रायपुर- इंडिया फाउंडेशन की तर्ज पर राज्य में छत्तीसगढ़ यंग थिंकर्स फोरम का गठन किया गया है. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके राम माधव ने इस फोरम का औपचारिक ऐलान किया. इस दौरान राम माधव की किताब ‘Because India Comes First: Reflections on Nationalism, Identity and Culture’ पर परिचर्चा भी हुई. किताब में महात्मा गांधी के जिक्र से जुड़े सवाल पर राम माधव ने कहा कि संघ एक खुला मंच है. यह कोई संगठन नहीं है. यह देश को एक करने का आंदोलन है. इस आंदोलन में हमेशा सम्मान करने की भावना ही रही है. महात्मा गांधी के विचारों से भी असहमति रही. उन्होंने कहा कि, यहां यह समझना जरूरी है कि ऐसा नहीं था कि यह असहमति केवल संघ रखता था. सुभाष चंद्र बोस भी गांधी के विचारों से सहमत नहीं थे, इसलिए ही अलग हो गए, ताकि आजाद हिन्द फौज के माध्यम से आजादी की लड़ाई लड़ सके. यहां तक की महात्मा गांधी ने जिस नेहरू को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, वह नेहरू भी कई विषयों पर गांधी का विरोध करते थे.

राम माधव ने कहा कि, 1945 में गांधी और नेहरू के बीच एक लेटर एक्सजेंच हुआ. उस लेटर में गांधी नेहरू को लिखते हैं कि- मेरे विचारों से तुम्हारा फंडामेंटल विरोध है. इससे मुझे दुख होता है. आखिर क्यों नहीं हमारे बीच की मतभिन्नता को देश के सामने रखा जाए? नेहरू ने जवाब में कहा कि आजादी मिलने वाली है, देश में यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि नेहरू और गांधी में मतभेद हैं. यह सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए. मतभेद होते हैं, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है. माधव कहते हैं कि गांधी यहां तक कहा करते थे कि, मेरे खिलाफ इतने विरोध होते हैं कि यदि मुझसे सेंस आफ ह्यूमर नहीं होता, तो मुझे आत्महत्या करना पड़ता.
बीजेपी के महासचिव रहे राम माधव ने कहा कि, कुछ नीतियों पर संघ का भी विरोध रहा. लेकिन गांधी जी ने देश की सनातनी सभ्यता को दुनिया के सामने रखा. वह कहते थे कि मैं सनातनी हिन्दू हूं. उनका पूरा जीवन, उनकी आजादी का आंदोलन भी सनातनी विचारों से जुड़ा रहा है. उन्होंने अहिंसा परमो धर्मः भगवत गीता से लिया गया. इसे ही शस्त्र बनाकर उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी और जीती. गांधी के इन विचारों को दुनिया के कई देशों ने अपनाकर आजादी पाई. आज भी उऩके इस योगदान को याद किया जाता है. 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब यह अद्भूत घटना थी दुनिया में. लोगों ने यह नहीं सोचा था कि अहिंसात्मक आंदोलन के जरिए कोई देश आजाद हो सकता है. गांधी ट्रेंड सेटर थे, उनकी इस विचारधारा ने कई देशों ने आजादी पाई. माधव ने कहा कि गांधी की हत्या की घोर निंदा संघ ने की थी. संघ की शाखा को दो दिन के लिए स्थगित किया गया था. संघ की मार्निंग प्रेयर में 1950 में गांधी जी को शामिल किया गया था. झूठा आरोप लगाने के बावजूद हमने गांधी को संघ की प्रेयर में जोड़ा. तब से लेकर आज तक हम हर रोज गांधी को याद करते हैं.
चीन के संदर्भ में किताब में किए गए जिक्र का ब्यौरा रखते हुए राम माधव ने कहा कि  चीन 1960 में भारत का पड़ोसी बना. तब तक यह पड़ोसी नहीं था. भारत औऱ चीन के बीच एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में तिब्बत था. जब चीन ने तिब्बत को हथियाया तब हम उस वक्त जवाब नहीं दे पाए थे. चीन भारत की सीमा पर आ गया. हम और चीन सीमा पर खड़े हैं, तो यह बात समझना चाहिए कि चीन सभी पड़ोसियों की तरह नहीं है.
इधर राम माधव की किताब में जम्मू-कश्मीर से हटाए गए धारा 370 को लेकर भी विस्तृत विवरण लिखा गया है. इसे लेकर वह मानते हैं कि यह एक ऐतिहासिक कदम है. राम माधव का कहना है कि, धारा 370 राष्ट्रीय एकता के लिए बाधक थी. भारत की आजादी के वक्त से जो कन्फ्यूजन था, उसे खत्म किया गया. एक राष्ट्र मानते हुए धारा 370 हटाने का कदम उठाया गया. इसे गर्व से स्वीकार करना चाहिए. राष्ट्रव्यापी स्वीकार्यता मिली. कांग्रेस के नेताओं ने सदन में जो भाषण दिया, उसमें चिंता यह थी कि जो किया, वह सही है, तरीका गलत है. सदन में चर्चा के बाद यह संशोधन किया गया है. संघ में यह नारा दिया जाता था कि जम्मू-कश्मीर हमारा है, वह कश्मीर हमारा है, जो सारे का सारा है. जब हम यह कहते हैं तो सिर्फ कश्मीर हमारा है, यह आशय नहीं होता, कश्मीर की तीन करोड़ जनता भी हमारी है. आज कश्मीर की जनता को देश की जनता से आश्वासन चाहिए कि वह भी हमारे हैं.
कश्मीर के मौजूदा हालातों को लेकर पूछे गए सवाल पर राम माधव ने कहा कि छत्तीसगढ़ में जो नक्सली है, वह इस देश को राष्ट्र मानते ही नहीं है. ऐसा ही कश्मीर में भी आजादी का नारा लगाने वाले ऐसे कतिपय लोग हैं. लेकिन इन लोगों की वजह से हम हर कश्मीर से देशभक्ति का प्रमाण नहीं मांगते. आज कश्मीर की जनता को भी यह आश्वासन मिलना चाहिए कि हम देश के बाकी राज्यों की नागरिकों की तरह ही हैं. वहां कोई भी गलत रास्ते पर जा सकता है. जो गलत रास्ते पर जाएगा उसे कानून के तहत दंड मिलेगा, लेकिन यह वक्त आलिंगन करने का है. जो युवा शादी करते हैं, वह हनीमून मनाने स्वीजरलैंड ना जाकर गुलमर्ग जाएं, बड़ों को तीर्थयात्रा करना है, तो अमरनाथ की यात्रा पर जाएं. उस राज्य को अपने साथ जोड़ना है. यह राष्ट्र की जिम्मेदारी है. सरकार ने अपना दायित्व निभाया है.