समीक्षा। सोशल मीडिया में रिलीज़ के बाद से धूम मचा रही फिल्म चमन-बहार वाकई में बेहद कमाल की फिल्म है. फिल्म की कहानी बहुत ही साधारण है, लेकिन पठकथा की बुनावट में जबरदस्त कसावट है. सहज-सरल दृश्यों में अमिट छाप है. ऐसी छाप जो हर किसी के स्मृति पटल पर किसी न किसी रूप में दर्ज़ है. कहते हैं कुछ यादें चाहकर भी नहीं भुलाई जा सकती है, कुछ इसी तरह की यादों को समेट लिया गया है चमन-बहार में. उन यादों को इतनी सहजता से निर्देशक अपूर्व धर बड़गैयाँ ने जीवंत किया है कि किरदारों को देखते वक़्त को लगेगा कि आप फिल्म नहीं, बल्कि अपने ही आस-पास की घटनाओं को घटित होते हुए देख रहे हैं. बॉलीवुड के इस हिंदी में फ़िल्म में ग़ज़ब का देसी पन है. बिल्कुल ठेठ अंदाज़ है. फिल्म में कहीं से भी ऐसा नहीं लगता है जैसे कोई नकल किया गया हो.

पठकथा की बुनावट में जबरदस्त कसावट

फिल्म की कहानी छत्तीसगढ़ में मुंगेली जिले के लोरमी कस्बे की है. लोरमी में रहने वाले बिल्लू की कहानी. बिल्लू जो वन आरक्षक से पनवारी बन जाता है अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए. अलग पहचान के लिए वो खोल लेता है पान की दुकान. और इसी पान की दुकान से फ़िर निकलते हैं कई किरदार…डैडी. शीला, आशु, भाँचा जैसे किरदार. इन किरदारों के बीच एंट्री होती रिंकु की. रिंकु, एक ऐसी खूबसूरत लड़की जो लोरमी के लड़कों को दीवाना बना देती है. लोरमी के चमन में जैसे बहार ला देती है. और इसी चमन-बहार के साथ ही बिलासपुर से अलग जिला बनने के बाद मुंगेली के लोरमी जाने वाली जो सड़क बेजान पड़ी रहती थी, उसमें जान आ जाती है. मक्खी मारते बैठे रहने वाले बिल्लू की पान दुकान चल पड़ती है. लेकिन पान के दुकान से चमन-बहार की फैलती खूशबुओं के बीच बिल्लू के जीवन में तूफान भी आता है. बिल्लू, रिंकु को मन ही मन चाहने लगता है. उससे अपनी दिल की बातें कहने कई तरह की हरकतें करने लगता है. इन सबके बीच घटने वाली छोटी-छोटी घटनाएं ही आपको 2 घंटे तक पूरी से बांधे रखती है.

ख़ास-बातें

फ़िल्म की ख़ास बातें ये है कि फिल्म जिस पृष्ठभूमि के साथ बनी है. उसी के अनुरूप ही पूरी तरह से दृश्यों को फिल्माया गया है. मेट्रों की चका-चौंध का कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया है. मतलब जबरदस्ती का कोई भी कथानक नहीं गढ़ा गया है. ना ही फालतू के कोई संवाद रखे गए. उन संवादों को ही रखा गया, जो सामान्यतः बोल-चाल में शामिल रहते हैं. फिल्म पूरी तरह से बिल्लू पर केंद्रित है. बाकी सभी किरदार उससे होकर ही निकलते हैं. रिंकु जिसके दीवानें लोरमी के युवा रहते हैं और बिल्लू जिसे मन ही मन चाहने लगता है व केंद्र मे ना होकर भी केंद्र बिंदु में आ जाती है. जबकि कहीं भी रिंकु का कोई भी संवाद फ़िल्म में नहीं है.

संगीत पक्ष में बेहतरीन प्रयोग

ग्रामीण-कस्बाई युवाओं के ऊपर केंद्रित यह फिल्म पूरी तरह से छत्तीसगढ़ियापन से सजी है. इसलिए संगीत पक्ष में लोक-गीतों और धुनों का बेहतरीन प्रयोग किया गया. फ़िल्म में ददरिया, बांस-गीत, विवाह-गीत, गड़वा-बाजा के बोल-धुन आपको बैकग्राउंड म्यूजिक के तौर पर सुनने को मिलते हैं. ऐसा भी नहीं कि यह धुन आपको कहीं भी सुनने मिलेंगे. दृश्य के अनुरूप ही धुन बजाए गए हैं. यही नहीं फिल्म में एक बेहद खूबसूरत छत्तीसगढ़ी गाना भी रखा गया. जिसके बोल हैं बाजे दिल धुन-धुन…फिल्म की शुरुआत ही इसी छत्तीसगढ़ी गाने के साथ होती है. यह प्रयोग में जबरदस्त है. क्योंकि इस तरह के प्रयोग छत्तीसगढ़ी फिल्मों में नहीं होता. फ़िल्म के एक दृश्य में नायिका को पूरी तरह से छत्तीसगढ़ी वेश-भूषा में दिखाया गाया है. यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय पहचान देने की एक कोशिश है. वहीं सोनू निगम का गाया गाना ‘दो का चार..’ कर्ण प्रिय है से जिसे आप कई बार सुनना पसंद करेंगे.

इसलिए याद आए हबीब साहब

इस फिल्म को देखते हुए मुझे हबीब तनवीर साहब याद आए. दरअसल जिस तरह से हबीब साहब अपनी नाटकों में जिस खूबसूरती के साथ छत्तीसगढ़ की वेश-भूषा, गीत-संगीत का प्रयोग करते रहे हैं, कुछ इसी तरह का प्रयोग अपूर्व ने चमन-बहार में किया है. फिर चाहे वह फ़िल्म शुरू होने के साथ पात्रों के नाम गली-मोहल्लों, सड़क-चौराहों, खेत-खलिहान-दुकान के साथ देते हैं, या फिर छत्तीसगढ़ फोक म्यूजिक को दृश्यों और किरदारों के साथ बजाते हैं. इस तरह के प्रयोग के मामले में हबीब साहब का कोई जवाब नहीं था. उन्होंने अपने नाटकों में परंपरागत शिल्पकला, लोक-कला को पर्याप्त स्थान देकर लोकल को ग्लोबल बनाने का काम किया था. अपूर्व ने भी इस दिशा में छोट सा ही सही लेकिन एक ख़ूबसूरत प्रयास लोकल को ग्लोबल बनाने का किया है.

अगर आपको गाँव से प्यार है, शहरनुमा कस्बे में आपके दिन गुजरे हैं, पान खाने के शौक़ीन हैं, चमन-बहार का स्वाद पसंद है, पान ठेले से निकलने वाली कहानियाँ पसंद है, तो आपको यह फ़िल्म बहुत पसंद आएगी. फ़िल्म में बिल्लू का किरदार निभाने वाले जितेन्द्र ने अपने अभिनय के साथ न्याय किया है, पुलिसवाले के रोल में भगवान तिवारी ख़ूब जमे हैं, तो वहीं आशु, शीला और डैडी का किरदार निभाने छत्तीसगढ़ के थियेटर कलाकारों ने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है. सही मायनों में चमन-बहार मुंबईया मसाला फिल्म से अलग, लेकिन मंनोरंजन से भरपूर हंसाने, रुलाने वाली लीक से हटकर बनाई गई फिल्म है. चमन-बहार को एक बार देखने के बाद आपका मन करेगा कि दोबारा फिर देख ली जाए.