सुधीर दंडोतिया, रीवा/भोपाल। स्वास्थ्य व्यवस्था की ऐसी दुर्गति… जिसे देखकर आप कहने पर मजबूर हो जाएंगे कि अब सिस्टम नहीं, संवेदनाएं मर चुकी हैं। मऊगंज जिला अस्पताल में एक छात्रा घंटों तड़पती रही, लेकिन अस्पताल में न डॉक्टर मिले और न ही जिम्मेदारी का कोई नामो निशान। यह खबर एक छात्रा की तबीयत बिगड़ने भर की नहीं है। ये उस सड़े हुए सिस्टम की सच्चाई है, जो दीवारों पर पोस्टर चिपकाकर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस लापरवाही पर जब ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर से सवाल किया गया, तो उन्होंने खुद सिस्टम की पोल खोल दी और कहा कि ‘यहां कोई मेरी सुनता ही नहीं!

दरअसल, मऊगंज जिले में नशा मुक्ति अभियान के तहत पुलिस द्वारा जागरूकता रैली निकाली जा रही थी। उसी रैली में शामिल सीएम राइज स्कूल की एक छात्रा तेज धूप के कारण बेहोश हो गई। जिसे तुरंत सिविल अस्पताल लाया गया, लेकिन अस्पताल में न डॉक्टर मौजूद था, न कोई इमरजेंसी सुविधा। ड्यूटी पर मौजूद नर्सों ने प्राथमिक दवा देकर बच्ची को घर भेज दिया। रात होते-होते हालत फिर बिगड़ गई। जब परिजन सुबह फिर से अस्पताल पहुंचे, तो सुबह 9 बजे तक भी एक भी डॉक्टर नहीं आया था! छात्रा तड़पती रही, परिजन मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन सरकारी कुर्सियां और डॉक्टर दोनों गायब!

ये भी पढ़ें: सड़क नहीं मिली तो बेटियों ने बिछा दी चारपाई! गांव में नहीं पहुंचा विकास, बीमार बाप को कांधे पर उठाया, कीचड़-दलदल के रास्ते डेढ़ किलोमीटर सफर कर पहुंचाया अस्पताल

जब किसी भी डॉक्टर के न मिलने पर परिजनों ने ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रद्युम्न शुक्ला से संपर्क किया, तो उन्होंने जो कहा कि वो किसी चेतावनी से कम नहीं था। डॉ प्रद्युम्न ने कहा कि डॉक्टर मेरी भी नहीं सुनते, स्टाफ मनमानी करता है। मैंने कई बार पत्र लिखे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई!

सोचिए अगर एक ज़िम्मेदार बीएमओ का स्टाफ ही उसकी बात नहीं सुन रहा, तो आम जनता की फरियाद कौन सुनेगा ? और जब मामला रीवा सीएमएचओ तक पहुंचा, तो वहां से भी वही ‘जांच का रटा-रटाया जवाब’ मिला, जो हर बार सिर्फ कागज़ पर होता है, धरातल पर नहीं।

ये भी पढ़ें: खाट पर विकास: गर्भवती को ले जाने से एंबुलेंस ड्राइवर ने किया इनकार, चारपाई पर लादकर 2 KM पैदल चले ग्रामीण

जमीनी सच्चाई

स्थानीय मरीजों का आरोप है कि अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर या तो निजी क्लीनिकों में व्यस्त रहते हैं या अस्पताल परिसर में ही प्राइवेट चैंबर चलाते हैं। मरीजों को निजी इलाज की ओर ले जाने के लिए दलाल सक्रिय हैं, जो सीधे सरकारी अस्पताल के भीतर से गरीबों को ‘पकड़’ लेते हैं! और ये सब तब हो रहा है, जब जिला अस्पताल से महज 1 किलोमीटर की दूरी पर कलेक्टर कार्यालय है।

ये तथ्य जो व्यवस्था पर तमाचा हैं

  • गायनी विभाग में एक भी महिला डॉक्टर नहीं पदस्थ।
  • बीएमओ द्वारा बार-बार लिखित शिकायत के बावजूद प्रशासन मौन।
  • ओपीडी समय पर डॉक्टरों की अनुपस्थिति आम बात बन चुकी है।

जागरूकता की रैली निकली, लेकिन जब बच्ची की तबीयत बिगड़ी, तो वो ‘जागरूक व्यवस्था’ लापता थी। ये तमाचा है उस सिस्टम पर, जो ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के नारे देता है, लेकिन अस्पताल में बेटियों को मरने के लिए छोड़ देता है। अब सवाल सीधा है, जब बीएमओ की बात नहीं सुनी जा रही, तो आम आदमी की सुनवाई कैसे होगी ? क्या स्वास्थ्य सेवाओं का मतलब सिर्फ पोस्टर और टेंडर रह गया है ? अगर अब भी प्रशासन ने जागरूकता से ज्यादा जिम्मेदारी को नहीं अपनाया, तो अगली खबर शायद किसी जान जाने की होगी।

Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H