रायपुर. भारतीय परंपरा और रीति-रिवाजों में दीपक का विशेष महत्व है. हर पूजा या अनुष्ठान से पूर्व दीपक जलाया जाता है. दीपक प्रज्जवलित करना सिर्फ आस्था और विश्वास पर ही निर्धारित नहीं है, इसके पीछे वैज्ञानिकता भी छिपी हुई है. विज्ञान की दृष्टि में सरसों के तेल का दीपक जलाने से जो गैस और ऊष्मा वातावरण में उत्पन्न होती है, वह उस वातावरण के दूषित और विषैले कीटाणुओं को खत्म कर देती है. इससे उस स्थान का वातावरण शुद्ध हो जाता है.

पीपल वृक्ष :

हिन्दू धर्म परंपरा में पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार पीपल पर ब्रह्मा जी का वास होता है. पीपल वृक्ष को जो काटता है या नुकसान पहुंचाता है, पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से सारे मनोरथ पूरे होते हैं. शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करने से पितर प्रसन्न रहते हैं. पीपल का वृक्ष रात में भी ऑक्सीजन उत्पन्न करता है और ऑक्सीजन मनुष्य के जीवन का आधार है. जिन लोगों की शनि की साढ़ेसाती चल रही होती है, उन्हें शनिवार को दीपक जलाना चाहिए, इससे पूर्ण शुद्ध प्राण वायु मिलती है. विविध साधनाओं और सिद्धियों में सफलता प्राप्त करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने का नियम है.

तुलसी का पौधा :

तुलसी के पौधे के नीचे संध्या को दीपक जलाने से घर पर बुरी शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता है. दीपक जलाने वालों के पापों का नाश भी हो जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार तुलसी में सभी तीर्थों, देवी-देवताओं और वेदों का निवास होता है, इसका वैज्ञानिक आधार भी है. तुलसी में बेजोड़ औषधीय और कीटनाशक गुण छिपे होते हैं. तुलसी अनेक बीमारियों को दूर करती है. रविवार को तुलसी के पत्ते तोड़ना और उस पर जल छिड़कना मना है. रविवार को तुलसी का सेवन करना या उसके पत्तों को तोड़कर चबाना वर्जित है.

केले का वृक्ष :

बृहस्पतिवार (गुरुवार) को केले के वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलाने से अविवाहित कन्या का विवाह शीघ्र हो जाता है. ऐसी मान्यता प्राचीन काल से ही चली आ रही है. इसी तरह से बरगद, गूलर, इमली, कीकर, आंवला आदि अनेक पौधों और वृक्षों के नीचे अलग-अलग इच्छाओं को लेकर अलग-अलग प्रकार से दीपक जलाए जाते हैं.