दिलशाद अहमद, सूरजपुर. शिक्षा का महत्व जीवन में अमूल्य है, जीवित रहते हुए शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सुभाष पांडे का शिक्षा के प्रति ऐसा अदभुत प्रेम है कि मृत्यु के बाद अपने शरीर को शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित कर देने का फैसला लिया है. सूरजपुर के सेवानिवृत शिक्षक ने अपने 40 वर्ष शिक्षा क्षेत्र को दिए और अब वह और उनकी धर्म पत्नी ने मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिए देह दान करने का निर्णय लिया है.

सूरजपुर के पचिरा गांव में रहने वाले रिटायर शिक्षक सुभाष चंद्र पांडे और उनकी धर्म पत्नी ज्ञानवंती पांडे ने मृत्य के बाद देहदान करने का फैसला कर समाज को प्रेरणा देने का काम किया है. शिक्षक सुभाष चंद्र पाण्डेय को बचपन से ही शिक्षा प्राप्त करने को लेकर काफी लगन रहा और शिक्षा प्राप्त करके सन् 1984 से 40 वर्ष तक शिक्षक के तौर पर शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देते हुए जनवरी 2024 में वह रिटायर हुए. वहीं 40 वर्ष में विभिन्न स्कूलों में कई पदों पर रहते हुए एक दिन का भी छुट्टी नही लिया और पूरी ईमानदारी के साथ छात्रों को शिक्षा देते रहे. वहीं 40 वर्ष शिक्षा के क्षेत्र को देने के बाद भी शिक्षा प्रति उनका ऐसा समर्पण की रिटायर होने के बाद कई रातों तक सो नहीं सके और उनके मन में बस बच्चों के भविष्य की चिंता रहती थी. शिक्षा के साथ समाज के प्रति भी उनका एक अलग ही सोच है, जिसके लिए उन्होंने अपने मरने के बाद भी उनका शरीर शिक्षा के क्षेत्र में काम आए इसलिए उन्होंने मेडिकल कॉलेज अंबिकापुर को देहदान करने का फैसला लिया.

वहीं शिक्षक सुभाष चंद्र पांडे ने तो बहुत पहले से ही देहदान का मन बना लिया था पर उनकी पत्नि पहले सहमत नहीं थीए लेकिन पति के शिक्षा के प्रति अदभुत प्रेम को देख कर और शिक्षा के प्रति उनके विचारों को समझा और पत्नि ज्ञानवंती पाण्डेय के भी सोच में अचानक परिवर्तन आया और रिटायर होने के बाद पति को उनके देह दान के फैसले को पूरा करने के लिए प्रेरित किया. साथ ही खुद भी पति के साथ देहदान करने का फैसला कर लिया. उन्होंने बताया, इनकी दोनों बेटियां भी माता पिता के इस फैसले पर गौरवान्वित है.

वहीं देहदान को लेकर दोनों पति पत्नी ने मेडिकल कॉलेज अंबिकापुर जाकर प्रक्रिया पूरी कर घोषणा पत्र भरा है. वहीं उन्हें मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की ओर से सम्मान पत्र भी दिया गया है. वहीं सेवानिवृत शिक्षक सुभाष चंद्र पाण्डेय का कहना है कि आज मेरी पहचान जो भी है शिक्षा देने की वजह से है. मैने जो अपने जीवन के 40 वर्ष शिक्षा के क्षेत्र को दिए हैं उससे है. शरीर से जब आत्मा निकल जाएगी तो वो किसी काम का नहीं, शव को जला देने से मै समाज को कोई संदेश नहीं दे पाऊंगा. जैसे मैंने जीवित रहते अपना जीवन शिक्षा के क्षेत्र को दिया वैसे ही मृत्य के बाद भी यह शरीर शिक्षा को समर्पित हो और चिकित्सा के छात्रों के काम आए और शरीर से शोध कर समाज को ज्ञान बांट सकें. वहीं लोगों में भी एक संदेश जाए और साथ ही देहदान के लिए लोग प्रेरित हों.

बहरहाल सेवानिवृत शिक्षक सुभाष पाण्डेय और उनकी धर्म पत्नी ज्ञानवंती पाण्डेय के मेडिकल कॉलेज को देहदान करने के फैसले से निश्चित ही मृत्युपरांत उनका शरीर चिकत्सा के क्षेत्र में काफी उपयोगी साबित होगा और आने वाली पीढ़ी शोध कर कुछ सीखेंगे और समाज में ज्ञान बांटेंगे. साथ ही इनका देहदान का फैसला समाज में एक मिसाल और प्रेरणा से कम नहीं है.

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