डब्बू ठाकुर, कोटा. मुस्लिम-समाज के त्योहारों में रमजान का महीना बहुत ही मुबारक और अफजल वाला महीना कहलाता है. रमजान-उल-मुबारक की मुकद्दस माह में मुस्लिम-समाज के लोग पूरे एक माह तक रोजा (उपवास) रखते हैं. 1 माह तक रोजा रखने के बाद उपहार के रूप में मुस्लिम-समुदाय को अल्लाह-ताला त्योहार के रूप में ईद-उल-फितर की खुशियां देता है, शाबान महीने की एक तारीख से शुरू हुए रमजान का मुबारक महीने का दूसरा असरा जुमा (शुक्रवार) से शुरू हो गया है. पहला असरा जहां रहमत का था, तो दूसरा असरा बरकत का है.

रमजान का महीना गर्मी के दिनों में शुरू हुआ 42 से 45 डिग्री तापमान होने के बावजूद 14 घंटा बिना खाए पिए बिना पानी के रहना बहुत मुश्किल है, बावजूद उसके मुस्लिम-समुदाय के लोग रोजा रख रहे हैं, सूरज की तेज गर्मी से भी मुस्लिम-समुदाय के लोगों का जज्बा कम नहीं हो रहा है, सूरज उगने से पहले से लेकर सूरज डूबने तक भूखा-प्यासा रहना काफी मुश्किल भरा होता है, वह भी इस भीषण गर्मी में इसके बावजूद भी मुस्लिम-समाज के मुस्लिम भाइयों द्वारा पूरे एहतियात और पूरे एहतराम के साथ इबादत में लगे हुए हैं.

मस्जिदे-ताहा के पेश इमाम हाफिज गुलजार ने बताया कि शाबान के महीने में शुरू हुए रमजान के पाक रोजे मुसलमानों के लिए बेहद ही खास होते हैं. रमजान के महीने में पूरे एक माह तक रोजा रखना पड़ता है, इस दौरान तीन असरा पड़ता है. इन तीनों असरों में पहला असरा रहमत, दूसरा बरकत और तीसरे असरे में मगफिरत होती है. इस दौरान अल्लाह-ताला अपने नेक बंदों पर रहमत बरसाता है, उनकी दुआएं मकबूल फरमाता है, गलत बातों से बुराइयों से दूर फरमाता है.

उन्होंने बताया कि दिन भर रोजा रखने और पांचों वक्त की नमाज पढ़ने के बाद रमजान में तरावीह की विशेष नमाज अदा की जाती है, जिसके लिए बाहर से हाफिज व कारी हाफिज-ए-कुरान मस्जिदों में इस विशेष तराबीह की नमाज़ पढ़ाते हैं. मस्जिद-ए ताहा कोटा में हाफिज-ए-कुरान बिलासपुर फैजुर-रज़ा मदरसे से मोहम्मद सादिक साहब विशेष नमाज-तरावीह को पढ़ा रहे हैं. तरावीह की नमाज के लिए आसपास गांव से नवागांव, बिल्लीबंद, बरर, नवापारा, छेरकाबांधा, लखोदना सहित अन्य गांव से भी मुस्लिम-धर्मावलंबी के लोग आते हैं.