विषम परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं तो लोग आपस में कहते हैं- “होइहैं वही जो राम रचि राखा।” इस देश के अवलम्बन का नाम राम है।
अनायास कोई अप्रत्याशित घटना घट जाती है तो लोग कहते हैं हे राम ! यह क्या हो गया ? इसका सीधा अर्थ है इस देश के आश्चर्य का नाम राम है ! इसका आशय ये है की हमारे देश में अभिवादन से लेकर आश्चर्य तक राम ही राम हैं। ऐसे प्रभु श्री राम का आज प्रगट उत्सव है। संबंधों का निर्वाह और उसकी प्रगाढ़ता को समझना है तो हमें श्री राम को समझना होगा। विकसित और संक्रमित संस्कृति में , परिवार में, वृद्धजनों को समाज में बोझ माने जाने लगा है। ऐसे भटके हुए लोगों के लिए श्री राम एक आदर्श हैं और आज भी प्रासंगिक हैं।
श्रीराम ने कहा था-
“तनय मातु पितु तोषनीहारा।
दुर्लभ जननी सकल संसारा।।”
श्री राम का जीवन दर्शन तथा श्री रामचरितमानस की चौपाई आज भी पूरे समाज को झकझोर कर उठाती है। माता-पिता वृद्धजन और समाज के प्रति हमारे कर्तव्य का आग्रह करते हुए प्रतीत होती है। उसका आग्रह स्पष्ट है- वृद्ध समाज की परिवार की समस्या नहीं समाधान हैं। पाश्चात्य संस्कृति के संक्रमण से पारिवारिक सद्भाव लुप्त हो रहे हैं, बंधुत्व कहर रहा है, ममता विकास की धुंध में अपना अस्तित्व खोज रही है। परिवार में भाईयों के बीच थोड़ी सी संपत्ति के लिए दीवार खींच रही हैं, इस विपन्न मानसिकता का समाधान श्रीराम के जीवन दर्शन से मिलेगा। साधारण वैभव नहीं अयोध्या का राज वैभव जो कुबेर को चुनौती देने का सामर्थ्य रखता था उसके श्री राम को वनवास और उनके स्थान पर भरत को राजतिलक की बात आई तो दोनों भाईयों का स्नेह सकल विश्व के सामने बंधुत्व का एक उदाहरण पेश किया। ऐसे वैभवशाली अयोध्या का राज्य एक गेंद की तरह बन गया था और बन्धुत्व धन्य हो गया था। धर्म के साक्षात विग्रह थे श्री राम। ऊंच-नीच के भेदभाव से हटकर एक उदारवादी संरचना के संपोषक हैं श्री राम। भयमुक्त और विश्वास एवं उदार भारत की परिकल्पना प्रभु श्री राम के जीवन में है। इसलिए गंगा के पावन तट पर सर्वप्रकार की उपेक्षा के हलाहल को पीने वाले निषादराज की उन्होंने सामाजिक प्राण प्रतिष्ठा गंगा के किनारे करके उन्होंने अपनी मंशा अपने उद्देश्य तथा संकल्प को स्पष्ट कर दिया था। आज इस बात की आवश्यकता की हम अपनी सोच को अधिकार परक नहीं कर्तव्य परक बनाए। सुख पर कुंडली मारकर बैठने वाले श्री राम को कैसे समझ पाएंगे ?
स्वर्गीय गर्जन सिंह दुबे ने लिखा था-
गरल पान कर सको तो,रामचंद्र बन सकते हो।
राजतिलक को त्याग सको तो ,रामचन्द्र बन सकते हो।।
आज के परिदृश्य में यह पंक्तियां कितनी प्रासंगिक लगती हैं। श्री राम और रामचरितमानस हमारे प्रेरणा पुंज हैं। भारत का अध्यात्म समृद्ध है, सशक्त है। आवश्यकता है उनके अंतर स्वरों को, उनके संकेतों को समझने की। आज हमारी मान्यताएं हमारे संस्कार जेष्ठता और श्रेष्ठता के चलते ध्वस्त हो रही हैं। हमें समय रहते लौटना होगा अपने अतीत की ओर। विकास की अंधी दौड़ में हम दिशाहीन हो गए है। आज किसी भी सम्पन्न घर में कोई सज्जन जाए तो स्वागत कक्ष में कई प्राकृतिक दृश्यों के चित्र कुछ राजनेता एवं कुछ अभिनेताओं के चित्र लगे मिलेंगे, साथ ही हमारे आराध्य गणेश जी और हनुमान जी के चित्र भी मिलते हैं। किसी नेता के चित्र को देखकर आगंतुक कह सकता है। वैसे इनका कार्यकाल निर्विवाद था। किसी अभिनेता को देखकर कह सकते है कि वह सजीव अभिनय के धनी रहे, क्रिकेटर की फोटो देखकर कह सकते है कि उन्होंने कई कीर्तिमान स्थापित किए, लेकिन जैसे ही वह गणेश जी, हनुमान जी के फोटो के सामने आते हैं तो वह सिर को झुका कर उनको प्रणाम करता है। यह भारत का समृद्ध आध्यात्मिक संस्कार है जो चित्र को नहीं चरित्र को पूजता है। आइए श्री राम नवमी के पावन पर्व पर हम सब एक समरस सद्भाव युक्त कौशल्या नंदन राम के देश बनाने का संकल्प लें।
जय श्री राम
लेखक
संदीप अखिल
स्टेट न्यूज को-ऑर्डिनेटर
स्वराज एक्सप्रेस/ lalluram.com