‘दुल्हा के देहीं से भस्मी छोड़ावा सखी हरदी लगावा…’ मंगल गीतों के बीच बाबा विश्वनाथ को लगी मेवाड़ की हल्दी, बनारसी ठंडई, पान और पंचमेवा का लगा भोग