रायपुर. छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के बयान पर प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को आपातकाल पर बयान देने से पहले आईने में देखना चाहिए. रविंद्र चौबे ने कहा है कि आज देश जिस दौर से गुज़र रहा है उससे बुरी स्थिति में आज़ादी के बाद से कभी नहीं गुज़रा. यह ऐसा समय है जब पत्रकार से लेकर अदालतों तक सब डरे हुए हैं और देश जितना आज विभाजित है उतना कभी नहीं था. कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा है कि बृजमोहन अग्रवाल केंद्र में अपनी सरकार की छवि के बारे में विचार कर लेते तो अच्छा था जो लोकतंत्र की हत्या करने पर तुली हुई है. उन्होंने कहा है कि चंद उद्योगपतियों को बढ़ावा देकर अर्जित धन से राज्य दर राज्य विधायकों की ख़रीदफ़रोख़्त में लगी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सरकार दरअसल लोकतंत्र की अब तक की सबसे घातक सरकार है. तानाशाही का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि चार घंटे में आप नोटबंदी कर देते हैं और चार घंटों में देश को लॉकडाउन की विभीषिका में धकेल देते हैं. बृजमोहन अग्रवाल के बयान पर उन्होंने कहा है कि बृजमोहन अग्रवाल को अपनी याददाश्त पर ज़ोर देकर सोचना चाहिए कि उनके मंत्री रहते रमन सिंह की सरकार ने पत्रकारों पर कैसे कैसे अत्याचार किए. उन्हें याद न हो तो एडिटर्स गिल्ड की बस्तर पर रिपोर्ट पढ़ लेनी चाहिए. उन्हें याद करना चाहिए कि कैसे उनके अफ़सरों ने प्रदेश में डर का एक माहौल बना रखा था जिसमें हर कोई डरा हुआ था और अधिकारी तक यह कहते थे कि वे फ़ोन पर बात करने से डरते हैं. कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा है कि यह ऐसा समय है जब देश में लोकतंत्र का अपहरण हो चुका है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे बड़े ख़तरे में है. उन्होंने कहा है कि प्रेस की स्वतंत्रता के इंडेक्स में भारत नीचे लुढ़ककर 142 वें स्थान पर पहुंच चुका है और पाकिस्तान से बस दो पायदान ऊपर है. अदालतों की हालत यह है कि सारी अदालतें डरी हुई हैं और पहली बार हुआ है कि न्यायाधीशों को बाहर निकलकर प्रेस के सामने आना पड़ा. एक न्यायाधीश की हत्या हो गई और उसकी जांच तक नहीं हुई. देश में दलितों और अल्पसंख्यकों की मॉब लिंचिंग से लेकर धर्म विशेष के लोगों के प्रति घृणा के वातावरण की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा है कि जब देश में प्रधानमंत्री कपड़ों से लोगों की पहचना की बात कर रहे हों तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस तरह का माहौल देश में है. उन्होंने कहा है कि दिल्ली के जामिया मिलिया और जेएनयू के छात्रावासों में खुले आम गुंडागर्दी के बाद जिस तरह से लीपापोती की गई. वह भी इस डरावने समय को रेखांकित करता है. दिल्ली में जो दंगे हुए उसके पीछे भी भाजपा नेता थे, लेकिन कोरोना के संकटकाल में भी गिरफ़्तारी दूसरों की होती रही, आरोप पत्र में नाम सामाजिक कार्यकर्ताओं के आते रहे.