वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। मुझे घूमने का बड़ा शौक है. बावजूद इसके साल भर में बहुत कम जगहों पर बिना काम सिर्फ घूमने के लिए यात्रा हो पाती है. लेकिन कोशिश भरपूर रहती है कि दोस्तों या परिवार वालों के साथ कहीं-कहीं किसी जगह की यात्रा होती रहे. फिर चाहे यात्रा धार्मिक तीर्थस्थल की हो या फिर किसी पर्यटन स्थल की. खास तौर पर मैं यही चाहता हूँ कि देश-विदेश घूमने से पहले अपने प्रदेश को पूरी तरह से घूम लूँ. अपने छत्तीसगढ़ को, बस्तर-बैलाडीला से लेकर सरगुजा-मैनपाट तक छत्तीसगढ़ के तमाम रंगों को करीब से देखने की चाहत है.

इस चाहत की पूर्ति कुछ हद तक पत्रकारिता के पेशे में आने के बाद हुई, लेकिन उस आनंद के साथ नहीं जो दोस्तों या परिवार के साथ यात्रा के दौरान मिलती है. मुझे मालूम है कि पाठकों के पास इतना वक्त़ नहीं है कि वे आपकी कहानी या संस्मरण को पढ़ें, लेकिन फिर भी यात्रा की शुरुआत से पहले एक छोटी सी भूमिका बाँध रहा हूँ, क्योंकि जिस संस्मरण को लिख रहा हूँ उसकी कड़ी पूर्व की यात्रा से जुड़ी हुई है.

सन् 2005 में मैं बेमेतरा शासकीय महाविद्यालय में बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. इसी दौरान साक्षरता विषय पर एक वाद-विवाद प्रतियोगिता राज्य के सभी महाविद्यालय स्तर पर आयोजित हुई. इसमें राज्य स्तरीय स्पर्धा दंतेवाड़ा में आयोजित थी. मैं और मेरे एक साथी भूपेश का चयन हुआ. तब बस्तर को लेकर कई तरह की कहानियाँ मैंने सुन रखी थी. फिर भी मैंने और भूपेश ने तय किया कि इसी बहाने बस्तर घूमकर आएंगे. सितंबर 2005 में हम दोनों बस्तर पहुँचे थे. ये मेरी पहली बस्तर यात्रा थी. इस दौरान हमें जिला प्रशासन की ओर से बचेली आकाश नगर, दंतेवाड़ा, बारसूर और चित्रकोट का भ्रमण कराया गया था. तब मैंने पहली बार बारिश के दिनों में चित्रकोट को करीब से देखा था. 2005 का वह दृश्य आज भी आंखों में कैद है. हालांकि करीब से चित्रकोट देखने के दौरान मैं जलप्रपात में गिरते-गिरते बचा था.

ये मेरी पहली बस्तर यात्रा की कहानी थी. अब जिक्र उस यात्रा का, जिसे आपने शीर्षक में पढ़ा है. दरअसल साल 2005 के बाद बस्तर जाने का मौका 10 साल बाद आया. 2015 में वह भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कवरेज को लेकर. इसके बाद अभी 2018 जनवरी में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के कवरेज के दौरान. लेकिन इन सालों में मैं यही चाहता था कि बस्तर घूमने अपने दोस्तों के साथ जाऊँ किसी काम के सिलसिले में नहीं. 2016 से मैं मित्रों के साथ बस्तर जाने की तैयारियाँ करता रहा, लेकिन किसी न किसी रूप में यात्रा हमारी स्थगित होती रही. कभी दोस्तों के एकसाथ नहीं होने को लेकर, कभी काम में फंसे होने के चलते और इन सबमें सबसे अहम वाहन और खर्च की अधिकता के चलते.दरअसल हमारी कोशिश थी कि हम इकट्ठे 10-12 दोस्त साथ चलें. इसके लिए या तो फिर दो-तीन वाहन लें या फिर कोई बस कर लें. लेकिन सबको पता था कि इसमें खर्च अधिक आएगा. इस तरह योजना बनाते-बनाते 2 साल का एक लंबा वक्त बीत गया.

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इस दौरान छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के उपाध्यक्ष केदारनाथ गुप्ता से मुलाकात हुई. उनसे रमन-जन-पर्यटन योजना के बारे में पता चला. रमन-जन-पर्यटन योजना की जानकारी मेरे लिए बेहद काम की थी. फिर भी हमें अपनी यात्रा को अंजाम तक पहुँचा पाने में लगभग साल भर का वक्त़ लग गया. रमन-जन-पर्यटन योजना की शुरुआत मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के जन्मदिन पर 15 अक्टूबर 2016 को हुई थी. योजना की शुरुआत नए प्रयोग के तौर पर बड़ी चुनौती के साथ केदारनाथ गुप्ता ने की थी. गुप्ता ने बताया कि योजना शुरु करते वक्त़ कई तरह के सवाल मन में थे, योजना से लोग जुड़ेंगे या नहीं, घाटे में योजना चला पाना संभव हो गया या नहीं? इस तरह के अनेक सवालों के बीच आखिकार मुख्यमंत्री रमन सिंह के जन्मदिन के दिन से योजना शुरू हो ही गई. तब से लेकर निरंतर इस योजना के तहत बड़ी संख्या में पर्यटक इसका लाभ ले रहे हैं. हमें खुशी के बीते 2 साल में करीब 7 हजार पर्यटक इस योजना के तहत बस्तर सहित विभिन्न स्थानों की यात्रा कर चुके हैं.
गुप्ता जी की बातों ने मुझे यात्रा को लेकर उत्सुकता और बढ़ा दी थी. उन्होंने फिर रमन-जन-पर्यटन की यात्रा कराने वाले सीएम शर्मा से संपर्क करने को कहा. शर्मा जी ने यात्रा के बारे विस्तार से जानकारी दी कि कैसे एक अच्छी और बहुत सस्ती यात्रा दोस्तों के साथ बस्तर की हो सकती है. उन्होंने सबसे पहले पूछा कितने लोग जाएंगे. मैंने कहा कि हम 10-12 मित्र जाना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि फिर आपके लिए 12 सीटर छोटी बस जिसे टेम्पो ट्रैव्लर कहा जाता वो ठीक रहेगा. उन्होंने बताया कि वाहन के साथ रहना और खाना भी रहेगा और यात्रा दो दिनों की रहेगी. मैंने पूछा कि खर्च कितना आएगा, तो उन्होंने जब कहा कि महज 1200 रुपए, तो मैं चौंक गया. जी हां जैसे आप पढ़ते हुए चौंक रहे हैं उसी तरह. उन्होंने बताया कि प्रति व्यक्ति 1200 रुपए खर्च में रायपुर से बस्तर की दो दिनों की यात्रा होगी. इसमें रायपुर से रात में गाड़ी निकलकर सुबह चित्रकोट पहुँचेगी. चित्रकोट में ठहरने की व्यवस्था रहेगी. चित्रकोट से फिर दंतेवाड़ा ले जाया जाएगा. दंतेवाड़ा वापसी फिर चित्रकोट में ही. और चित्रकोट से फिर दूसरे दिन तीरथगढ़ का भ्रमण कराया जाएगा. इस दौरान चित्रकोट, दंतेवाड़ा और तीरथगढ़ में भोजन की व्यवस्था रहेगी. हाँ उन्होंने ये भी बताया कि सफर पूरी तरह से वातानुकूलित रहेगा मतलब एसी बस में यात्रा होगी.

मैंने पूरी जानकारी लेने के बाद अपने दोस्तों से रमन-जन-पर्यटन के तहत बस्तर की यात्रा करने की बात कही. आखिकार जनवरी से फरवरी और फरवरी से मार्च बीतते-बीतते यात्रा की तारीख़ तय हुई. और हमने वित्तीय वर्ष के समापन के साथ-साथ बस्तर की दो दिवसीय यात्रा रमन-जन-पर्यटन से पूरी कर ही ली. इस यात्रा की सबसे अच्छी बात, सस्ती पर बेहद मस्ती भरी आनंदित यात्रा तो रही ही, लेकिन यात्रा के दौरान हमारे जो सारथी थे बंटी भैय्या उन्हें याद रखना जरूरी है. किसी भी यात्रा के दौरान ये जरूरी होता कि आपका चालक कैसा है. तो इस मामले में वाहन चालक बंटी भैय्या का कोई जवाब नहीं था. उन्होंने बहुत आदर-सत्कार और सेवा भाव के साथ एक अभिभावक, एक अच्छे दोस्त की तरह यात्रा पूरी करवायी. शुक्रिया बंटी भैय्या. और शु्क्रिया सभी प्रिय मित्र सुमित, अविनाश, कुमकुम, प्रांजलि, धीरेन्द्र, शबनम, तज़ीन, फरहीन और प्यारी बेटी परी का जिनसे मेरी बस्तर यात्रा जीवन की यादगार यात्रा बन गई.

लेकिन यात्रा पूरी करने के बाद मेरे मन में फिर भी ये सवाल बना रहा कि आखिर छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल इतनी सस्ती यात्रा क्यों करा रही है? जबकि रायपुर से दंतेवाड़ा तक एसी बस में आने-जाने का किराया ही 1 हजार या इससे अधिक है. ऐसे में 12 सौ में दो दिनों की यात्रा उसमें ठहरने और खाने के साथ चित्रकोट और तीरथगढ़ का भ्रमण?  इस जिज्ञासा का जवाब मैंने पर्यटन मंडल के उपाध्यक्ष केदार गुप्ता से लिया. उन्होंने बताया कि इससे पर्यटन मंडल को फायदा एक रुपिये का नहीं है, लेकिन इसका परिणाम ये है कि लोग छत्तीसगढ़ को दोस्तों और परिवार के साथ घूम पा रहे हैं. हम पर्यटन को बढ़ावा देने लाखों-करोड़ों रुपये तमाम तरह के गतिविधियों में या प्रचार-प्रसार में खर्च करते हैं. हमने सोचा कि इसमें रमन-जन-पर्यटन के तहत सस्ती यात्रा कराकर इसका प्रचार-प्रसार किया जाए. 2015 में इसकी शुरुआत जब मैंने की तो थोड़ी कठिनाई हुई, लेकिन आज पर्यटन मंडल की इस योजना का लाभ हर तबके के लोग ले पा रहे हैं. यही नहीं बस्तर के साथ-साथ 500 रुपये में धमतरी गंगरेल बांध एक दिन, 700 रुपये में बारनवापारा, गिरौधपुरी और सिरपुर एक दिन-एक रात सिरपुर में रात्रि विश्राम के साथ 500 रुपये में ताला, मल्हार, शिवरीनारायण एक दिन की यात्रा भी कर सकते हैं.

मतलब अगर आप समूह में दोस्तों और परिवार वालों के साथ यात्रा करना चाहते हैं, तो आपके लिए रमन-जन-पर्यटन एक अच्छी और बहुत ही सस्ती यात्रा हो सकती है. मैं फिर इस योजना के तहत बस्तर की यात्रा जरूर करना चाहता हूँ. अबकी बार यात्रा परिवार वालों के साथ होगी.