भोपाल. मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के पहले चरण का मतदान बुधवार को होने वाला है, यह चुनाव राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए तो महत्वपूर्ण है ही साथ में दोनों ही दलों के दिग्गज नेताओं के लिए भी अहम है, क्योंकि उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है.
राज्य में पहले चरण में 133 नगरीय निकाय में मतदान होना है. यह नगरीय 49 जिलों में है. इस चरण के चुनाव में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण 11 नगर निगम है, क्योंकि इनमें से अधिकांश वे क्षेत्र हैं जो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के क्षेत्रों में गिने जाते हैं.
राज्य में पहले चरण में जिन 11 नगर निगम में चुनाव होने वाले हैं, उनमें राजधानी भोपाल प्रमुख है, यहां एक तरफ जहां भाजपा की सरकार और संगठन की साख दांव पर है तो दूसरी ओर कांग्रेस संगठन भी अपनी प्रतिष्ठा के लिए लड़ाई लड़ रहा है. वहीं, इंदौर के महापौर के चुनाव भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के लिए खासे महत्वपूर्ण है, क्योंकि विजयवर्गीय पहले इंदौर के महापौर रह चुके हैं.
इसी तरह ग्वालियर नगर निगम भाजपा के लिए खास अहमियत रखते हैं, क्योंकि इस इलाके से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया आते हैं. इतना ही नहीं, यह ग्वालियर-चंबल वह इलाका है, जहां के सबसे ज्यादा विधायकों ने कांग्रेस में रहते हुए बगावत की थी और कमलनाथ की सरकार गिरा दी थी.
पहले चरण में जबलपुर नगर निगम में भी मतदान होना है, भाजपा के सबसे महत्वपूर्ण गढ़ में से एक है जबलपुर और यहां भाजपा ने पूरी ताकत झोंकने में कसर नहीं छोड़ी है तो दूसरी ओर यहां कांग्रेस भी जोर लगाए हुए है, क्योंकि किसी दौर में कांग्रेस यहां मजबूत हुआ करती थी. इसी चरण में छिंदवाड़ा में भी चुनाव होना है, यह कमलनाथ का क्षेत्र माना जाता है.
इसके अलावा देखा जाए तो पहले चरण में खंडवा, बुरहानपुर, उज्जैन, सागर, सिंगरौली और सतना नगर निगम में भी मतदान होने वाला है. वही 36 नगर पालिका परिषद और 86 नगर परिषद में भी मतदान होना है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहले चरण में होने वाले मतदान में कांग्रेस और भाजपा से जुड़े कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है, इसकी वजह भी है क्योंकि इन नेताओं ने महापौर के उम्मीदवार तय कराने में उनकी चली है.
कई जगह तो बड़े नेताओं ने अपने दबाव में उम्मीदवार तय किए हैं. जब नतीजे पार्टियों के विपरीत आएंगे तो उन नेताओं के सियासी हैसियत पर सवाल उठ सकते हैं, जिन्होंने पार्टी के भीतर लड़ाई झगड़ा करके उम्मीदवारी तय कराई है. भाजपा की बात करें तो पार्टी संगठन ने तमाम विधायकों और सांसदों के अलावा नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है और नतीजों को उनके भविष्य से जुड़ने की बात भी कही जा रही है. इसी तरह कांग्रेस ने भी नगरीय निकाय के चुनाव को पार्टी के नेताओं का रिपोर्ट कार्ड मानने की बात कही है.