दिल्ली के एक नामी निजी स्कूल ने दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) में यह स्वीकार किया है कि जिस जमीन पर स्कूल संचालित हो रहा है, उसका मालिकाना हक उसके पास नहीं है। स्कूल की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि उनके पास भूमि आवंटन पत्र या लीज डीड मौजूद नहीं है। सूत्रों के अनुसार, यह स्कूल पिछले 50 वर्षों से इसी जमीन पर संचालित हो रहा है और अब न्यायालय में इसकी वैधता को लेकर मामला चल रहा है।

जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच के समक्ष प्राइवेट स्कूल की प्रिंसिपल ने बताया कि यह स्कूल 1975 से संचालित हो रहा है। इस दौरान जमीन के आवंटन और लीज डीड को लेकर प्रिंसिपल ने शुरुआत में अस्पष्ट जवाब दिए, लेकिन बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि संबंधित दस्तावेज उनके पास मौजूद नहीं हैं। प्रिंसिपल ने निचली अदालत में लंबित मामलों का हवाला देते हुए दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) पर यह जिम्मेदारी डाली कि उन्हें जमीन से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं। हालांकि, DDA पहले ही बेंच के समक्ष कह चुका है कि उसके पास इस जमीन को लेकर कोई जानकारी नहीं है। बेंच ने DDA के जवाब को देखते हुए उसे इस मामले में पक्षकार बनाया और कहा कि स्कूल की जमीन को लेकर अपना पक्ष प्रस्तुत करे।

हाईकोर्ट में स्कूल का पक्ष सामने आने के बाद, यहाँ पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक चिंतित हैं। छात्रों के परिजनों ने बेंच के समक्ष कहा कि स्कूल को लेकर उठ रहे सवालों से उन्हें अपने बच्चों के भविष्य को लेकर आशंका है। यदि स्कूल को अधिकृत रूप से संचालित करने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो उनके बच्चों का भविष्य अधर में लटक सकता है। बेंच ने अभिभावकों की चिंताओं के मद्देनजर उन्हें आश्वस्त किया कि मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है और उचित कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।

छात्रों को निकालने के बाद चर्चा में आया था स्कूल

यह मामला तब काफी गर्म हो गया था जब पिछले वर्ष स्कूल ने एक दर्जन से अधिक छात्रों को निकाल दिया था। इसके पीछे कारण बताया गया कि इन छात्रों ने स्कूल द्वारा बढ़ाई गई फीस जमा नहीं कराई थी। बेंच ने उस समय छात्रों के परिजनों को निर्देश दिया था कि वे कम से कम 60 प्रतिशत फीस जमा करा दें। बाकी मामलों के तथ्यों पर आगे की सुनवाई के दौरान विचार किया जाएगा।

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