संजीव शर्मा, कोण्डगांव. दशहरा उत्सव का नाम आते ही रामलीला और रावण दहन की छवि मानस पटल पर होती है, जिसमें दशहरा के अंत मे रावण का दहन किया जाता है. लेकिन कोण्डागांव जिले के कुछ छोटे से गांव मे चार दशक से भी अधिक समय से परंपरा चल रही है, जहां रावण बनाया जाता है, लेकिन उसे जलाया नहीं जाता. बल्कि मिट्टी के बने रावण का वध किया जाता है. यह अनोखी परंपरा ग्राम हिर्री और भूमिका में होती है.

छत्तीसगढ़ के कोण्डागांव जिले के फरसगांव ब्लाक अंतर्गत ग्राम भुमका और हिर्री में दशहरा मंचन अनोखे तरीके से किया जाता है. विगत कई वर्षो से परम्परा अनुसार भुमका और हिर्री में दशहरा पर्व में रावण के पुतला का दहन नहीं किया जाता. बल्कि रावण की मूर्ति बनाकर रावण का वध किया जाता है.

वहीं ग्रामीणों का कहना है कि, रावण को मारना मुश्किल था क्योंकि उसके नाभि में अमृत है, जिसका भगवान राम के द्वारा रावण की नाभि में तीर चलाकर वध किया जाता है. फिर उसके बाद ग्रामवासी रावण की नाभि से निकलने वाले अमृत के लिए रावण पर टूट पड़ते है. नाभि से निकलने वाले अमृत का माथे में तिलक करते हैं. महाज्ञानी ब्राम्हण रावण के बुरे कार्यों पर सचाई की जीत का तिलक वंदन करते हैं, इस अनोखी परम्परा को देखने के लिए क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं. दशहरा की यह अनोखी परम्परा भुमका और हिर्री में विरासत काल से चली आ रही है, जिसका आसपास के लोगों का बेसब्री से इंतजार रहता है.