अमित पांडेय, खैरागढ़। छत्तीसगढ़ का खैरागढ़ आज भले ही एक नया जिला बन गया हो, लेकिन इसकी असली पहचान उस आस्था से है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी यहां के लोगों के जीवन का हिस्सा बनी रही है. नगर के बीचों-बीच स्थित रुक्खड़ बाबा मंदिर किसी धार्मिक स्थल से कहीं बढ़कर है. यह वह जगह है, जहां आस्था की लौ कभी बुझी नहीं.

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लोककथाओं के अनुसार, 18वीं सदी में नागवंशी शासक टिकैतराय के शासनकाल में रुक्खड़ बाबा खैरागढ़ आए थे. बाबा ने नगर में अपनी धूनी रमाई और साधना के दौरान उस धूनी की भस्म से शिव-पीठ का निर्माण किया. इतिहास और धर्मकथाओं का यह संगम आज भी उतनी ही श्रद्धा से दोहराया जाता है. स्थानीय जानकार भागवत शरण सिंह बताते हैं कि बाबा ने भस्म से शिव-पीठ बनाकर यह संदेश दिया कि आस्था और साधना से ही जीवन का हर अंधकार दूर किया जा सकता है.

भस्म-पीठ की अनोखी मान्यता

मंदिर परिसर में स्थित यह शिव-पीठ साधारण पत्थर की तरह नहीं, बल्कि भस्म से निर्मित है. भक्तों का विश्वास है कि इस पीठ के दर्शन मात्र से मन की व्यथा कम हो जाती है. लोग भस्म को माथे पर लगाकर इसे अपने जीवन की रक्षा-कवच मानते हैं.मंदिर के कोने में जलती हुई धूनी हर आने-जाने वाले को आकर्षित करती है. सदियों से यह धूनी प्रज्वलित है और लोगों का मानना है कि “जब तक यह धूनी जलती रहेगी, खैरागढ़ की धरती पर संकट नहीं आएगा.” धूनी के पास स्थित प्राचीन बिल्व वृक्ष भी मंदिर की पहचान है. यहां बैठकर की गई प्रार्थनाओं को विशेष फलदायी माना जाता है.

महाशिवरात्रि पर देखने लायक होता है नजारा

महाशिवरात्रि पर यहां का नजारा देखने लायक होता है. रातभर ढोल-नगाड़ों की गूंज और हर-हर महादेव के जयकारे पूरे नगर को भक्ति में डूबा देते हैं. बाबा की शिव-बारात पूरे शहर में निकलती है, जिसमें श्रद्धालु न केवल खैरागढ़ से बल्कि आसपास के गांवों और जिलों से भी शामिल होते हैं. सावन के महीने में हर सोमवार यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. नजारा किसी मेले से कम नहीं होता.

भक्तों को खाली हाथ नहीं लौटाते बाबा

स्थानीय निवासी बताते हैं कि उनका जीवन बाबा से शुरू होकर बाबा पर ही आकर ठहरता है. “घर में कोई संकट आए, बीमारी हो, या किसी कार्य में बाधा आए—सबसे पहले बाबा के द्वार पर माथा टेकते हैं. विश्वास है कि बाबा कभी भक्तों को खाली नहीं लौटाते.” रुक्खड़ बाबा मंदिर आज खैरागढ़ की आत्मा है. यह सिर्फ पूजा का स्थान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर है, जिसने नगर की पहचान गढ़ी है.

पर्यटन स्थल के तौर पर मिली मान्यता

जिला प्रशासन ने भी इसे पर्यटन स्थल के रूप में मान्यता दी है, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह जगह उनकी सांसों और विश्वास में बसी हुई है. रुक्खड़ बाबा की कहानी सिर्फ मंदिर की दीवारों तक सीमित नहीं है. यह उस विश्वास की कहानी है, जिसने सदियों से खैरागढ़ की आत्मा को संभाले रखा है. भस्म से बनी शिव-पीठ और अखंड धूनी इस बात का प्रमाण हैं कि आस्था अगर सच्ची हो, तो समय भी उसके सामने नतमस्तक हो जाता है.