धार्मिक ज्ञान: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को धूमधाम से निकाली जाती है. इस साल यह भव्य आयोजन 7 जुलाई को होगा. इस अवसर पर हम आपके लिए लाए हैं रथ यात्रा से जुड़ी 10 खास बातें, जो शायद आप नहीं जानते होंगे:
- प्रभु का बीमार होना: हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ते हैं. इस अवधि को अनासार कहते हैं, जब मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और भगवान को जड़ी-बूटियों के काढ़े का भोग लगाया जाता है.
- गुंडिचा मंदिर: पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ हर साल रानी गुंडिचा के मंदिर में रथ पर सवार होकर जाते हैं और वहां 10 दिनों तक विश्राम करते हैं. गुंडिचा भगवान की भक्त थीं और भगवान उनकी भक्ति का सम्मान करने हर साल उनसे मिलने जाते हैं.
- रथ निर्माण: रथों का निर्माण नीम की पवित्र अखंडित लकड़ी, जिसे दारु कहते हैं, से होता है. रथ निर्माण में किसी भी प्रकार के कील, कांटों और धातु का उपयोग नहीं होता है.
- रथ की पहचान: रथों को उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है. नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है.
- नव यौवन नैत्र उत्सव: पंद्रह दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं. इसे नव यौवन नैत्र उत्सव कहते हैं.
- नगर भ्रमण: द्वितीया के दिन भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ राजमार्ग पर निकलते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करते हैं.
- महाभाग्य: कहते हैं, जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान माना जाता है. यह यात्रा आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आरंभ होती है.
- हेरा पंचमी: यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी का महत्व है. इस दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं, जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा पर निकल गए होते हैं.
- बहुड़ा यात्रा: आषाढ़ माह की दशमी को सभी रथ पुनः मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं. इस वापसी यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं.
- प्रतिमा प्रतिष्ठान: नौवें दिन रथ यात्रा पुनः भगवान के धाम पहुंचती है. भगवान जगन्नाथ मंदिर वापस आने के बाद भी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं. मंदिर के द्वार अगले दिन एकादशी को खोले जाते हैं और विधिवत स्नान करवा कर देव विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है.
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