आमोद कुमार/भोजपुर/आरा। पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरा से पूर्व सांसद राजकुमार सिंह (आरके सिंह) ने एक कार्यक्रम के दौरान दिए बयानों से बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। भाजपा नेतृत्व पर अप्रत्यक्ष नाराज़गी जताते हुए उन्होंने क्षत्रिय समाज की राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर नया सियासी संदेश दिया। आरके सिंह ने मंच से कहा कि कई बड़े दलों में क्षत्रिय समाज की भागीदारी बेहद कम होती जा रही है। उन्होंने तीखे लहजे में कहा मुझे कहने में कोई संकोच नहीं है कि मंचों से राजपूत समाज के नेता गायब हैं। जब तक हम संगठित होकर वोट नहीं करेंगे तब तक हमारी आवाज अनसुनी रहेगी।
हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी राजनीति जातिवाद पर आधारित नहीं रही है, लेकिन समाज को अब अपने भविष्य को लेकर सोचना होगा।

चुनाव में समर्थन का गणित

पूर्व मंत्री ने साफ संकेत दिया कि आगामी चुनाव में क्षत्रिय समाज का समर्थन उसी गठबंधन को मिलेगा, जो उन्हें पर्याप्त राजनीतिक भागीदारी देगा। उन्होंने कहा कि टिकट बंटवारे से ही यह तय होगा कि समाज किसे समर्थन देगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि उनका व्यक्तिगत रूप से चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन समाज की आवाज़ उठाते रहेंगे।

जातीय गोलबंदी बनाम समानता की राजनीति

आरके सिंह ने अन्य जातीय समूहों का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे रामविलास पासवान ने दलितों को और लालू यादव ने यादव समाज को संगठित किया उसी तरह क्षत्रिय समाज को भी एकजुट होना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह किसी के खिलाफ आंदोलन नहीं है बल्कि समाज को सशक्त बनाने का प्रयास है।

भ्रष्टाचार पर सख्त टिप्पणी

अपने संबोधन में आरके सिंह ने बिहार की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में मंत्री केवल हस्ताक्षर करते हैं, जबकि असली काम अधिकारी करते हैं। इसके अलावा, पदस्थापन के लिए अधिकारियों द्वारा पैसे खर्च करने और बाद में जनता से वसूली करने की बात भी उन्होंने खुलकर कही।