रायपुर। डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के अंतर्गत संचालित हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग में 30 वर्षीय महिला मरीज के फेफड़ों और श्वासनली में हुए छेद (ब्रोकोंप्लूरल फिस्टुला) को कार्डियोथोरेसिक सर्जन एवं प्लास्टिक सर्जन की टीम ने संयुक्त रूप से सफलतापूर्वक ऑपरेशन करके नई जिन्दगी दी। पिछले 10 वर्षों से वह इस बीमारी से पीड़ित थी. बीमारी पुरानी होने और बाहर कराए गए इलाज व ऑपरेशन की वजह से उसकी हालत गंभीर बनी हुई थी. डॉक्टरों की टीम ने हाईरिस्क कैटेगरी में चरणबद्ध ऑपरेशन करते हुए मरीज की जान बचा ली। आज मरीज स्वस्थ्य है व डिस्चार्ज लेकर घर जाने के लिए तैयार है।

भिलाई निवासी 32 वर्षीय महिला को दस साल पहले खांसी में खून आता था जिसके लिए उसने शहर के एक निजी अस्पताल में दिखाया जिससे उसकी बीमारी का पता चला। उसको बायें फेफड़े के ऊपरी लोब (Left Upper Lobe ) में फंगस (एस्परजिलोमा/ Aspergilloma) का संक्रमण हो गया था जिसके कारण उसको बार-बार खांसी में बहुत अधिक (लगभग 200-300 एमएल) खून आता था। इस बीमारी से निजात पाने के लिए उसके बायें फेफड़े के ऊपरी हिस्से ( Left Upper Lobe) को निकाला गया। परंतु ऑपरेशन के कुछ दिन बाद ही उसके फेफड़े से लगातार हवा एवं मवाद का रिसाव हो रहा था एवं छाती में लगे ट्युब (नली) को निकाल नहीं पा रहे थे। कुछ दिन बाद ही उसी हॉस्पिटल में पुनः ऑपरेशन करके छेद (ब्रोकोंप्लूरल फिस्टुला) को बंद करने का प्रयास किया गया परंतु कुछ ही दिनों बाद पुनः फेफड़े में हवा एवं मवाद आना प्रारंभ हो गया।

लगभग एक महीने से भी ज्यादा रहने के बाद भी स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही थी। उसके बाद उसको चेन्नई के मद्रास मेडिकल मिशन अस्पताल या फिर वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में रिफर किया गया एवं बताया गया कि पूरे छ.ग. में ऐसा कोई सर्जन नहीं है जो इस छेद को बंद कर सके। फिर वे मरीज को एक बार चेन्नई लेकर गये। उसी बीच उनके परिजनों को मालूम हुआ कि एसीआई के कार्डियोथोसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में इस प्रकार के जटिल ऑपरेशन लगातार हो रहे हैं एवं कई मरीज यहां से बिलकुल ठीक होकर गये हैं फिर उन्होंने मरीज को चेन्नई न ले जाकर सीधे एसीआई के हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के पास लेकर आये। चूंकि बीमारी बहुत पुरानी लगभग 6 महीने से भी ज्यादा हो चुकी था इसलिए सफलता की गुंजाइश कम थी फिर भी यहां के सर्जन की टीम ने हाईरिस्क कैटेगरी में चरणबद्ध तरीके से ऑपरेशन करके मरीज की जान बचा ली।

ऐसे हुआ ऑपरेशन

मरीज को सर्वप्रथम उसके फेफड़े की दो पसलियों को काटकर एक 6×4 सेमी. का खिड़कीनुमा रास्ता बनाया गया जिसे ओपन विन्डो थारेकोस्टोमी ( Open Window Thoracostomy ) कहा जाता है जिससे उसके फेफड़े से की सफाई हुई एवं इस ऑपरेशन के 3 महीने बाद जब फेफड़ा पूरी तरह से मवादहीन हो गया तब मरीज का दूसरा ऑपरेशन छह महीने बाद दिसम्बर में किया गया जिसमें चेस्ट सर्जन एवं प्लास्टिक सर्जन की मदद से छाती एवं पीठ की मांसपेशी को अलग करके छाती में एक नया छेद बनाकर मांसपेशी को फेफड़े के अंदर ले जाया गया और श्वांसनली में हुए छेद को बंद किया गया जिसको थोरेकोमायोप्लास्टी कहा जाता है। चार घंटे तक चले इस ऑपरेशन में 3 यूनिट रक्त की आवश्यकता हुई एवं ऑपरेशन सफल रहा। इस ऑपरेशन में चेस्ट सर्जन के साथ प्लास्टिक सर्जन व एनेस्थेसिया के डॉक्टरों की भूमिका सराहनीय रही।

विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि सरकारी अस्पताल में कार्य करने वाले सर्जन एवं फिजिशियन का अनुभव अन्य अस्पतालों की तुलना में कहीं अधिक होता है। हायर इंस्टीट्यूट होने के कारण यहां छोटे-छोटे सेंटर, सब सेंटर एवं निजी अस्पतालों से जटिल रेफरल केसेस आते हैं। एसीआई में होने वाली सर्जरी की क्वालिटी देश के महानगरों में होने वाली सर्जरी की तरह ही उच्चस्तरीय है। यहां पर बहुत से ऐसे केस हुए हैं और लगातार हो रहे हैं जो छ.ग. में पहली बार हुआ है। शासकीय स्वास्थ्य योजनाओं की मदद से मरीज का इलाज निः शुल्क होने से सभी प्रकार के मरीज यहां इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।

पल्मोनरी एस्परजिलोमाः एक फंगल संक्रमण

पल्मोनरी एस्परजिलोमा एक फंगल संक्रमण है। यह आमतौर पर फेफड़ों में होता है। इसके लक्षण में छाती में दर्द, खांसी, खूनी खांसी, थकान, बुखार, अनजाने में वजन कम होना शामिल है। इसकी जांच में फेफड़ों के एक्स-रे, ब्रोंकोस्कोपी, चेस्ट सीटी और स्पुटम कल्चर शामिल हैं।

डॉक्टरों की टीम जिन्होंने दी मरीज को नई जिंदगी

हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष) एवं डॉ. निशांत चंदेल के साथ प्लास्टिक सर्जन डॉ. दक्षेस शाह, डॉ. कृष्णानंद ध्रुव, एनेस्थेटिस्ट डॉ. ओ. पी. सुंदरानी, डॉ. मुकुंदन (पी. जी. रेसीडेंट), डॉ. राकेश प्रधान (सर्जरी रेसीडेंट), नर्सिंग स्टॉफ- राजेन्द्र साहू, मुनेस।