रायपुर। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामलों को लेकर राज्य सरकार ने एक बेहद अहम कदम उठाया है. सरकार ने आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामलों की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है. 6 सदस्यों वाली इस उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एके पटनायक को बनाया गया है. सेवानिवृत्त जस्टिस पटनायक के नेतृत्व में कमेटी सभी मामलों की जांच करेगी और समीक्षा करेगी कि आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामले वास्तव में सही है या फिर फर्जी तरीके से दर्ज किया गया है. गौरतलब है कि कांग्रेस ने चुनाव में भी आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामलों को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था.
ये हैं कमेटी के सदस्य
इस कमेटी में जस्टिस पटनायक के अलावा महाअधिवक्ता/ अतिरिक्त महाअधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ सदस्य होंगे. इनके साथ ही गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव, सचिव आदिम जाति अनुसूचित जाति विकास विभाग, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) छत्तीसगढ़, आयुक्त बस्तर संभाग जगदलपुर होंगे. गृह विभाग के अपर सचिव इस कमेटी में सदस्य सचिव होंगे.
आपको बता दें कि विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस पिछली सरकार पर नक्सल मामलों को लेकर सवाल उठाते रही है. मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी बस्तर में आदिवासियों के खिलाफ फर्जी कार्रवाई पर लगातार सरकार से जवाब तलब करते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों को नक्सली बताकर प्रताड़ित करने के कई मामलों में तत्कालीन सरकार को मुंह की खानी पड़ी और ऐसे मामलों को लेकर कोर्ट ने कई बार राज्य सरकार को लताड़ चुकी है.
गुप्तांगों में डाले गए थे पत्थर
आप नेता सोनी सोरी भी उन्हीं में से एक है. पुलिस ने सोनी सोरी और उनके रिश्तेदारों को नक्सली बताते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की थी. सोनी सोरी पेशे से बस्तर के एक स्कूल में शिक्षिका थी. सोनी सोरी तब चर्चा में आई थीं जब अक्टूबर 2011 में वे पुलिस प्रताड़ना का शिकार हुईं. हिरासत में लिए जाने के एक हफ्ते के भीतर ही सोरी ने ये इल्ज़ाम लगाया था कि पुलिस हिरासत में उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया और उनके गुप्तांगों में पत्थर डाले गए. कोलकाता के एक अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें सोरी के जननांगों में बाहरी चीजें पाई गईं थी. बाद में सोनी सोरी के खिलाफ पुलिस कोई भी आरोप साबित नहीं कर पाई और कोर्ट ने उन्हें नक्सल आरोपों से बरी कर दिया था.
सात साल जेल में रहने के बाद बरी
सत्रह साल की एक आदिवासी लड़की मारिया (बदला हुआ नाम) पर साल 2008 में नक्सलियों के साथ एक गांव पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. पुलिस आदिवासी लड़की के खिलाफ अदालत में कोई सबूत या गवाह नहीं पेश कर सकी. अदालत ने उसे बरी कर दिया. हालांकि उसे लगातार सात साल तक जेल में बंद रहना पड़ा.
सोनी सोरी, मारिया के अलावा बड़ी संख्या में ऐसे आदिवासियों जेलों में बंद हैं. पुलिस ने उन्हें नक्सली बताकर जेल में डाल दिया था लेकिन बताया जा रहा है कि इस तरह के 90 प्रतिशत मामलों में कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया.