RSS On Kashi-Mathura Temple Controversy: अयोध्या हमारी अब काशी-मथुरा की बारी… ये नारे आरएसएस (RSS) के कार्यकर्ता फिर से पूरे देश में लगाते हुए दिख सकते हैं। जी हां….मथुरा-काशी मंदिर मामले पर आरएसएस (RSS) का बडा बयान सामने आया है। संघ ने मथुरा-काशी मंदिर मामले में अपने सदस्यों को आंदोलन करने की छूट दे दी है। RSS के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले (Dattatreya Hosabale) ने एक कन्नड पत्रिका से बातचीत में कहा कि काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूिम मंदिर विवाद मामले में कार्यकर्ता चाहें तो आंदोलन शुरू कर सकते हैं। हम उन्हें नहीं रोक रहें हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने स्पष्ट किया है कि अगर संगठन के सदस्य मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद से संबंधित प्रयासों में भाग लेते हैं तो संगठन को कोई आपत्ति नहीं होगी।

दरअसल RSS के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले से कन्नड पत्रिका से बातचीत के दौरान पूछा गया कि संघ के काम से प्रेरित होकर बहुत से लोग मस्जिदों और खंडहरों के नीचे मंदिर खोज रहे हैं, और इन मामलों को उसी तरह सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं जिस तरह राम जन्मभूमि मामले को सुलझाया गया था। क्या संघ ऐसे प्रयासों का समर्थन करता है? इसके जवाब में दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि इसे पिछले 50 वर्षों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. राम जन्मभूमि आंदोलन संघ द्वारा शुरू नहीं किया गया था. कई साधु-संतों और मठाधीशों ने बैठक की, चर्चा की और राम जन्मभूमि को पुनः प्राप्त करने का निर्णय लिया। उन्होंने संघ से समर्थन मांगा और हम इस बात पर सहमत हुए कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, राम जन्मभूमि को पुनः प्राप्त करना और मंदिर बनाना आवश्यक था। उस समय, विश्व हिंदू परिषद और धर्म गुरुओं ने तीन मंदिरों के बारे में बात की थी। यदि संघ के कुछ स्वयंसेवक इन तीन मंदिरों से संबंधित प्रयासों में शामिल हैं, तो संघ उन्हें रोक नहीं रहा है।
हालांकि हालांकि उन्होंने सभी मस्जिदों को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर किए जाने वाले प्रयासों के खिलाफ चेतावनी दी। साथ ही सामाजिक कलह से बचने की आवश्यकता पर बल दिया।
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हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने पर लोगों को नसीहत भी दी
होसबोले ने आगे कहा कि अगर हम बाकी सभी मस्जिदों और संरचनाओं के बारे में बात करते हैं, तो क्या हमें 30,000 मस्जिदों को खोदना शुरू कर देना चाहिए और इतिहास को पलटने का प्रयास करना चाहिए? क्या इससे समाज में और अधिक शत्रुता और आक्रोश पैदा नहीं होगा? क्या हमें एक समाज के रूप में आगे बढ़ना चाहिए या अतीत में ही अटके रहना चाहिए? हम इतिहास में कितनी दूर चले गए हैं? अगर हम ऐसा करते रहेंगे, तो हम अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तनों पर कब ध्यान केंद्रित करेंगे?उन्होंने कहा कि आज समाज के सामने धर्मांतरण, गोहत्या, लव जिहाद जैसी कई अन्य समस्याएं हैं। संघ ने कभी नहीं कहा कि इन मुद्दों को नजरअंदाज किया जाए या इन पर काम न किया जाए।
क्या है श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद करीब 300 साल से अधिक पुराना है। मौजूदा समय में यह लड़ाई कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट यहां से मस्जिद को हटाने की मांग कर रहा है। वहीं, शाही ईदगाह मस्जिद की तरफ से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला दिया जा रहा है। 2022 में सिविल जज की तरफ से शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे का आदेश दिया गया था। कहा जाता है कि मथुरा में मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर मंदिर को तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया था। बाद में 1951 में मंदिर ट्रस्ट बना और 1958 में श्रीकृष्ण मंदिर बना।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद क्या है?
साल 2021 में पांच महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में श्रृंगार गौरी और कुछ अन्य देवी-देवताओं के दर्शन और पूजा करने की अनुमति को लेकर याचिका दायर की थी। याचिका में सर्वे कराने की मांग भी की गई थी। मस्जिद की मैनेजमेंट कमेटी ने तकनीकी पहलुओं का हवाला देते हुए मुद्दे को हाई कोर्ट में चुनौती दी। सर्वे के दौरान वजूखाने में ऐसी आकृतियां मिली जिनके शिवलिंग होने का दावा किया गया। इसके बाद मस्जिद को सील कर दिया गया।
इससे पहले 1991 में भी साधु-संतों की तरफ से एक केस दर्ज कराया गया था। उसमें दावा किया गया था कि मस्जिद जहां बनी है वह जगह काशी विश्वनाथ मंदिर की है। ऐसे में वहां पूजा करने की अनुमति और मस्जिद को हटाकर इसका कब्जा हिंदुओं को सौंपने की मांग की गई थी। 2019 में अयोध्या मंदिर से जुड़े फैसले के लगभग एक महीने बाद वाराणसी कोर्ट में नई याचिका दायर कर सर्वे कराने की मांग की गई। इससे पहले 1936 में भी मस्जिद को लेकर विवाद हुआ था। हालांकि, उस समय निचली अदालत के साथ ही हाई कोर्ट ने मस्जिद को वक्फ की संपत्ति माना था।
संघ के बयान का संदेश क्या है?
मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच संघ की तरफ से पहले भी कई बयान आते रहे हैं। ये बयान दर्शाते हैं कि संघ भले ही सीधे-सीधे विवाद से खुद को भले ही अलग रखता हो वैचारिक रूप से वह इनको पूरा समर्थन देता है। इस बात का अंदाजा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के केंद्रीय पदाधिकारी डॉ. इंद्रेश कुमार के बयान से लगाया जा सकता है। इस साल जनवरी में इंद्रेश कुमार ने कहा था कि काशी, मथुरा और संभल जैसे विवादित धार्मिक स्थलों को हिंदुओं को सौंप देने चाहिए। उन्होंने साफ कहा था कि धर्म के नाम पर कब्जा और हिंसा इस्लामिक उसूलों के खिलाफ है।
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