दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने पति-पत्नी के बीच तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि जीवनसाथी पर बिना सबूत के, अपमानजनक और अवैध संबंध के आरोप लगाना अत्यधिक क्रूरता के दायरे में आता है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और हर्ष वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने इस मामले में कहा कि बेवफाई के बार-बार निराधार आरोप किसी व्यक्ति के लिए उत्पीड़न, अपमान और मानसिक पीड़ा का कारण बन सकते हैं। हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि तलाक या वैवाहिक विवादों में तथ्यों और सबूतों के बिना आरोप लगाना न केवल कानूनी रूप से गलत है बल्कि मानवाधिकार और मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी हानिकारक है।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और हर्ष वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि बेबुनियाद आरोप और अनावश्यक मुकदमेबाजी यह दिखाते हैं कि आरोप लगाने वाले का रवैया प्रतिशोधात्मक है और व्यवहार बहुत क्रूर है। अदालत ने कहा कि विवाह का आधार आपसी विश्वास और सम्मान होता है। जब एक व्यक्ति अपमानित किया जा रहा हो और जीवन साथी ही बेबुनियाद आरोप लगाए, तो ऐसे परिस्थितियों में साथ रहने की उम्मीद वास्तविक रूप से संभव नहीं है।
इस जोड़े की शादी 1997 में हुई थी। शादी के कुछ समय बाद दोनों के बीच झगड़े शुरू हो गए। पत्नी ने पति के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज कराईं और पति ने भी एफआईआर करवाई। दोनों 2012 से अलग-अलग रह रहे थे। 2013 में पति ने तलाक के लिए अर्जी दायर की।
पति ने कहा कि पत्नी घमंडी है, अपमानित करती है, घर के कामकाज करने से मना करती है और उसे घर से बाहर निकाल दिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि पत्नी बिना किसी सबूत अवैध संबंध के आरोप लगाती है। पत्नी ने दलील दी कि पति दहेज मांगता है और दूसरी महिलाओं से संबंध रखता है। दोनों अलग रहने लगे और 2012 से अलग रह रहे थे। पति ने 2013 में तलाक के लिए अर्जी दी। फैमिली कोर्ट ने तलाक मंजूर करते हुए कहा कि ऐसे उत्पीड़न के साथ पत्नी के साथ रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसके बाद पत्नी ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया।
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