कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। आओ शिक्षा की ज्योति जलाएं अपने गांव शहर प्रदेश और भारत को साक्षर बनाएं, मध्य प्रदेश के ग्वालियर के एक रिटायर्ड शिक्षक ने शिक्षा जागृति की ऐसी मुहिम शुरू की, जो आज 01 हजार से ज्यादा मजदूर, गरीब, निराश्रित वर्ग के बच्चों में शिक्षा की ज्योति जला रही है।
कहीं मंदिर परिसर, कहीं खुला आसमान, कहीं ओवर ब्रिज के नीचे। ये जगह सब यूं तो आपस मे अलग अलग है। लेकिन इन सबके बीच कुछ एक जैसा है, तो वो है “सेवार्थ पाठशाला”। जी हां खुशी की दौड़ लगाते हुए ये मासूम गरीब बच्चे। मंदिर परिसर में अपने हाथों से फर्श बिछा रहे है, स्टैंड पर ब्लैल बोर्ड टांग रहे है। आंखों में शिक्षा में तपने की आग है। बस इंतजार है “OP दीक्षित साहब” है। लीजिये इन बच्चों का इंतजार खत्म हुआ, दीक्षित साहब आए और शुरू हो गयी सेवार्थ पाठशाला। दिसंबर 2019 में स्कूल शिक्षा विभाग से रिटायर्ड होने वाले शिक्षक OP दीक्षित ने कोरोना आपदाकाल में शिक्षा जागृति का एक ऐसा अवसर खोज निकाला, जो आज हजारों गरीब मजदूर बच्चों के अंदर शिक्षा जागृति का काम कर रहा है।
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ऐसे शुरू किया सफर…
स्कूल शिक्षा विभाग के ग्वालियर स्थित डाईट सेंटर से OP दीक्षित रिटायर हो गए थे। रिटायरमेंट के बाद एक सप्ताह बड़ी मुश्किल से घर में गुजर रहा था। हर रोज की तरह शहर के विवेकानंद नीड़म इलाके में मॉर्निंग वॉक पर निकल पड़े। तभी उनकी नजर गरीब मजदूर और जनजाति वर्ग के बच्चों पर पड़ी। जब उनके पास जाकर स्कूली पढ़ाई के बारे में पूछा तो वह हैरान रह गए क्योंकि कोई भी बच्चा स्कूल पढ़ने नहीं जा रहा था। अचानक मन में संकल्प लिया और उन बच्चों को उनकी ही झोपड़ी के बाहर पढ़ाने लगे। कॉपी किताब पेन पेंसिल स्कूल बैग भी अपनी ओर से उन बच्चों को दिया। आसपास के इलाके में मौजूद गरीब बच्चों को जब आप दीक्षित साहब के बारे में जानकारी मिली तो वह भी पढ़ाई करने उनके पास पहुंचने लगे। देखते ही देखते बच्चों की संख्या बढ़ने लगी।
10 से ज्यादा जगहों पर पाठशाला
अचानक कोरोनाकाल का वक्त आ गया जिसने पूरे देश दुनिया को हिलाकर रख दिया। मजदूर और गरीब जनजाति वर्ग के कुछ लोग अपने गांव लौट गए, तो कुछ उन जगहों पर पहुंचने लगे जहां उन्हें कोई दो वक्त की रोटी दे जाए। OP दीक्षित साहब की पाठशाला में बच्चे आना बंद हो गए, तो उनका मन दुखी हो गया। गरीब बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित न हो जाए इसको लेकर उन्होंने बच्चों के बारे में खोजबीन शुरू कर दी और जहां-जहां बच्चे अपने माता-पिता के साथ पहुंचे वहां-वहां उन्होंने अपनी पाठशाला शुरू कर दी। और इससे नाम दे दिया “सेवार्थ पाठशाला”। देखते ही देखते यह पाठशाला तीन या चार नहीं बल्कि 10 से ज्यादा जगह पर शुरू हो गई।

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रिटायर्ड अधिकारी-कर्मचारी और छात्र हुए प्रभावित
मासूम बच्चों के अंदर शिक्षा की ज्योति जगाने के इस संकल्प को देखकर बहुत सारे रिटायर्ड अधिकारी कर्मचारी युवा और कॉलेज के छात्र-छात्राएं भी प्रभावित हुए और अब वह भी OP दीक्षित साहब की सेवार्थ पाठशाला में गरीब बच्चों को स्कूली शिक्षा प्रदान कर रहे है। इनमें से काफी लोगों का कहना है कि वह भी गरीब परिवार से आते हैं और उन्होंने उन कठिन परिस्थितियों को देखा है ऐसे में दीक्षित साहब के शुरू के इस अभियान में वह भी शामिल हो गए।
सेवार्थ पाठशाला में पढ़ने वाले मासूम छात्र-छात्राओं का कहना है कि दीक्षित सर की पाठशाला में वह कई सालों से पढ़ रहे है। वह उन्हें स्कूली शिक्षा प्रदान करने के साथ ही खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी शामिल रखते हैं। सभी बच्चे वास्तविक दुनिया को समझ सके और उससे ज्ञान अर्जित कर सकें। इसके लिए OP दीक्षित सर उन्हें पर्यटन टूर पर भी ले जाते हैं।

OP दीक्षित बोले- यू हीं जारी रहेगा कारवां…
रिटायर्ड शिक्षक OP दीक्षित का कहना है कि उन्होंने सेवार्थ पाठशाला की शुरुआत ब्लैक बोर्ड चौक और डस्टर के साथ की थी। आधुनिक दौर में कंप्यूटर शिक्षा के साथ अन्य बहुत सी जरूरत भी महसूस की जाती है। ऐसे में उनके साथ जुड़ रहे आम लोगों की मदद से वह आने वाले दिनों में बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा से भी जोड़ने का प्रयास करेंगे और उनका शिक्षा जागृति का यह कारवां यूं ही जारी रहेगा।
शिक्षा को फैलाने में भी उम्र बाधा नहीं
आपको बता दे कि बिना किसी पंजीयन और NGO बनाये, रिटायर्ड शिक्षक OP दीक्षित अपने शिक्षक होने का कर्म अभी भी अदा कर रहे है। उन्होंने यह साबित किया है कि जिस तरह शिक्षा हासिल करने की कोई उम्र नही होती, उसी तरह शिक्षा के प्रकाश को समाज में फैलाने के लिए भी उम्र कभी बाधा नहीं बन सकती है। लल्लूराम डॉट कॉम भी OP दीक्षित साहब के इस जज्बे और संकल्प को सलाम करता है।
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