नई दिल्ली . दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा दायर मानहानि के मामले में भाजपा सांसद मनोज तिवारी के खिलाफ निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी और आदेश दिया कि इस मामले में उनके खिलाफ कोई और कदम न उठाया जाए.
जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने इस मामले में भाजपा सांसद के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाने का आदेश दिया और तिवारी की याचिका पर नोटिस जारी किया. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 नवंबर की तारीख तय की है. जस्टिस शर्मा ने कहा, ‘नोटिस जारी करें. इस बीच, याचिकाकर्ता की कार्यवाही स्थगित रहेगी.
सिसोदिया की याचिका में कहा गया है कि मनोज तिवारी समेत छह नेताओं ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों की कक्षाओं के निर्माण में भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगाए हैं. सिसोदिया ने कहा है कि इन नेताओं ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में झूठे आरोप लगाकर हमारी छवि खराब करने की कोशिश की.
हाई कोर्ट ने 5 जनवरी को भाजपा नेता सिरसा और हंस के खिलाफ निचली अदालत में चल रही कार्यवाही पर रोक लगा दी थी. बुधवार को सुनवाई के दौरान तिवारी के वकील ने कहा कि मानहानि के मामले में तिवारी द्वारा दायर एसएलपी पर फैसला करते समय अदालत ने केवल आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत मंजूरी देने के सवाल पर विचार किया और कुछ तथ्यों को देखते हुए याचिका सुनवाई योग्य थी. अदालत को आगे बताया गया कि छह आरोपियों में से गुप्ता के खिलाफ चल रही कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था और तिवारी को छोड़कर चार अन्य के खिलाफ रोक लगा दी थी.
मनोज तिवारी ने 1 जुलाई, 2019 को एक प्रेस कांफ्रेंस में एक आरटीआई के हवाले से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. मनोज तिवारी ने कहा था कि जो क्लासरुम 892 करोड़ रुपये में बन सकते थे, उनके निर्माण में दो हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च किया गया.
कार्यवाही पर रोक लगाने की याचिका का सिसोदिया के वकील ऋषिकेश कुमार ने जोरदार विरोध किया, उन्होंने कहा कि याचिका “अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग” है. उन्होंने प्रस्तुत किया कि इस मामले में बाद में कोई तथ्य सामने नहीं आया और सुप्रीम कोर्ट ने तिवारी की एसएलपी को खारिज कर दिया था और इस प्रकार, उनके खिलाफ कार्यवाही रोकना सिसोदिया के लिए प्रतिकूल होगा जिन्होंने इस मामले में पिछले पांच वर्षों से कोई प्रगति नहीं देखी है. भाजपा नेताओं को 2019 में एक अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 500 के साथ धारा 34 के तहत समन जारी किया गया था.