मंत्री-कलेक्टर में रार!
यहां बन नहीं रही, सिर्फ ठन ही रही है. दैत्याकार कारखानों से पैदा होती बिजली और उस बिजली से अंधाधुंध दौड़ते विकास की इबारत गढ़ने वाला ये शहर कोरबा है. इस शहर में खूब आग है. यकीं ना हो, तो सोशल मीडिया पर वायरल होती मंत्री जयसिंह अग्रवाल के वीडियो पर एक नजर दौड़ा आइए. मंत्री कलेक्टर संजीव झा पर खूब आग बरसा रहे हैं. ट्रांसपोर्ट नगर की शिफ्टिंग के एक मसले पर मंत्री दबंगई से कह रहे हैं कि ट्रांसपोर्ट नगर शिफ्ट नहीं होगा, कलेक्टर शिफ्ट होगा. गुंडागर्दी नहीं चलने दूंगा. एक नेता की असल परिभाषा कोई मंत्री गढ़ रहा है, तो यकीनन यही होंगे. नेतागिरी में कायदा-कानून तो होता नहीं. खैर संजीव झा इकलौते कलेक्टर नहीं है, जिनसे मंत्री की रार हो. इससे पहले रानू साहू भी थी, जिनसे उनकी कभी बनी नहीं. बाकायदा शिकायती चिट्ठी लिख भेजी थी. शायद उनसे पहले वाली कलेक्टर किरण कौशल से भी नाराजगी का आलम कुछ यूं ही था. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि दिक्कत कलेक्टरों में है या मंत्रीजी में? अब संवैधानिक दर्जे के मुताबिक मंत्री का ओहदा बड़ा है. प्रोटोकॉल का पालन तो करना ही चाहिए. मगर कोरबा में आने वाला हर कलेक्टर मंत्री के रडार में कैसे आ जा रहा है? लगता है कि मंत्री का सटिस्फैक्शन लेवल हाई होगा, कलेक्टर सटिस्फाई नहीं कर पा रहे होंगे. बहरहाल कोरबा कलेक्टर थोड़े कायदे के आदमी है. मंत्री के मिजाज को बदल तो पाएंगे नहीं. अपने दफ्तर का वास्तु दोष दुरुस्त करा लें, तो बेहतर है. बैठने-उठने की सही दिशा कई बार बड़े-बड़े काम कर जाती है. वरना मंत्री तो छत्तीसगढ़ की उस कहावत को चरितार्थ करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे, जिसमें कहा जाता है कि ”खेलइया खोजय दांव त माछी खोजय घाव”….इस कहावत को कम शब्दों में समझना है, तो बस इतना समझ लें, मौके की तलाश में रहना. मंत्री हुनरमंद हैं.
अमरूद की सुरक्षा में बंदूकधारी
एक पूर्व मंत्री के बंगले की बाड़ी में लगे अमरूद के पेड़ में गिनती के चार फल फले थे. पूर्व मंत्री के बंगले पहुंचे चंद लोगों की नजर लग गई, सो अमरूद की मिठास का लुत्फ उठाने से खुद को रोक नहीं पाए. मीठे अमरूद का स्वाद भीतर गया ही था कि वहां आ धमके एक बंदूकधारी के मुंह से निकली गोलियों ने कड़वाहट भर दी. ये बंदूकधारी वैसे तो पूर्व मंत्री की सुरक्षा में तैनात थे, मगर अमरूद तोड़ रहे लोगों के बीच आ धमके. अमरूद तोड़े जाने पर जमकर हड़काया. कहने लगे की उनकी ड्यूटी ही अमरूद की देखभाल के लिए लगाई गई है. एक-दो ही तोड़े गए थे, तीसरे-चौथे की बारी थी. मगर संगीनों के साए में अब भला अमरूद कौन तोड़ता. बदतमीजी भी होने लगी थी. इस बीच अमरूद तोड़ने वालों ने उस व्याकुल पेड़ की ओर नजर घुमाया, जिसने शायद खाद-पानी की कमी से सिर्फ चार फल ही उगाए थे. पूर्व मंत्री फल फूल नहीं रहे, सो पेड़ कैसे सुपोषित होता. कुपोषित हो गया. इधर अमरूद खाने वालों ने बंदूकधारी को घुड़की दी. एक ने चुटीले अंदाज में कहा- 15 सालों तक हकन के खाया-पीया गया होगा, हम एक अमरुद खा लिए, तो बवाल हो गया.
एक चीज की दो कीमत
एक चीज की दो कीमत कैसे होती है, इस फार्मूले को समझने के लिए सरकारी विभागों के टेंडर पर नजर दौड़ा आइए. एक जिले में जिस काम में पांच रुपए खर्च होते होंगे, वहीं दूसरे जिले में उसी काम के दस रुपए खर्च होते दिखाई पड़ेंगे. वन विभाग के इस मामले को ही देखें. तेंदूपत्ता गोदाम बनाने के लिए महकमे ने टेंडर बुलाया. यह टेंडर गोदाम तैयार करने के लिए जरुरी पीईबी स्ट्रक्चर खड़ा किए जाने को लेकर था. बताते हैं कि पहले जब टेंडर खुला, तब एक भी फार्म नहीं आया. दूसरी बार टेंडर खोला गया, तब एक फार्म जमा हुआ, लिहाजा तीसरी दफे फिर टेंडर खोला गया. ले देकर दो फार्म ही जमा हुए. इसमें एक कंपनी छत्तीसगढ़ की रही. सुनते हैं कि इसी कंपनी को छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में काम करने का ठेका दे दिया गया. जब कोई काम करने आएगा ही नहीं, तो उसे ही मिलेगा, जिसकी दिलचस्पी होगी. जो ज्यादा कॉम्पीटेंट होगा. वैसे बताते हैं कि हर जिले में अलग-अलग टेंडर बुलाया जाना था. खैर सुना है कि कई जिलों में पीईबी स्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए जहां 72-73 लाख रुपए खर्च किए गए, वहीं बस्तर के एक जिले में इस स्ट्रक्चर के लिए 83 लाख रुपए की स्वीकृति दी गई. ये राशि निगोशिएट होने के बाद तय की गई. अब इस निगोशिएशन में किसका कितना फायदा मालूम नहीं, मगर ऐसी सूचनाएं ये तो बता जाती हैं कि तंत्र काम कैसे करता है.
पुनिया की विदाई
करीब-करीब पांच साल कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी रहे पी एल पुनिया की विदाई हो ही गई. महीनों से विदाई की तारीखें निकल रही थी. अब जाकर मुहूर्त निकला. पुनिया की जगह कुमारी शैलजा भेजी गई हैं. राजीव गांधी की सरकार में मंत्री रही हैं. कहते हैं सोनिया गांधी की बेहद करीबी हैं. बहरहाल पुनिया का रुखसत होना यूं ही लिया गया फैसला नहीं है. बात शिकायतों तक आ पहुंची थी. कहते हैं कि सत्ता-संगठन के साथ पुनिया की पटरी फिट नहीं बैठ रही थी. सत्ता और संगठन के बीच ठनने की खबरें भले ही आती होंगी, मगर पुनिया के मसले पर सत्ता-संगठन में एक राय थी. कहा तो यह भी जाता है कि पुनिया कई मंत्रियों पर दबाव बनाने लगे थे. भानुप्रतापपुर चुनाव में भी पुनिया की दिलचस्पी नहीं देखी गई. कांग्रेस का छत्तीसगढ़ संगठन यह भी मानता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में पुनिया की मनमानी चलती. इसलिए कांग्रेस के लिए बेहतर था कि प्रभारी बदल दिया जाए. वैसे एक-दो मंत्री पुनिया की सरपरस्ती में ही चौड़े हुए जा रहे थे. अब नई सरपरस्ती ढूंढनी होगी. वैसे एक कानाफूसी की खबर यह है कि मंत्रियों की ओर से उनका ठीक ठाक सम्मान किया जाता था. उनका खास ख्याल रखने के लिए एक मंत्री और कुछ संगठन नेता खूब पहचाने गए.
ले डूबा जैन-मारवाड़ी खाना !
दम निचोड़कर कोशिश की गई थी, फिर भी बीजेपी भानुप्रतापपुर उप चुनाव हार गई. चुनाव हारने के ठीक बाद का एक वाक्या सुनिए. नतीजे आने के बाद एक स्थानीय आदिवासी नेता, पूर्व मंत्री और संगठन के बड़े नेता के सामने फट पड़े. बोले- सत्तारूढ़ दल के नेता आदिवासियों के बीच घुल मिल रहे हैं. उनके साथ भोजन कर रहे हैं, मगर हमारे दल के बड़े नेता भी इस आदिवासी इलाके में आकर जैन, मारवाड़ी के घरों में भोजन करने ले जाए जाते हैं. किसी आदिवासी के घर ले जाया जाता, तो उसे हम प्रचारित कर सकते थे. समाज में एक अच्छा संदेश जाता. एक नेता ने कहा कि यह पहले क्यों नहीं बताया गया. इस पर तपाक से जवाब मिला कि हमसे पूछा कब गया? आदिवासी नेता ने कहा कि चुनावी प्रबंधन से हमें पूरी तरह से अलग रखा गया. बहरहाल भानुप्रतापपुर उप चुनाव बीजेपी के लिए गले की हड्डी बन गई. बीजेपी ने खूब मेहनत की, मगर सुन बंटे सन्नाटा वाला आलम रहा. बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. सभी दर्जेदार नेता जमीन पर थे. मगर ब्रह्मानंद नेताम के इतिहास को कांग्रेसियों ने ढूंढकर बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. चुनाव तो पूरा पलट ही गया था, ऊपर से आरक्षण बिल और सावित्री मंडावी के पक्ष में बनी सहानुभूति की लहर ने दोहरा फायदा कांग्रेस को दे दिया. नतीजे बिल्कुल चौंकाने वाले नहीं थे.
IPS लिस्ट अटकी
आईजी स्तर के अधिकारियों के हालिया तबादले के बाद कई जिलों में एसपी भी बदले जाने थे, मगर मौजूदा हालातों के बीच लगता है लिस्ट अटक गई है. अब सुनते है कि एसपी के तबादले जनवरी तक संभव नहीं. रायपुर, बिलासपुर, बलौदाबाजार, जांजगीर-चाम्पा, जगदलुपर जैसे कई महत्वपूर्ण जिलों को संभाल रहे एसपी इधर से उधर किए जाने वाले थे. आईजी तबादला सूची आने के बाद एक महासमुंद जिले के एसपी का सिंगल आर्डर निकला था. क्यों और कैसे निकला, इसकी अपनी एक अलग कहानी है. बहरहाल बनी बनाई लिस्ट फिलहाल बस्ते में बंद हो गई है. कुछ के लिए राहत भरी खबर है, तो एकाध ऐसे हैं, जिन्हें बदलाव की आहट का इंतजार था. मगर ये तय जरूर है कि देर सबेर एक बड़ा बदलाव होगा.
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