Retail investors vs FPI Selling: भारत का शेयर बाजार एक बार फिर नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है. सेंसेक्स और निफ्टी दोनों लगभग 14 महीनों में अपने सबसे ऊँचे स्तर पर हैं. दिलचस्प बात यह है कि यह तेजी विदेशी इन्वेस्टर्स की लगातार बिकवाली के बावजूद हो रही है.
सिर्फ इस महीने की शुरुआत में ही, विदेशी इन्वेस्टर्स ने शेयर बाजार से लगभग दस हजार करोड़ रुपये निकाल लिए. यह सिर्फ़ एक या दो हफ्ते की बात नहीं है; वे कई महीनों से लगातार बेच रहे हैं.
फिर भी, बाजार क्रैश नहीं हुआ है. इसका सीधा कारण यह है कि घरेलू इन्वेस्टर्स और हम जैसे आम इन्वेस्टर्स लगातार इन्वेस्ट कर रहे हैं. जहाँ एक तरफ डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (DIIs) ज़ोरदार खरीदारी कर रहे हैं, वहीं आम लोगों ने भी अपना हौसला बनाए रखा है, बाज़ार को सपोर्ट किया है और इसकी तेजी में अहम योगदान दिया है.
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आम इन्वेस्टर्स मजबूत बने रहे, उनका भरोसा नहीं टूटा
पिछले कुछ महीनों में, दुनिया भर के बाज़ारों में काफ़ी उतार-चढ़ाव रहा है. अमेरिका में टैक्स बढ़ने से लेकर कंपनियों पर दबाव तक, हर चीज़ का असर भारत पर भी पड़ा है. इसके बावजूद, एक बात साफ़ है: भारतीय इन्वेस्टर्स ने बाज़ार पर से अपना भरोसा नहीं खोया है.
लोग लगातार इन्वेस्ट कर रहे हैं और विदेशी बिकवाली के सामने डटे हुए हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि मौजूदा बाज़ार की तेज़ी काफी हद तक इन घरेलू इन्वेस्टर्स की वजह से है.
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विदेशी बिकवाली का असर किसने झेला?
प्रूडेंट कॉर्पोरेट के संजय शाह कहते हैं कि रिटेल इन्वेस्टर्स की एक्टिव भागीदारी ने विदेशी बिकवाली के असर को काफी हद तक कम कर दिया है. उनके मुताबिक, हर महीने SIPs (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के ज़रिए आने वाला पैसा इस समय अपने सबसे ऊँचे स्तर पर है, जिससे बाज़ार पूरी तरह से संतुलित बना हुआ है.
उनका यह भी मानना है कि सीमित इन्वेस्टमेंट ऑप्शन और SIPs के फ़ायदों ने इन्वेस्टर का भरोसा बढ़ाया है. उनकी कंपनी के डेटा के अनुसार, जहाँ साल की शुरुआत में SIPs लगभग 980 करोड़ रुपये थे, वहीं अब यह बढ़कर लगभग 1100 करोड़ रुपये हो गए हैं. यह साफ़ दिखाता है कि रिटेल इन्वेस्टर्स की दिलचस्पी कम होने के बजाय बढ़ी है.
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IPO बाजार में भी जबरदस्त दिलचस्पी
नए शेयरों, यानी IPOs का बाज़ार भी इन दिनों ज़ोरों पर है. आम लोग यहाँ भी लगातार पैसा लगा रहे हैं और कई IPOs में ज़ोरदार बोली लगा रहे हैं.
अक्सर देखा गया है कि IPOs की वजह से इन्वेस्टर्स का पैसा शेयर बाज़ार में ही रहता है, बजाय इसके कि वह कहीं और जाए. संजय शाह का मानना है कि जब कंपनियाँ अपने शेयर बेचकर पैसे जुटाती हैं, तो वह पैसा वापस मार्केट में सर्कुलेट होता है, और इकोनॉमिक एक्टिविटी तेज़ होती है.
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