बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए 43 दिन की पवित्र तीर्थयात्रा की शुरुआत 30 जून से शुरु होने वाली है. जिसके लिए 11 अप्रैल से रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुके हैं. बता दें कि 3 साल पहले अमरनाथ यात्रा पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी थी. जिसके बाद से कई यात्रियों को बाबा बर्फानी धाम खुलने का इंतजार था.

3 साल बाद बाबा बर्फानी की पहली तस्वीर आई सामने

अमरनाथ गुफा में बनने वाली हर साल की शिवलिंग के आकार की पहली तस्वीर सामने आई है. इसमें करीब आठ फीट ऊंचे बाबा बर्फानी के दर्शन हो गए हैं.

फिटनेस सर्टिफिकेट अनिवार्य

अमरनाथ यात्रा के लिए पंजाब नैशनल बैंक की दो शाखाओं में रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है, इसमें पीएनबी की राजा बाजार और बुद्धा कालोनी शाखाएं शामिल हैं, रजिस्ट्रेशन शुल्क 100 रुपये निर्धारित किया गया है. रजिस्ट्रेशन के लिए चार पासपोर्ट साइज का फोटो, बैंक खाता का ब्योरा और स्वास्थ्य प्रमाण पत्र अनिवार्य है. अमरनाथ यात्रा के लिए दो रास्ते हैं श्रद्धालुओं को इसका ब्योरा भी देना होगा.

2022 की अमरनाथ यात्रा से जुड़ी जरूरी बातें

  • 43 दिन की पवित्र तीर्थयात्रा 30 जून से 11 अगस्त तक चलेगी.
  • यात्रा से आठ दिन पहले रजिस्‍ट्रेशन जरूरी
  • अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन 11 अप्रैल से शुरू हो चुके हैं.
  • 13 साल से कम और 75 वर्ष से अधिक और 6 हफ्ते से ज्यादा की प्रेग्नेंट महिला को यात्रा करने की अनुमति नहीं होगी.
  • बालटाल से डोमेल के 2 किलोमीटर लंबे यात्रा मार्ग पर फ्री बैट्री व्हीकल सुविधा होगी.
  • अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिए सुरक्षाबलों के 1 लाख जवान तैनात रहेंगे. इसमें CRPF के जवान प्रमुख होंगे.
  • इस बार की अमरनाथ यात्रा में 10 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल हो सकते हैं
  • अमरनाथ यात्रा का मार्ग समय के साथ बदलता रहा है. इस इलाके में सड़कों के निर्माण के साथ ही यात्रा मार्ग में भी बदलाव हुआ है. अब अमरनाथ की यात्रा के लिए दो रास्ते हैं.
  • एक रास्ता पहलगाम से शुरू होता है, जो करीब 46-48 किलोमीटर लंबा है, इस रास्ते से यात्रा करने में 5 दिन का समय लगता है.
  • वहीं दूसरा रास्ता बालटाल से शुरू होता है, जहां से गुफा की दूरी 14-16 किलोमीटर है, लेकिन खड़ी चढ़ाई की वजह से इससे जा पाना सबके लिए संभव नहीं होता, इस रास्ते से यात्रा में 1-2 दिन का समय लगता है.

प्रत्येक श्रद्धालुओं पर रहेगी सरकार की नजर

सरकार श्रद्धालुओं के लिए एक RFID प्रणाली शुरू करने की भी योजना बना रही है, जिससे हर श्रद्धालु की आवाजाही पर नजर रखी जा सके. जम्मू से लेकर घाटी में पूरे यात्रा रूट पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाएंगे. यात्रा मार्ग पर स्नाइपर डॉग तैनात होंगे. पर्वतीय बचाव दल को तैनात करने के अलावा, प्रशासन यात्रियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल के लिए शिविर भी लगाएगा.

जानिए अमरनाथ यात्रा का महत्व

अमरनाथ धाम जम्मू-कश्मीर में हिमालय की गोद में स्थित एक पवित्र गुफा है, जो हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है. माना जाता है कि अमरनाथ स्थित पवित्र गुफा में भगवान शिव एक बर्फ-लिंगम यानी बर्फ के शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं. बर्फ से शिवलिंग बनने की वजह से इसे ‘बाबा बर्फानी’ भी कहते हैं

गर्मियों के कुछ दिनों को छोड़कर यह गुफा साल के अधिकांश समय बर्फ से ढंकी रहती है. गर्मियों के उन्हीं दिनों में यह तीर्थयात्रियों के दर्शन के लिए खुली रहती है. खास बात ये है कि इस गुफा में हर वर्ष बर्फ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है. बर्फ का शिवलिंग, गुफा की छत में एक दरार से पानी की बूंदों के टपकने से बनता है. बेहद ठंड की वजह से पानी जम जाता है और बर्फ के शिवलिंग का आकार ले लेता है.

यह दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के आधार पर बढ़ता और घटता है. यह शिवलिंग श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरा होता है और उसके बाद आने वाली अमावस्या तक आकार में काफी घट जाता है, ऐसा हर साल होता है. बर्फ के शिवलिंग के बाईं ओर दो छोटे बर्फ के शिवलिंग बनते हैं, उन्हें मां पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है. इसी बर्फ के शिवलिंग के दर्शन के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु अमरनाथ की पवित्र गुफा की यात्रा करते हैं.

अमरनाथ की पवित्र गुफा कहां स्थित है?

अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में 17 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई वाले अमरनाथ पर्वत पर स्थित है. अमरनाथ गुफा श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर दक्षिण कश्मीर में है. यह गुफा लिद्दर घाटी के सुदूर छोर पर एक संकरी घाटी में स्थित है. ये पहलगाम से 46-48 किमोमीटर और बालटाल से 14-16 किलोमीटर दूर है. गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां केवल पैदल या टट्टू द्वारा ही पहुंचा जा सकता है.


तीर्थयात्री पहलगाम से 46-48 किलोमीटर या बालटाल से 14-16 किलोमीटर की दूरी की खड़ी, घुमावदार पहाड़ी रास्ते से गुजरने हुए यहां पहुंचते हैं.

जानिए बाबा बर्फानी से जुड़ी कथा?

अमरनाथ गुफा से जुड़ी कथा के मुताबिक, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनकी अमरता की वजह पूछी, इस पर भोलेनाथ ने उन्हें अमर कथा सुनने के लिए कहा. पार्वती जी अमर कथा सुनने को तैयार हो गईं, इसके लिए वह एक ऐसी जगह तलाशने लगे, जहां कोई और ये अमर होने का रहस्य न सुन पाए, आखिरकार वह अमरनाथ गुफा पहुंचे. अमरनाथ गुफा पहुंचने से पहले शिवजी ने नंदी को पहलगाम में, चंद्रमा को चंदनवाड़ी में, सर्प को शेषनाग झील के किनारे, गणेशजी को महागुण पर्वत पर, पंचतरणी में पांचों तत्वों (धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश) को छोड़ दिया.

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पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा पहुंचकर शिवजी ने समाधि ली, फिर उन्होंने कलाग्नि को गुफा के चारों ओर मौजूद हर जीवित चीज को नष्ट करने का आदेश दिया, जिससे कोई और अमर कथा न सुन सके. इसके बाद शिवजी ने पार्वती को अमरता की कथा सुनाई, लेकिन कबूतर के एक जोड़े ने भी ये कथा सुन ली और अमर हो गया. आज भी कई श्रद्धालु कबूतर के जोड़े को अमरनाथ गुफा में देखने का दावा करते हैं.

अंत में, शिव और पार्वती अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने लिंगम रूप में प्रकट हुए, जिनका आज भी प्राकृतिक रूप से निर्माण होता है और श्रद्धालु उसी के दर्शन के लिए जाते हैं.

पहली बार कब शुरू हुई थी अमरनाथ यात्रा?

इस बात का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है कि अमरनाथ यात्रा कब से शुरू हुई. 12वीं सदी में लिखी गई कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में अमरनाथ का जिक्र मिलता है. माना जाता है कि 11वीं सदी में रानी सूर्यमती ने अमरनाथ मंदिर को त्रिशूल, बाणलिंग समेत कई अन्य पवित्र चीजें दान की थी

एक मान्यता के अनुसार, अमरनाथ गुफा की खोज सबसे पहले ऋषि भृगु ने की थी. दरअसल, जब एक बार कश्मीर घाटी पानी में डूब गई थी तो ऋषि कश्यप ने नदियों और नालों के जरिए पानी बाहर निकाला था, पानी निकलने के बाद ऋषि भृगु ने सबसे पहले अमरनाथ में शिव के दर्शन किए थे. आधुनिक रिसर्चर्स के मुताबिक, 1850 में बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिए ने अमरनाथ गुफा की खोज की थी.

कब होती है अमरनाथ यात्रा

अमरनाथ यात्रा आमतौर पर जुलाई-अगस्त के दौरान होती है, जब हिंदुओं का पवित्र महीना सावन पड़ता है. बाबा बर्फानी की तीर्थयात्रा 15 दिन या एक महीने के लिए आयोजित होती थी, 2004 में, श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड ने तीर्थयात्रा को लगभग 2 महीनों तक आयोजित करने का फैसला किया.

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