रंभा तीज आज, 29 मई (गुरुवार) को मनाई जा रही है. यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं. अविवाहित कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं. हिंदू संस्कृति में विविध व्रतों का विशेष महत्व है, और रंभा तीज उन्हीं में से एक है, जिसे विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी उम्र और दांपत्य सुख के लिए करती हैं. यह व्रत समुद्र मंथन से जुड़ी एक दिव्य कथा पर आधारित है.

समुद्र मंथन और रंभा का संबंध

समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों ने जब क्षीर सागर का मंथन किया, तब उसमें से 14 रत्न (अमूल्य वस्तुएं और दिव्य शक्तियाँ) प्राप्त हुईं. इन्हीं में से एक थीं रंभा, एक अत्यंत रूपवती अप्सरा. रंभा अप्सरा सौंदर्य, कला, प्रेम और नृत्य की प्रतीक मानी जाती हैं. इन्हें स्वर्ग की नर्तकी कहा जाता है. उनकी उत्पत्ति को स्त्री सौभाग्य, सौंदर्य और आकर्षण से जोड़ा गया.

रंभा तीज व्रत क्यों रखा जाता है?

इस व्रत को मुख्यतः सुहागन स्त्रियाँ अपने पति की लंबी उम्र, प्रेम और वैवाहिक सुख के लिए करती हैं. मान्यता है कि जिस प्रकार रंभा का सौंदर्य और आकर्षण स्थायी था, उसी तरह यह व्रत पति-पत्नी के बीच स्थायी प्रेम और सामंजस्य लाने में सहायक होता है. विवाहित स्त्रियाँ यह व्रत करके यह कामना करती हैं कि उनका दाम्पत्य जीवन रंभा की तरह सुंदर, आनंदमय और सौभाग्यशाली रहे.

किस भगवान की पूजा होती है इस दिन?

रंभा तीज व्रत के दिन मुख्य रूप से भगवान शिव, माता पार्वती, और कभी-कभी कामदेव व रति देवी की भी पूजा की जाती है. शिव-पार्वती को दाम्पत्य प्रेम का आदर्श माना जाता है. इसलिए स्त्रियाँ उनसे यह प्रार्थना करती हैं कि उनका वैवाहिक जीवन भी उतना ही स्थायी और प्रेममय हो. कुछ क्षेत्रों में रंभा की स्मृति में अप्सरा रंभा का स्मरण भी किया जाता है.