शहीद ऊधम सिंह पर बनी इस फिल्म में स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर को देखा और जाना जा सकता है जिसे आमतौर पर शहीद ए आजम भगत सिंह का दौर कह सकते हैं.

इसे भगत सिंह के विचारों के प्रभाव का दौर कह सकते हैं ,नौजवानों को भगत सिंह ने किस तरह उद्वेलित किया ,उनके विचारों ने किस तरह राजनीतिक समझ से लैस क्रांति के योद्धा तैयार किए इसकी झलक सरदार उधम में दिखती है.

जलियांवाला बाग नरसंहार के अपराधी जनरल डायर को लंदन में जा कर मारने के लिए कई अवसर मिलने के बाद भी भरी सभा को चुनना, वहीं गिरफ्तारी देना,फिर अमानवीय यातनाएं झेलते हुए पूछताछ से ले कर ब्रिटिश मुकदमे की नौटंकी के दौरान एक ऐसा उधम सिंह सामने होता है जिसका मकसद महज बदला नहीं था ,बल्कि ब्रिटिश गुलामी के खिलाफ हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई से दुनिया को अवगत कराना था .

इस फिल्म में भगत सिंह के संवाद उनकी राजनीति की स्पष्ट छाप छोड़ते हैं और यह भी पता चलता है कि उन राजनीतिक विचारों की आंच में तप कर कैसे उधम सिंह जैसे क्रांतिकारी तैयार हुए. फांसी के बाद शहीद उधम सिंह की बंद मुट्ठी जब एक ब्रिटिश अफसर खोलता है तो एक तस्वीर की शक्ल में वो विचार सामने होते हैं जिसमें उधम सिंह ढले थे.

ये आजादी के एक ऐसे अप्रतिम योद्धा की कहानी है जिसने न मुखबिरी की ना माफीनामे का रास्ता चुना ! ये एक ऐसे वीर की कहानी है जो ब्रिटिश यातनाओं के आगे टूटा नहीं !

ये एक ऐसे नौजवान की कहानी है जो विचारों से धर्मनिरपेक्ष था ,मानव स्वतंत्रता का हिमायती था और अपने वतन को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए भगत सिंह के रास्ते पर चल पड़ा था!

ऐसे वीरों के मुकाबले जब माफी वीरों को प्रतिष्ठित करने की कोशिश होती है तब एक बार शूजित सरकार द्वारा निर्देशित सरदार उधम देखना चाहिए. अभिनेता विकी कौशल ने तो उधम सिंह के किरदार में जान ही डाल दी है !

और हां ! उन लोगों को इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए जो आजकल आजादी के आंदोलन में माफी की भूमिका को पढ़ रहे हैं , गुन रहे हैं ! कुर्बानी की इस महान परंपरा को देख कर उनकी आने वाली पीढ़ियों को भी अफसोस होगा कि उनके वैचारिक पुरखे किस कदर गुलामी पसंद और अंग्रेज परस्त थे !

लेखक- रुचिर गर्ग, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मीडिया सलाहकार