दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में सीटी स्कैन, MRI और अल्ट्रासाउंड जैसी जांचों के साथ-साथ अब अस्पतालों के संचालन को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर शुरू करने की योजना बनाई जा रही है. सरकार ने 11 निर्माणाधीन अस्पतालों को इस मॉडल के तहत संचालित करने का निर्णय लिया है. स्वास्थ्य विभाग ने इन अस्पतालों के संचालन और कमीशनिंग के लिए निजी भागीदारों को आमंत्रित करने हेतु सलाहकार नियुक्त करने के लिए निविदा जारी कर दी है.
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स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इस पहल का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करना और निजी क्षेत्र की दक्षता के माध्यम से जनता को उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है. अस्पतालों के कमीशनिंग और संचालन में पारदर्शिता, दक्षता और समयबद्धता सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल को अपनाया जा रहा है. इससे न केवल सरकार का वित्तीय बोझ कम होगा, बल्कि आधुनिक प्रबंधन और तकनीकी नवाचार भी स्वास्थ्य सेवाओं में समाहित हो सकेंगे.
कोविड महामारी के दौरान दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को ध्यान में रखते हुए, 2021 में 11 अस्पतालों के निर्माण की योजना बनाई गई थी, जिन्हें पीपीपी मॉडल पर संचालित किया जाएगा. इन अस्पतालों के निर्माण से 9748 बेड, जिसमें आईसीयू बेड भी शामिल हैं, की संख्या में वृद्धि होगी. हालांकि, इन अस्पतालों को 2-3 वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन विभिन्न कारणों से अब तक निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है.
अस्पतालों के विस्तार पर होगा अध्ययन
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इस निविदा का मुख्य उद्देश्य केवल पीपीपी मॉडल के तहत संचालन करना नहीं है, बल्कि अस्पतालों की वर्तमान स्थिति, उनकी क्षमता, सुरक्षा और विभिन्न मानकों के अनुपालन का भी मूल्यांकन करना है. इस प्रक्रिया में क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट और बुनियादी ढांचे की जांच शामिल होगी.
8 हजार करोड़ सालाना खर्च का अनुमान
वित्त विभाग ने अस्पतालों के निर्माण में हो रही देरी पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए 10,250 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जबकि इसके संचालन पर हर साल लगभग 8 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा. यह स्थिति सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के कारण भी उत्पन्न हुई है.
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