पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. छत्तीसगढ़ में युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं के आरोपों के बीच अब सुनवाई प्रक्रिया पर भी सवाल उठने लगे हैं. हाईकोर्ट के निर्देश पर शिक्षकों की आपत्तियों की सुनवाई के लिए बनी समिति में छुरा ब्लॉक के बीइओ को शामिल किया गया है, जिनकी कार्रवाई के खिलाफ शिक्षक कोर्ट की शरण में गए थे.
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युक्तियुक्तकरण से असंतुष्ट 300 से ज्यादा एल बी शिक्षकों ने हाईकोर्ट का शरण लिया है. इनका आरोप था कि चक्रीय क्रम में वरिष्ठता की सूची नहीं बनाई गई, विषय बंधन समाप्त होने के बाद भी उसे लागू किया गया. कला विषय के शिक्षकों को भी हिंदी का बताकर चहेतों को फायदा पहुंचाने के अलावा अन्य गड़बड़ियों के शिकार हुए.

हाईकोर्ट के आदेश पर आज एक कमेटी पीड़ित शिक्षकों के मामले की सुनवाई कर रही है. कलेक्टोरेट में आज सुनवाई हुई, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस कमेटी का सदस्य उन्हीं बीईओ को बनाया गया, जिनकी कारगुज़ारियों के चलते शिक्षकों को कोर्ट का शरण में जाना पड़ा है. सुनवाई के बाद अधिकांश पीड़ित शिक्षकों का कहना है कि कमेटी की सुनवाई में हमारा पक्ष रखने के पहले मौजूद बीईओ दलीलों को सिरे से खारिज कर दे रहे हैं.
छुरा बीईओ के निलंबन का प्रस्ताव, एक्शन नहीं

कलेक्टर भगवान सिंह उईके ने 6 जून को शिक्षा सचिव को बीईओ किशुन लाल मतावले द्वारा युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में की गई गड़बड़ियों का 4 बिंदुओं में जिक्र कर निलंबन का प्रस्ताव भेजा गया था. बताया गया कि छुरा बीईओ ने अतिशेष की जानकारी समय पर नहीं दी, गणना में जानबूझकर गड़बड़ी की, हायर सेकेंडरी के शिक्षकों को धोखे में रखकर काउंसिलिंग में बुलाया गया और विषय को छुपाने जैसा कृत्य किया गया. युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया को बाधित कर प्रशासन की छवि धूमिल की गई है. जांच में पाई गई गड़बड़ी को सिविल सेवा आचरण अधिनियम का उल्लंघन माना गया.
कलेक्टर ने पत्र में छुरा बीईओ मतावले को निलंबित करने के प्रस्ताव के साथ ही विभागीय जांच की अनुशंसा की थी. उनके द्वारा भेजे गए इस अहम प्रस्ताव पर 10 दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, ऐसे में गंभीर सवाल उठ रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि कार्रवाई की अनुशंसा की प्रति डीईओ कार्यालय ने अब तक संभाग आयुक्त कार्यालय को भेजने की जरूरत भी नहीं समझी.
सैकड़ों दावा आपत्ति बता रही खुल कर हुई हैं गड़बड़ियां
छुरा ब्लॉक की तरह फिंगेश्वर और मैनपुर में भी कई गड़बड़ियां हुई है. कलेक्टर और कोर्ट में 300 से ज्यादा प्रस्तुत आवेदन की लंबी सूची इस बात का प्रमाण है कि जमकर गड़बड़ियां हुई हैं. मामले में दोषियों को हटाने की कार्रवाई करने के बजाए उन्हें बचाने और सुनवाई जैसे अहम प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा रहा.
BEO की गलतियों पर DEO डाल रहे पर्दा, एरियर्स वितरण में हुई गड़बड़ी भी दबाई गई
जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम का आरोप है कि शासन की इस महत्वपूर्ण नीति की किरकिरी करने वाले बीईओ को डीईओ का पूरा संरक्षण है. तभी कलेक्टर की अनुशंसा की प्रतिलिपि संचनालय नहीं पहुंचा गया.
उन्होंने कहा कि एरियर्स वितरण में भारी गड़बड़ी प्रमाणित हुई है. जांच में मैनपुर और देवभोग बीईओ दोषी पाए जा चुके है. सबसे बड़ी गड़बड़ी छुरा में हुई थी. यहां अनुपात हीन और नियम विरुद्ध वितरण के बाद भी 10 करोड़ की राशि अंतिम तिथि में वापस की गई. जरूरत के अनुपात तीन गुना ज्यादा रकम मंगाया गया, जिससे जिले के अन्य ब्लॉक का वितरण प्रभावित हुआ. वितरण में मद को बदलने का खेल चला, गड़बड़ी उजागर न हो इसलिए छुरा की जांच रुकवा दी गई. आर्थिक अनियमितता के मामले में जब कार्रवाई रोकी जा सकती है तो सेटिंगबाज अफसर युक्तियुक्तकरण की कार्रवाई को भी प्रभावित बड़ी आसानी से कर सकते है. संजय ने कहा कि मंत्रालय के एक अफसर सीधे गरियाबंद शिक्षा विभाग के संपर्क में है, जो गड़बड़ियों पर लीपापोती कर उन्हें आसानी से दूध का धुला बना देते है.
सुनवाई में दोनों पक्षों का होना जरूरी : डीपीआई आयुक्त
डीपीआई आयुक्त राकेश पांडेय ने बताया कि सुनवाई के लिए दोनों पक्षों का होना जरूरी है. इसलिए कमेटी में बीईओ को भी शामिल किया गया है. छुरा बीईओ के निलंबन का प्रस्ताव अब तक उनके पास नहीं आया है.
देखें कलेक्टर का अनुशंसा पत्र और डीईओ की आदेश कॉपी :-


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