अजय नीमा, उज्जैन। आज पूरा मध्य प्रदेश रामनवमी का उत्सव मना रहा है। प्रभु राम की बात निकले और रावण का जिक्र न हो, ऐसा ही नहीं सकता। रावण का वध कर श्रीराम ने पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया था। लेकिन क्या आप जानते हैं, उसी रावण का एक मंदिर भी है जहां उसकी पूजा की जाती है। रामनवमी के एक दिन बाद चैती दशहरा पर रावण की पूजा करने की परंपरा है। यह मंदिर और कहीं नहीं बल्कि बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में ही है। इस मंदिर को देखने और मन्नत मांगने दूर-दूर से लोग आते हैं।
उज्जैन से करीब 20 किमी दूर बड़नगर रोड पर चिकली गांव में आज रावण की पूजा की जाती है। यहां हर साल राम नवमी के एक दिन बाद रावण की पूजा करने की परंपरा है। इस पूरे गांव में मेला भी लगता है जिसमें आसपास से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। कल चैती दशहरे के अवसर पर भी आसपास के गांव के लोग यहां पर आएंगे। सभी रावण की पूजा कर अपनी मन्नत पूरी होने की कामना करेंगे। इस मौके पर यहां शाम को मेला लगाकर पर्व भी मनाया जाएगा। यहां पर दूर-दूर के कई लोग भी अपनी मुराद लेकर भी रावण की पूजा के लिए आते है। ग्रामीण बताते हैं कि रावण का यह मंदिर कई सालों पुराना है।
इसी गांव के ग्राम पंचायत सचिव पिंटू मालवीय ने जानकारी देते हुए बताया कि गांव चिकली में पूर्वज भी रावण की पूजा करते थे। लोगो ने अपने पूर्वजों को रावण की पूजा करते देखा है और आज भी यह परंपरा बदस्तूर जारी है। गांव के ही लोगों ने बताया कि एक बार लोग रावण की पूजा करना भूल गए थे। इसके बाद गांव में भीषण आग लग गई थी जिससे काफी नुकसान भी हुआ था। जिसके बाद हमेशा से दशहरा पर रावण की पूजा का विधान है। इसमें आसपास रहने वाले मुस्लिम समाज भी भागीदारी करता है।
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